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५८२ पाइअसहमहण्णवो
पहाड-पहुण ["वती] आठवें वासुदेव की पटरानी (पउम पहारेत्त वि[प्रधारयितु] चिन्तन करनेवाला, पहि? देखो पहह % प्रहृष्ट (प्रौप; सुर ३, २०, १८७)।
'अहाकम्मे प्रणवजेत्ति मणं पहारेत्ता भवति' __२४८ सुपा ६३, ४३७)। पहाड सक [प्र + ध्राटय ] इधर उधर (भग ५, ६)।
पहिर सक [परि + धा] पहिरना, पहनना । भमाना, घुमाना । पहाडति (सूअनि ७० टी)। पहाव सक [प्र+ भावय ] प्रभाव-युक्त
पहिरइ, पहिरंति (भवि; धर्मवि ७)। कम, पहाण वि [प्रधान] १ नायक, मुखिया, करना, गौरवित करना। पहावइ (सण)।
पहिरिजइ (संबोध १४)। वकृ. पहिरंत मुख्य; "अवगन्नड सम्बेवि हु पुरप्पहाणेवि' संकृ. पहाविऊण (सरण)।
(सिरि ६८)। संकृ.पहिरिउ (धर्मवि १५)। (सुपा ३०८), 'तत्यत्थि वरिणप्पहाणो सेट्ठी पहाव (अप) अक[प्र + भू] समर्थ होना।
प्रयो.. संकृ. पहिरावेऊण, पहिराविऊण वेसमणनामओ' (सुपा ६१७) । २ उत्तम,
(सिरि ४५६ ७७०)। पहावइ (भवि)।
पहिरावण न [परिधापन] १ पहिराना । २ प्रशस्त, श्रेष्ठ, शोभन (सुर १, ४८ महा: पहाव पु[प्रभाव] १ शाक्त, सामथ्या तु
पहिरावन, भेंट में-- इनाम में दिया जाता कुमाः पंचा ६, १२) । ३ स्त्रीन. प्रकृति- च तेतलिपुत्तस्स पहावेण (णाया १,१४,
वस्त्रादि: गुजराती में-'पहिरामणी'(श्रा २८)। सत्त्व, रज और तमोगुण की साम्यावस्था अभि ३८) । २ कोष और दण्ड का तेज । 'ईसरेण कडे लोए पहारणाइ तहावरे' (सूत्र
पहिराविय वि [परिधापित] पहिराया हुआ ३ माहात्म्य; 'तायपहावो चेव में प्रविग्धं
(महा: भवि)। १, १, ३, ६) । ४ पुं. सचिव, मन्त्री (भवि)। भविस्सइ ति' (स २६, गउड)।
पहिरिय वि [परिहित] पहिरा हुआ, पहना पहाण [पापाग] पत्थर (चउप्पन्न०)। पहावणा देखो पभावण (कुप्र २८४)।
हुआ (सम्मत्त २१८)। पहाण न [प्रहाण] अपगम, विनाश (धर्मसं पहाविअ वि [प्रधावित] दौड़ा हुआ (स पहिल वि[दे] पहला, प्रथम (संक्षि ४७; ८७५)। ५८४; गा ५३५; गउड)।
भवि पि ४४६) । स्त्री. °ली (पि ४४६) । पहाणि स्त्री प्रहाणि] ऊपर देखो (उत्त ३, पहाविर वि [प्रधावित] दौड़नेवाला (वजा पहिल्ल अक दि] पहल करना, प्रागे करना । ७. उप ६८६ टी)। ६२; गा २०२)।
। पहिल्लइ (पिंग) । संकृ. पहिल्लिअ (पिंग)। पहाम सक [प्र+भ्रमय ] फिराना, घुमाना। पहास सक [प्र+भाषा बोलना । पहासई पहिल्लिर वि [प्रचूर्णित] खूब हिलनेवाला,
कवकृ. पहामिजंत (से ७, ६६)। (सुख ४; ६); 'नाऊरण चुन्नियं तं पहिहियया अत्यन्त हिलता (सम्मत्त १८७)। पहाय देखो पहा=प्र + हा।
पहासई पावा' (महा)।
पहिवी देखो पुहवी = पृथिवी (नाट)। पहाय न [प्रभात] १ प्रातःकाल, सबेरा पहास अक [प्र+ भास् ] चमकना, पहीण वि [प्रहीण] १ परिक्षीण (पिंड ६३१; (गउड सुपा ३६, ६०२)। २ वि. प्रभा- प्रकाशना । कृ. पहासंत (साधं ५६)। भग)। २ भ्रष्ट, स्खलित (सूप २,१, ६)। युक्त (से ६, ४४)।
पहास पुं [प्रहास] अट्टहास प्रादि विशेष पहु [प्रभु] १ परमेश्वर, परमात्मा (कुमा)। पहाय देखो पहाव-प्रभाव (हे ४, ३४१; हास्य (दस १०, ११)।
२ एक राज-पुत्र, जयपुर के विन्ध्यराज का हास्य १३२७ भवि)।
पहासा स्त्री [प्रहासा] देवी-विशेष (महा)। एक पुत्र (वसु)। ३ स्वामी, मालिक (सुर पहाया देखो वाहाया (अनु)। पहिअ वि [पान्थ, पथिक] मुसाफिर (हे २,
४, १५६) । ४ वि. समर्थ, शक्तिमानः 'दाणं पहार सक [प्र+ धारय ] १चिन्तन करना,
दरिहस्स पहुस्स खंती' (प्रासू ४८) । ५ अधिविचार करना। २ निश्चय करना । भूका.
१५२; कुमाः षड् ; उब; गउड)। साला _ स्त्री [शाला] मुसाफिरखाना, धर्मशाला
पति, मुखिया, नायक (हे ३, ३८)। पहारेत्थ, पहारेत्था, पहारिस (सूम २,७, (धर्मवि ७०; महा)।
पहुइ देखो पभिइ (कप्पू)। ३६; औप; पि ५१७; सूत्र २, १, २०)। वकृ. पहारेमाण (सूत्र २, ४, ४)।
पहुई देखो पुहुवी (षड्)। पहिअ वि [प्रथित] १ विस्तृत । २ प्रसिद्ध, विख्यात (ोप) । ३ राक्षस-वंश का एक प
पहुंक पुं [पृथुक] खाद्य पदार्थ विशेष, चिउड़ा पहार देखो पहर = प्रहार (पायः हे १, ६८)।
राजा एक लंका-पति (पउम ५; २६२)। (६५०४४) । पहाराइया स्त्री [प्रहारातिगा] लिपि-विशेष
पहुच्च अक [प्र + भू] पहुँचना । पहुचइ (सम ३५)। पहिअ वि [प्रहित] भेजा हुआ, प्रेषित (उप
(हे ४, ३६०) । वकृ. पहुश्चमाण (प्रोष पृ४५, ७६८ टी; धम्मटी )। पहारि वि [प्रहारिन] प्रहार करनेवाला (सुपा २१५ प्रासू ६८)।
पहिअ वि [दे] मथित, विलोडित (दे ६, ६)। पहुह देखो पप्फुट्ट । पहुट्टइ (कप्पू)। पहारिय वि [प्रहारित] जिस पर प्रहार किया पहिऊण देखो पहा = प्र + हा। पहुडि देखो पभिइ (हे १, १३१; ती १०; गया हो वह (स ५६८)।
पहिसय वि [प्रहिंसक हिंसा करनेवाला षड्)। पहारिय वि[प्रधारित] विकल्पित, चिन्तित (मोघ ७५३) ।
पहुण पुं[प्राघुण] अतिथि: मेहमान (उप (राज)। पहिजमाण देखो पहा = प्र + हा।
६०२)।
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