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( ५५ ) महाराष्ट्री-अपभ्रंश से मराठी और कोंकणी भाषा। मागधी-अपभ्रंश की पूर्व शाखा से बंगला, उड़िया और आसामी भाषा। मागधी-अपभ्रंश की बिहारी शाखा से मैथिली, मगही और भोजपुरिया । अर्धमागधी-अपभ्रंश से पूर्वीय हिन्दी भाषाएँ अर्थात् अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। सौरसेना-अपभ्रंश से बुन्देली, कन्नौजी, ब्रजभाषा, बाँगरू, हिन्दी या उर्दू ये पाश्चात्य हिन्दी भाषा । नागर-अपभ्रंश से राजस्थानी, मालवी, मेवाड़ी, जयपुरी, मारवाड़ी तथा गुजराती भाषा। पालि से सिंहली और मालदीवन । टाकी अथवा ढाकी से लहण्डी या पश्चिमीय पंजाबी। टाकी-अपभ्रंश (सौरसेनी के प्रभाव-युक्त) से पूर्वीय पंजाबी। ब्राचड-अपभ्रंश से सिन्धी भाषा।
पैशाची-अपभ्रंश से काश्मीरी भाषा। लक्षण नागर-अपभ्रश के प्रधान लक्षण ये हैं :
वर्ण-परिवर्तन १. भिन्न-भिन्न स्वरों के स्थान में भिन्न-भिन्न स्वर होते हैं; यथा-कृत्य = कच्च, काच, वचन = वेण, वीण बाहु = बाह, बाहाः
बाहुः पूष्ठ = पठि, पिडि, पुट्ठिः तृणतण, तिण, तृण; सुकृत - सुकिद, सुकृद; लेखा = लिह, लोहा लेह। स्वरों के मध्यवर्ती असंयुक्त क, ख, त, थे, प और फ के स्थान में प्रायः क्रमशः ग, घ, द, ध, व और भ होता है। यथा
विच्छेदकर = विच्छोहगरः सुख = सुघ, कथित = कधिद, शपथ = शवध, सफल = सभल । ३. अनादि और असंयुक्त म के स्थान में बैकल्पिक सानुनासिक व होता है; यथा-कमल = कल, कमल भ्रमर = भवर, भमर । ४. संयोग में परवर्ती र का विकल्प से लोप होता है; यथा-प्रिय = पिय, प्रियः चन्द्र = चन्द, चन्द्र । ५. कहीं-कहीं संयोग के परवर्ती य का विकल्प से र होता है। जैसे-व्यास = वास, वासः व्याकरण = वागरण, वागरण । ६. महाराष्ट्री में जहाँ म्ह होता है वहाँ अपभ्रंश में म्भ और म्ह दोनों होते हैं; यथा- ग्रीष्म = गिम्भ, गिम्हः श्लेष्म - सिम्भ, सिम्ह।
नाम-विभक्ति १. विभक्ति के प्रसंग में ह्रस्व स्वर का दीर्घ और दीर्घ का ह्रस्व प्रायः होता है; यथा-श्यामलः = सामलः, खड्गाः खग्ग;
दृष्टि = दिट्ठिः पुत्री = पुत्ति । २. साधारणतः सातों विभक्ति के जो प्रत्यय हैं वे नीचे दिये जाते हैं। लिंग-भेद में और शब्द-भेद में अनेक विशेष प्रत्यय भी हैं, जो विस्तार-भय से यहाँ नहीं दिये गए हैं। एकवचन
बहुवचन प्रथमा
उ, हो द्वितीया तृतीया
सु, हो, स्सु पञ्चमी षष्ठी
सु, हो, स्सु सप्तमी
आख्यात-विभक्ति एकवचन
बहुवचन
चतुर्थी
thod
on.
२ पु. ३ पु०
M
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