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पाइअसहमहण्णवो
पिट्ट-पिनाय
पिट्ट सक [पिट्टय् ] पीटना, ताड़न करना। कुमाः षड्)। ग वि [ग] पीछे चलनेवाला | बाँधना। पिण्डइ, पिण्डेड (पि ५५६)। हेकृ. पिट्टइ, पिट्टेइ (माचाः पिंगः गा १७१; सिरि (श्रा १२)। "चम्पा स्त्री [°चम्पा] चम्पा पिणदुर्छ, पिणद्धित्तए (अभि १८५; राज)। ६५५) । वा. पिईत (पिंग)।
नगरी के पास की एक नगरी (कप्प)। मंस पिणद्ध वि [पिनद्ध] १ पहना हुआ (पान पिट्ट न [दे] पेट, उदर (पंचा ३, १६; धर्मवि न [मांस] परोक्ष में अन्य के दोष का प्रौपः गा ३२८)। २ बद्ध, यन्त्रित (राय)। ६६ इय २३८, करु २६; सुपा ५६३; कीर्तन; 'पिट्ठिमंसं न खाइजा' (दस ८, ३ पहनाया हुप्राः 'निगमउडोवि पिणदो तस्स सं २१)।
४७)। मंसिय वि [ मांसिक] परोक्ष में सिरे रयणचिंचइओ' (सुपा १२५) । पिट्टण न [पिट्टन] ताड़न, प्राघात (सूत्र २, दोष बोलनेवाला, पीछे निन्दा करनेवाला पिणद्धाविद (शौ) वि [पिनिधापित] पह२, ६२; पिंड ३४; पण्ह १, १ प्रोष (सम ३७)। माइया स्त्री [°मातृका] एक | नाया हुआ (नाट-शकु ६८)। ५९६ उप ५०६)।
अनुत्तर-गामिनी स्त्रीः 'चंदिमा पिट्टिमाइया' पिणाइ पुं[पिनाकिन् महादेव, शिव (पामः पिट्टण न [पीडन] पीड़ा, क्लेश (सूम २, (अनु २) । देखो पिट्ठ = पृष्ठ ।
गउड)। २, ५५)।
पिट्ठी स्त्री [पैष्टी] पाटा की बनी हुई मदिरा पिणाई स्त्री [दे] माज्ञा, प्रादेश (दै ६, ४८) । पिट्टणा नी [पिट्टना] ताड़न (मोघ ३५७) । (बृह २)।
पिणाग पुन [पिनाक] १ शिव-धनुष । २ पिट्टावणया स्त्री [पिट्टना] ताड़न कराना | पिड पुं[पिट] १ वंश-पत्र प्रादि का बना महादेव का शूलास्त्र (धर्मवि ३१)। (भग ३, ३-पत्र १८२)।
हुआ पात्र-विशेष । २ कब्जा, अधीनताः 'जा पिणागि देखो पिणाइ (धर्मवि ३१)। पिट्टिय वि [पिट्टित] पीटा हुआ, ताडित ताव तेणं भणियं रे रे रे बाल मह पिडे पिणाय देखो पिणाग (गउड)। (सुख २, १५)। . पडिओ' (सुपा १७६)।
पिणाय पुं[दे] बलात्कार (दे ६, ४६)। पिट्र न [पिष्ट] तण्डुल आदि का आटा, पिडग देखो पिडय = पिटक (प्रौप; उवा; | पिणिद्ध वि [पिनद्ध, पिनिहित] देखो चूर्ण (णाया १, १, ३, दे १, ७८; गा| सुज्ज १६)।
पिणद्ध = पिनद्धः (पएह २, ४-पत्र १३०; ३८८)। पिडच्छा स्त्री [दे] सखी (दे ६, ४६)।
कप्प; प्रौप)। पिट्ट न [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का हिस्सा पिडय न [पिटक १ वंशमय पात्र-विशेष,
पिणिधासक [पिनि + धा] देखो पिणद्ध(मोपः उव)। 'भोयणंपि (? पि) डयं करेति' (पाया १,
पि+ नह. । हेकृ. पिणिधत्तए (ौपः पि 'ओम [तस् ] पीछे से, पृष्ठ भाग से
५७)। १-पत्र ६)। २ दो चन्द्र और दो सूर्यों Ameोपिया (ज। (उवाः विपा १, १; औप)। करंडग न
का समूह (सुज्ज १९)। [करण्डक] पूछ-वंश, पीठ की बड़ी हड्डी
| पिणिया स्त्री [दे. पिण्यिका] गन्ध-द्रव्य(तंदु ३५)। 'चर वि ['चर पृष्ठ-गामी, पिडय वि [दे] माविन्न ( षड् )।
विशेष, ध्यामक, गन्ध-तृण (उत्तनि ३)। अनुयायी (कुमा)। देखो पिट्टि।
पिडव सक [ अर्ज 7 पैदा करना, उपार्जन | पिण्ही स्त्री [दे] क्षामा, कृश स्त्री (दे६, ४६)। पिट्ट वि [स्पृष्ट] १ छुपा हुआ। २ न. स्पर्श करना । पिडवइ ( षड्)।
पित्त पुन [पित्त शरीर-स्थित धातु-विशेष, (पव १५७)।
पिडिआ स्त्री [पिटिका] १ वंश-मय भाजन- तिक्त धातु (भगः उव)। जर पुं[ज्वर] पिट्ठ वि [पृष्ट] १ पूछा हुआ। २ न. प्रश्न, विशेष (दे ४, ७; ६,१)। २ छोटी मंजूषा पित्त से होता बुखार (णाया १, १)। पृच्छा; 'जंपसि विणण जंपसे पिट्ठ' (गा । पेटी, पिटारी (उप ५८७, ५६७ टी)। "मुच्छा स्त्री [मू.] पित्त की प्रबलता ९४३)। पिड्ड सक [ पीडय ] पोड़ना । पिड्डुइ (प्राचाः |
से होनेवाली बेहोशी (पडि)। पिटूंत न [दे. पृष्ठान्त] गुदा, गाँड (दे (पि २७६) ।
पित्तल न [पित्तल] धातु-विशेष, पीतल ६,४९)। पिड्ड अक [भ्रंश ] नीचे गिरना। पिडुइ
(कुप्र १४४)। पिट्ठखउरा स्त्री [दे] पङ्क-सुरा, कलुष मदिरा
पित्तिज्जपुं[पितृव्य चाचा, पिता का पिडइअ वि [दे] प्रशान्त (षड् )।
पित्तिय भाई (कप्पः सम्मत्त १७२; सिरि
२६३, धर्मवि १२७ स ४६५, सुपा ३३४)। पिटुखउरिआ स्त्री [दे] मदिरा, दारू (पास)। पिढं प्र[पृथक् ] अलग, जुदा (षड्)।
पित्तिय वि [पैत्तिक] पित्त का, पित्तपिट्रव्व वि [प्रष्टव्य पूछने योग्य, 'नियक- पिढर पुन [पिठर] १ भाजन-विशेप, स्थाली
संबन्धी (तंदु १६; णाया १, १, प्रौप)। रकीदीवि किंकरी कि पिट्ठि (?) व्वा' (रंभा)। (पात्र; आचा; कुमा)। २ गृह-विशेष । ३
पिधं म [पृथक् ] अलग, जुदा (हे १, पिटायय पुंन [पिष्टातक] केसर मादि गन्धमुस्ता, मोथा । ४ मन्थान-दण्ड, मथनिया (हे
१८८ कुमा)। द्रव्य (गउड स ७३४)।
१,२०१; षड्)।
पिधाण देखो पिहाण (नाट-विक्र १०३)। पिट्टिी [पृष्ठ] पीठ, शरीर के पीछे का | पिणद्ध सक [पि + नह ,पिनि + धा] पिन्नाग। [पिण्याक] खली, तिल आदि भाग (हे १, १२६ णाया १, रंभा; १ढकना । २ पहिनना। ३ पहिराना । ४ । पिन्नाय का तेल निकाल लेने पर जो उसका
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