________________
पूस-पेच्छय
पाइअसहमहण्णवो पूस पुं[दे] १ राजा सातवाहन (दे ६, पेआलणा बी [दे] प्रमाण-करण, ‘पन्जव- पेक्ख सक [प्र + ईक्ष ] देखना, अवलोकन ८०)। २ शुक, तोता (दे ६, ८० गा पेयालणा पिंडो' (पिंड ६५) ।
करना । पेक्खइ, पेखिए (सण; पिंग)। वक. २६३, वज्जा १३४; पान)।
पेआलुय वि [दे] विचारित (विस १४८२) पेक्खंत (पि ३६७) । कवकृ. पेक्खिजंत पूस पुं[प्पन १ सूर्य, रवि (हे ३, ५६)
पेइअ वि [पैतृक] १ पिता से प्राया हुआ, (से १५, ६३)। संकृ. पेक्खिअ,पेक्खिऊण २ मणि-विशेष (पउम ६, ३६)।
पितृ-क्रम-प्राप्त; पेइनो धम्मो' (पउम ८२, (अभि ४२, काप्र १५८)। कृ. पेक्खणिज्ज
३३ सिरि ३४८: स ५६६)। २ न. स्त्री (नाट-वेणी ७३) पूसा स्त्री [पुष्या] व्यक्ति-वाचक नाम, कुण्ड
के पिता का घर, पीहर, नैहर, मैकाः 'ता पेक्खअ । विप्रेक्षक देखनेवाला, निरीक्षक, कोलिक श्रावक की पत्नी (उवा) ।
जा कुले कलंक नो पयडइ ताव पेइए एयं पेक्खग द्रा (सुर ७, ८०; स ३७६; पूसाण देखो पूस = पूषन् (हे ३, ५६)।
पेसेमि', 'विमलेण तनो भरिणयं गच्छ पिए महा) - 'पूह पुं[अपोह] विचार, मीमांसाः 'ईहापूर- पेइयमियारिंग' (सुपा ६००)
पेक्ख ग न [प्रेक्षण] निरीक्षण, अवलोकन गवसण करमाणस्त (आपाप १४ पेईहर न [पितृगृह, पैतृकगृह ] पीहर, (सुपा १६६ अभि ५३) । २८६) । देखो अपोह = अपोह ।
स्त्री के पिता का घर; "इय चितिकरण सिग्घं पेक्खणग) न [प्रेक्षणक] खेल, तमाशा, प्रथम (१) देखो पढमः 'पृथुमसिनेहो' (प्राकृ धणसिरिपेईहरम्मि संचलियो' (सूपा ६०३) पक्खणय ) नाटक (सुर ७, १८२, कुष ) १२४) ।
पेऊस न [पीयूष अमृत, सुधा (हे १, पेक्खणा स्त्री [प्रेक्षगा] निरीक्षण, अवकोकन पेअ [प्रेत] १ व्यन्तर-भेद, एक देव-जाति १०५; गा ६५; कप्प) सण पुं[शन] (ोघ ३)। (सुपा ४६१; ४६२, जय २६)। २ मृतक देव, सुर (कुमा)।
पेक्खा स्त्री [प्रेक्षा] ऊपर देखो (पउम ७२; (पउम ५, ६०) कम्म न [कम्मेन्] पेंखिअ वि [प्रेखित कम्पित (कप्प )।- २६) । देखो पेच्छा । अन्त्येष्टि क्रिया, मृत का दाहादि कार्य (पउम खोल प्रक[प्रेडोलय ] भूलना, हिलना। पक्खिय देखो पेच्छिअ (राज) । २३, २४) करणिज्ज न [करणीय]| वकृ. खोलमाण (णाया १,१-पत्र ३१) पाखल (अप) वि [प्रक्षित] दृष्ट (रंभा)। अन्त्येष्टि क्रिया (पउम ७५, १) काइय पेंड देखो पिंड = पिण्ड (हे १, ८५, प्राक
पेच अप्रेत्य] परलोक, आगामी जन्म वि | कायिक] प्रेत-योनि में उत्पन्न,
पेचा (भग; औप); 'संबोही खलु पेच्च ५; प्राप्र कुमा) 10.
दुल्लहा' (बै ७३ ) भव [ व्यन्तर-विशेष (भग ३, ७). "देवयकाइय
व] पेंड न दे] १ खण्ड, टुकड़ा। २ बलय (दे • वि ["देवताकायिक प्रेत-देवता का, प्रेत-
आगामी जन्म, परलोक (प्रौप) भाविक्ष ६, ८ ) सम्बन्धी (भग ३, ७)। 'नाह पु[नाथ] पेंडधव [दे] खड्ग, तलवार (दे ६,५६)।
वि [ भाविक ] जन्मांतर-संबन्धी (परह यमराज, जम (स ३१९)। भूमि, भूमी |
पेंडबाल वि [दे] देखो पंडलिअ (दे पेचा देखो पिअ = पा । स्त्री [भूमि, मी] श्मशान (सुपा २६५)
पेच्छ सक [दृश , प्र+ ईक्ष ] देखना । 'लोय युं [लोक] श्मशान (पउम ८६, पेंडय पुं[दे] १ तरुण, युवा । २ षण्ढ, ।
पेच्छइ, पेच्छए (हे ४, १८१, उव; महा; ४३)। वह [पति] यम (उप ७२८
नपुंसक (दे ६, ५३)। टी) ५ वण न [वन] श्मशान (पामा सुर पेंडल पुंदे] रस (दे ६, ५८) ।
पि ४५७)। भवि. पेच्छिहिसि (पि ५२५) ।
वकृ. पेच्छंत (गा ३७३, महा)। संकृ. १६, २०४७ वज्जा २; सुपा ५१२) हिवन
। पेंडलिअ वि [दे] पिण्डीकृत, पिण्डाकार पेच्छिऊण (पि ५८५)। हेकृ पेच्छिउं, पुं[धिप] यम, जमराज (पास) किया हुआ (दे ६, ५४)।
पेच्छित्तए (उप ७२८ टीः प्रौप)। कृ. पेअ वि [प्रेयस] अतिशय प्रिय । स्त्री. सी पेंडव सक [प्र+ स्थापय ] १ रखता, पेच्छणिज, पेच्छिअव्य (गा ९८; औप; (सम्मत्त १७५) ।
स्थापन करना। २ प्रस्थान कराना। पेंडवइ परह १,४; से ३, ३३) (हे ४, ३७)
पेच्छ वि [प्रक्ष] द्रष्टा, दर्शक; 'अपरमत्थपेच्छो' पेंडविर वि [प्रस्थापयित] प्रस्थापन करने- (स ७१५) - पेआ स्त्री [पेया] यवागू, पीने को वस्तु- वाला (कुमा)।
पेच्छग देखो पेक्खग (भास ४७; धर्मसं विशेष (हे १, २४८) ।
पेंडार पुंदे] १ गोप, गो-पाल, ग्वाला । २ ७४३)। पेआल न दे] १ प्रमाण (दे ६, ५७: विसे महिषी-पाल (दे ६,५८)।
पेच्छण देखो पेक्खग (सुपा ३७) । १६९टी गदि उव)। २ विचार (विसे | पेंडोली स्त्री [८] क्रीड़ा (दे ६,५६) पेच्छणग) देखो पेक्षगग (प'चा ६, ११३ १३६१) । ३ सार, रहस्य (ठा ४, ४ टी- पेंढा स्त्री [दे] कलुष सुरा, पंकवाली मदिरा पेच्छणय ) महा)। पत्र २८३ उप पू२०७। ४ प्रधान, मुख्य
पेच्छय वि [प्रेक्षक दृष्टा, निरीक्षक (पउम (उवा) पंत देखो पा=पा ।
८६, ७१, स ३६१; गा ४६८).
पेअनोपा-पा।
पेअब्ध देखो पापा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org