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थंभणया-थयण
पाइअसहमहण्णवो गुजरात का एक नगर, जो आजकल 'खंभात' थग्गया स्त्री [दे] चंचु, चोंच (दे ५, २६) थणलोलुअस्तिनलोलुप दूसरी नरक
थग्ध सक [स्ताघ ] जल की गहराई को | भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ७)।। [पुर नगर-विशेष, खंभात (सिग्ध १)। नापना । कर्म. थग्विज्जए (पब ८१)। थणिअ पु[स्तनित ] एक नरक-स्थान थंभणया स्त्री [स्तम्भना] स्तब्ध-करण (ठा | थग्घ पू[दे] थाह, तला, पानी के नीचे की (देवेन्द्र ६, २६)।
। भूमि, गहराई का अन्त, सीमा (दे ५,२४)। थणिय न [स्तनित] १ मेघ का गर्जन (वजा थंभणिया स्त्री [स्तम्भनिका] विद्या-विशेष थग्या स्त्री [दे] ऊपर देखो (पाप)।
१२ दे ५, २७)। २ आक्रन्द, चिल्लाहट (धर्मवि १२४)।
(सम १५३)। ३ पु. भवनपति देवों की थट्ट पुन [ दे ] १ ठ, भीड़, झुण्ड, समूह, थंभणी स्त्री [स्तम्भनी] स्तम्भन करनेवाली
एक जाति (औप; पण्ह १, ४)4 कुमार यूथ, जत्थाः 'दुद्धरतुरंगथट्टा' (सुपा २८८), विद्या-विशेष (णाया १,१६)।
पु[कुमार] भवनपति देवों की एक जाति 'विहडइ लहु दुट्ठानिट्ठदोघट्टथर्ट्स' (लहुअ ४) । थंभय देखो थंभ = स्तम्भ (कुमा)।
(ठा १,१)। २ ठाठ, ठाट, तड़क-भड़क, सजधज, आडम्बर थंभिय वि [स्तम्भित] १ स्तब्ध किया हुषा,
थणिल्ल सक [चोरय् ] चुराना, चोरी करना। (भवि)। थमाया हुआ (कुप्र १४१; कुमाः कप्प;
थपिल्लइ (प्राकृ ७२)। | थट्टि स्त्री [दे] पशु, जानवर (दे ५, २४)। औप) । २ जो स्तब्ध हुआ हो, अवष्टब्ध थड पुन [दे] ठछ, यूथ, समूह (भवि) ।
थणिल्ल वि [ स्तनवत् ] स्तनवाला (कप्पू)। (स ४६४)
थणुल्लअ पु[स्तनक] छोटा स्तन (गउड) । - थक्क अक [स्था] रहना, बैठना, स्थिर होना । थड्ढ वि [स्तब्ध १ निश्चल । २ अभिमानी
| थण्णु देखो थाणु (गा ४२२)।
गविष्ठ (सुपा ४३७; १८२)। थक्कइ (हे ४, १६; पिंग) । भवि. थक्किस्सइ
थत्तिअ न [दे] विश्राम (दे ५, २६)।(पि ३०६)।
थढिअ वि [स्तम्भित] १ स्तब्ध किया | थद्ध देखो थड्ढ (सम ५१, गा ३०४, थक्क प्रक [फक्] नीचे जाना । थक्कइ हुआ । २ स्तब्ध, निश्चल । ३ न. गुरु-वन्दन वज्जा १०)। (हे ४,८७)।
का एक दोष, अकड़ कर गुरु को किया
| थन्न न [स्तन्य स्तन का दूध । जीवि वि थक्क अक [श्रम् ] थकना, श्रान्त होना। जाता प्रणाम (गुभा २३)।
[°जीविन् ] छोटा बच्चा (सुपा ६१६) । थक्कंति (पिंग)।
धण अक स्तिन्] १ गरजना। २ प्राकन्द | थप सक [ स्थापय ] रखना, थप्पी करना । थक्क वि [स्थित] रहा हुआ (कुमाः वज्जा करना, चिल्लाना । ३ आक्रोश करना। ४
थप्पइ (सिरि ८९७)। ३८; सुपा २३७: पारा ७७ सट्ठि ६)। जोर से नीसास लेना। वकृ. थणंत (गा
थप्पण न [स्थापन] न्यास, न्यसन (कुप्र थक्क पु[दे] १ अवसर, प्रस्ताव, समय (दे २६०)।
११७) ५,२४वव ६ महा: विसे २०६३)। २ | | थण पुं [स्तन] थन, कुच, पयोधर,चूची (प्राचाः
| थप्पिअ वि [स्थापित] रक्खा हुआ, न्यस्त वि. थका हुआ, श्रान्त; 'थक्कं सव्वशरीरं | कुमाः काप्र १६१)। जीवि वि [जीविन्]
(पिंग)। हियए. सूलं सुदूसहं एई (सुर ७, १८५, ४ | स्तन-पान पर निभनेवाला बालक (श्रा १४)।
| थब्भ अक [स्तभ ] अहंकार करना । वई स्त्री [°वती] बड़े स्तनवाली (गउड)।
थब्भइ (सूत्र १, १३, १०) । थक्किम वि [श्रान्त] थका हुआ (पिंग)। विसारि वि [विसारिन् । स्तन पर थक्कव सक [स्थापय ] स्थापन करना,
| थब्भर पु[दे] अयोध्या नागरी के समीप
फैलनेवाला (गउड), सुत्त न [ सूत्र] रखना । थक्कवइ (प्राकृ १२०)। उरः-सूत्र (दे)। हर पुं[भर] स्तन का
का एक द्रह-दइ या झील (ती ११)।
थमिअ वि [दे] विस्मृत (दे ५, २५)।थग देखो थय = स्थगय। भवि. थगइस्सं
भार या बोझ (हे १,१८६)। (पि २२१)।
थगंधय पु[स्तनन्धय] स्तन-पान करनेवाला थय सक [स्थगय] पाच्छादन करना, थगण न [स्थगन] पिधान, ढकना, संवरण, बालक, छोटा बच्चा; 'निययं थणं धयंतं आवृत करना, ढकना। थएइ, थएसु (पि प्रावरण, आच्छादन, पर्दा (दे २, ८३ ठा थपंधर्य हंदि पिच्छंति' (सुर १०, ३७;
। ३०६, गा ६०५)। भवि. थइस्सं (गा अच्तु ६३)।
३१४) । हेकृ. थइउं (गा ३६४)। थगथग प्रक [थगथगाय ] धड़कना, थणण न [स्तनन] १ गर्जन, गरजना (सन थय वि [स्तृत] व्याप्त, भरपूर (से १, १)। काँपना। वकृ. थगथगित (महा)।
१, ५, २) । २ आक्रन्द, चिल्लाहट (सूत्र १, थय पु[स्तव] स्तुति, स्तवन, गुण-कीर्तन थगिय वि [स्थगित] पिहित, पाच्छादित, ५, १)। ३ आक्रोश, अभिशाप (राज)। ४ (अजि ३६ सं ४४)। प्रावृत (दस ५, १; आवम)।
आवाजवाला नीसास (सूत्र १, २, ३)। थयण न [स्तवन] ऊपर देखोः 'थुइथयणथगिय देखो थइ । ग्गाहि [प्राहिन्] थणय पु [स्तनक] दूसरी नरक-भूमि का वंदरणनमंसरणाणि एगट्ठिआणि एयाई' ताम्बूल-वाहक नौकर (सुपा ३३६)। । एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ६)।
(आव २)।
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