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पसण्णा-पसास
पाइअसद्दमहण्णवो
पसण्णा स्त्री प्रसन्ना] मदिरा, दारू (णाया पसमिण वि [प्रशमिन्] प्रशान्त करनेवाला, हं महाकिलेसेण नरनाह (सुर १०, २३०; १, १६; विपा १, २)।
नाश करनेवाला; 'पावंति, पावपसमिण पास- सुपा ३६)। देखो पसूअ = प्रसूत । पसत्त वि [प्रसक्त] १ चिपका हुआ (गउड
जिण तुह प्पभावण' (मि १७)। पसविर वि [प्रसवित] जन्म देनेवाला ५१)। २ आसक्त (गउड ५३१; उव) । ३
पसम्म देखो पसम%+ शम् । पसम्मइ (नाट)। आपत्ति-ग्रस्त, अनिष्ट-प्राप्ति के दोष से युक्त
(गउड)। वकृ. पसम्मत (से १०, २२ पसस्स देखो पसंस। (विसे १८५६)। गउड)।
पसस्स वि [प्रशस्य] प्रभूत शस्यवाला (सुपा पसय पु[दे] १ मृग-विशेष (दे ६, ४; परह ६४५)। पसत्ति स्त्री [प्रसक्ति] १ आसक्ति, अभिष्वङ्ग
१, १, भविः सणः महा)। २ मृग-शिशु पसाइअ वि [प्रसादित] १ प्रसन्न किया (उप १३१)। २ प्रापत्ति-दोष (प्रज्झ (विपा १, ४)।
हुअा (स ३८६,५७६)। २ प्रसन्न होने के
कारण दिया हुआ, 'अंगविलग्गमसे सं पसाइयं पसत्थ वि[प्रशस्त] १ प्रशंसनीय, श्लाघनीय। पसय वि [प्रस्तृत फैला हुआ, 'पसयच्छि।'
(वजा ११२; १४४)। देखो पसिअ = कडयवस्थाई' (सुर १, १६३) । २ श्रेष्ठ, अच्छा (हे २, ४५, कुमा)।
प्रसूत । पसत्थि स्त्री [प्रशस्ति] वंशोत्कीर्तन, वंश
पसाइआ स्त्री [दे] भिल्ल के सिर पर का पसर अक [प्र + स] फैलना। पसरइ (पि
पर्ण-पुट, भिल्लों की पगड़ी (दे ६, २)। वर्णन (गउड; सम्मत्त ८३)।
४७७; भवि)। वकृ. पसरंत (सुर १, ८६ पसाइयव्य देखो पसाय प्र+ सादय् । पसत्थु प्रशास्तु] १ लेखाचार्य, गणित भवि)। का प्रध्यापक (ठा ३, १)। २ धर्म-शास्त्र पसर [प्रसर] विस्तार, फैलाव (हे ४,
पसाम वि [प्रशाम्] शान्त होनेवाला (षड् )। का पाठक (ठा ३,१, औष)। ३ मन्त्री, १५७; कुमा)।
पसाय सक [प्र + सादय.] प्रसन्न करना, अमात्य (सूत्र २, १, १३)।
पसरण न [प्रसरण] ऊपर देखो (कप्पू)। खुश करना । पसाअंति, पसाएसि (गा ६१ पसन्न देखो पसण्ण ( महा: भविः सुपा | पसरिअ वि [प्रसृत] फैला हुमा, विस्तृत सिक्खा ६१ )। वकृ. पसाअमाण (गा (प्रौपः गा ४ भविः णाया १,१)।
७४५) । हेकृ. पसाइउं, पसाए (महा;
गा ५२४) । कृ. पसाइयव्य (सुपा ३६५) । पसन्ना देखो पसण्णा (पाय; पउम १०२, पसरेह [दे] किंजल्क (दे ६, १३)। १२२० सुख २, २९)। पसल्लिअ वि [दे] प्रेरित (षड्) ।
पसाय पुं [प्रसाद] १ प्रत्ति, प्रसन्नता, पसप्प पुं[प्रसर्प] विस्तार, फैलाव (द्रव्य
खुशी; 'जणमणपसायजरगणो' (वसु) । २ पसव सक [प्र+सू] जन्म देना, उत्पन्न
कृपा, मेहरबानी (कुमा)। ३ प्रणय (गा करना। पसवइ (हे ४, २३३)। पसवंति
७१)। पसप्पग वि [प्रसर्पक] १ प्रकर्ष से जाने- | (उव) । वकृ. पसवमाण (सुपा ४३४) ।
पसायण न [प्रसादन] प्रसन्न करना, 'देववाला, मुसाफिरी करनेवाला। २ विस्तार को पसव (अप) सक [प्र + विश] प्रवेश करना। प्राप्त करनेवाला.(ठा ४, ४–पत्र २६४)।
पसायणपहाणमणो' (कुप्र ५: सुपा ७, महा)। पसवइ (प्राकृ ११६)।
पसार सक[प्रसारय् ] पसारना, फैलाना।। पसम अक [प्र+शम् ] अच्छी तरह शान्त पसव पुं[प्रसव] १ जन्म, उत्पत्ति (कुमा)।
पसारेइ (महा)। वकृ. पमारेमाण (गाया २ न. पुष्प, फूल: 'कुसुमं पसवं पसूर्य च' होना । पसमंति (प्राक १६)।
१,१: प्राचा) । संकृ. पसारिअ (नाटपसम पुं[प्रशम] १ प्रशान्ति, शान्ति (कुमा)।
(पान), 'पुप्फाणि अ कुसुमाणि अ फुल्लारिण। २ लगातार दो उपवास (संबोध ५८)। तहेव होंति पसवाणि' (दसनि १, ३६)।
मृच्छ २५५)। पसव [दे] देखो पसय । 'पसवा हवंति एए' पसार पुं[प्रसार] विस्तार, फैलाव (कप्पू)। पसम पुं[प्रश्रम] विशेष मेहनत-खेद (प्राव
(पउम ११, ७७) । 'नाह पुं [°नाथ] मृग- पसारण न [प्रसारण] ऊपर देखो (मुपा
राज, सिंह (स ६५७)। राय पुं [राज] ५८३)। पसमण न [प्रशमन] १ प्रकृष्ट शमन (पिंड सिंह (स ६५७)।
पसारिअ वि [प्रसारित] १ फैलाया हुआ ६६३; सुर १, २४६) ।२ वि. प्रशान्त करने
पसवडक न [दे] विलोकन (दे ६, ३०)। (सरण; नाट–वेणी २३)। २ न. प्रसारण वाला (स ६६५) । स्त्री. णी (कुमा)।
पसवण न [प्रसवन] प्रसूति, जन्म-दान । (सम्मत्त १३३; दस ४, ३)। पसमाविअ वि [प्रशमित] प्रशान्त किया
(भगः उप ७४४; सुर ६, २४८)। पसास सक [प्र+ शासय ] १ शासन हुप्रा (स ६२)।
पसवि वि [प्रसविन्] जन्म देनेवाला (नाट- करना, हुकूमत करना । २ शिक्षा देना। ३ पसमिक्ख सक [प्रसम् + ईक्ष ] प्रकर्ष शकु ७४)।
पालन करना। वकृ. 'रज्जं पसासेमाणे से देखना। संकू. पसमिक्ख (उत्त १४, पसविय वि [प्रसूत जो जन्म देने लगा हो, विहरई' (गाया १, १ टी-पत्र ६; १ ११)।
जिसने जन्म दिया हो वहा 'सयमेव पसविया १४-पत्र १८६ प्रौप; महा)।
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