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तुणिय - तुलग्ग
तु
हुमा (बृह १) -
तु
[तुति ] रफू किया हुआ, साँधा
[तूष्णीम् ] मौन, चुप्पी, चुपकी, चुपचाप, चुपकेसे, मौन होकर (भवि ) ।
तुहि [दे] सूकर, सूधर (दे ५, १४) । तुहि देखो तुहि = तूष्णीम् (प्राक ३२ ) । तुहि वि [ तूष्णीक] मौन रहा हुआ, } मौन रहनेवाला, चुप रहनेवाला (प्रागा २५४ सुर ४, १४८) तुहिक वि [दे] मृदु-निश्चल (दे ५, १५) । देखो तुfor (स्वप्न ४२ ) । तुत्त देखो तो (सुपा २३७ ) ।तुद देखो तुअ । तुदए ( षड् ) । वकु. तुदं ( विसे १४७० ) ।
तुद पुं [तोद] प्रतोद, अरदार डंडा, चाबुक (सूत्र १, ५, २, ३ ) ।
तुन्नण न [तुन्नन] रफू करना ( गच्छ ३, ७ ) । - तुन्नाय देखो तुष्णाय ( दि १६४ ) । तुन्नार पुं [तुन्नकार] रफू करनेवाला शिल्पी (धर्मवि ७३) ।
[दे] १ कौतुक । २ विवाह, शादी। ३ सर्षप, सरसों, धान्य-विशेष । ४ कुतुप, घी श्रादि भरने का चर्म-पात्र (दे ५, २२) । ५ वि. प्रक्षित, चुपड़ा हुआ, घी श्रादि से लिप्त
तुपइअ
तुप्पलिअ तुष्पविअ
२००)। ६ स्निग्ध, स्नेह-युक्त (दे ५, २२ प्रोध ३०७ भा) । ७ न. घृत, घी (से १५, ३८ सुपा ६३४; कुमा)।
[] वेष्टित (२६) । -
तुमंतु [दे] क्रोध-कृत मनो-विकार विशेष (ठा ८ – पत्र ४४१ ) ।
तुमंतुम पुं [दे] १ तूकारवाला वचन, तिरष्कार वचन, तू तू (सूम १, ६, २७) । २ वाक्- कलह 'अप्पतु मंतु में' ( उत्त २९, ३९) । ३ वि. तूकारे से बात कहनेवाला (संबोध १७) । तुमुल पुं [तुमुल] १ लोमहर्षण युद्ध, भयानक संग्राम (गउड)। २ न. शोरगुल (पान)। ५६
पाइअसद्दमहणव
तुम्ह स [ युष्मत् ] तुम, श्राप ( हे १, २४६) ।
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तुम्हकेर वि [ त्वदीय] तुम्हारा (कुमा) । तुम्हर वि [ युष्मदीय ] श्रापका, तुम्हारा (हे १, २४६, २, १४७) । तुम्हार (प) ऊपर देखो (भवि ) । तुम्हारस [ युष्मदृश ] आपके जैसा, तुम्हारे जैसा (दे १, १४२३ गउड महा) । तुम्हेश्य वि [यौष्माक ] श्रापका, तुम्हारा (हे २, १४६: कुमा, षड् ) । तुट्ट क [ त्वग् + वृत् ] पार्श्व को घुमाना, करवट फिराना । तुयट्टइ, (कप्पः भग) । तुट्टेज, तुयट्टे जा (भगः श्रौप ) । हेकृ. तुयट्टित्तए (प्राचा) । कृ. तुयट्टियव्व (गाया १,१ भग, श्रप) ।
तुरंग पुं [तुरङ्ग] अश्व, घोड़ा (कुमा; प्रासू ११७)। २ रामचन्द्र का एक सुभट (पउम ५६,३८) तुरंगम पुं [तुरङ्गम] अश्व, घोड़ा (पान पिंग ) 1
वि [दे] घी से लिप्त (गा तुरंगिआ स्त्री [तुरङ्गिका ] घोड़ी (पा) । | ५२० अ ) । तुरंत देखो तुर
तुयट्टण न [ त्वग्वर्तन ] पार्श्व-परिवर्तन, करवट फिराना (श्रोध १५२ भाः श्रौप) । [वर्तन] करवट बदलवाना ।
(प्राचा) । तुयावइत्ता देखो तुअ । तुर प्रक [ त्वर] खरा होना, जल्दी होना, शीघ्र होना । वकृ. तुरंत, तुरंत, तुरमाण, तुरेमाण (हे ४, १७२: प्रासू ५८ षड् ) । तुर ] स्त्री [त्वरा ] शीघ्रता, जल्दी (दे ५,
तुरक्क पुं [दे तुरुष्क ] १ देश-विशेष, तु किंस्तान । २ श्रनायें जाति- विशेष, तुर्क (ती १४)
तुरग देखो तुरय (भग ११, ११; राय ) । “मुह पुं [मुख] अनार्य देश- विशेष (सूत्र १, ५टी) मेढ़ग! [°मेढ्रक ] श्रनायें देश - विशेष ( सू १, ५, १ टी) 1 तुरमणी देखो तुरुमणी (सट्टि ५७ टी) । तुरमाग देखो तुर ।
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तुरय पुं [तुरग ] १ श्रश्व, घोड़ा (परह १, ४) । २ छन्द - विशेष (पिंग) देहपिंजरण न[* देहापअरण] अश्व को सिगारना, सँवा रना, शृंगार करना (पान)। देखो तुरग । तुरयमुह देखो तुरंग-मूह ( पत्र २७४) ।
वरावाला, जल्दबाज (से ४, ३० ) । तुरिअ वि [त्वरित] १ स्वरा-युक्त, उतावला (पाश्र हे ४, १७२: श्रौपः प्राप्र ) । २ क्रिवि. शीघ्र जल्दी (सुपा ४६४: भवि ) इवि [गति] १ शीघ्र गतिवाला । २ पुं. श्रमितगति नामक इन्द्र का एक लोकपाल (ठा ४, १ ) 1 तुरिअ वि [तुर्य] चौथा, चतुर्थ (पुर ४, २५०; कम्म ४, ६६; सुपा ४६४ ) । निद्दा [निद्रा ] मरणदशा (उप पृ १४३) तुरिअ न [तूर्य ] वाद्य, वावित्र, बाजा; 'तुरिया संनिनाएण, दिव्वेगं गगणं फुलै (उत्त २२, १२) ।
तुरिमिणी देखो तुरुमणी (राज) 1तुरी स्त्री [दे] १ पीन, पुष्ट । २ शय्या का उपकरण (दे ५, २२) । तुरु न [दे] वाद्य-विशेष (विक्र ८७) । तुरुक्क न [तुरुष्क ] सुगन्धि द्रव्य-विशेष, जो धूप करने में काम प्राता है, लोबान, सिल्हक (सम १३७ णाया १, १ पउम २, ११० श्रौप
तुरुक्क पुं [तुरुष्क] १ देश-विशेष, तुर्किस्तान । २ वि. तुर्किस्तान का ( स १३) । तुरुक्की स्त्री [तुरुष्की] लिपि-विशेष (विसे ४६४ टी) ।
तुरुमणी स्त्री [दे] नगरी-विशेष ( भत्त ६२ ) ।
तुरें } देखो तुर ।
तुरेमाण
तुल सक[ तोलय् ] १ तौलना। २ उठाना। ३ ठीक-ठीक निश्चय करना । तुलइ तुलेइ (हे ४, २५; उव; वज्जा १५८ ) । वकृ. तुलंत (पिंग ) । संकृ. तुलेऊण ( बृह १ ) । कृ. तुलेअव्व (से ६, २६) । तुल' देखो तुला (सुपा ३६) । - तुलंगा देखो तुलग्गा (मच्छु ८०) तुलग्गन [दे] काकतालीय न्याय (दे ५, १५ से ४, २७) 1
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