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णक्खि-डिअ
पाइअसहमहण्णवो
३७६
सुपा १६)
| णचा ? देखो णा = ज्ञा।
बाल, कोतवाल
पाया थापा १, १८
लाल (णाया
(निचू ४)
नर्तन-शील
णक्खि वि [नखिन्] सुन्दर नखवाला (बृह | २, ७५; ३, ७७) । हेकृ. णश्चिउं (गा णट्टर वि [नर्तक नाचनेवाला, नचवैया
३६१) कृ. णश्चियव्व (पउम ८०, ३२)। णट्टग (प्राप्राणाया १,१; औप)। स्त्री. णख देखो णक्ख (कुप्र ५८)। प्रयो. कवकृ. णचाविजत (स २६)
ई (प्राप्र; हे २, ३० कुमा)। णग देखो णय = नग (पराह १, ४. उप ३५६
णञ्च न [ज्ञत्व] जानकारी, पण्डिताई (कुमा)। णट्टार पुं [नाट्य कार] नाट्य करनेवाला टी; सुर ३, ३४) । राय पुं [राज] मेरु | णच न [नृत्य नाच, नृत्य (दे ५, ८)। पर्वत (ठा ६)। [°वर] पुं [वर] श्रेष्ठ
णञ्चग वि नर्तक] १ नाचनेवाला। पुं. नट, गट्टाबअ वि [नर्तक नचानेवाला (कप्पू)। पर्वत (गाया १, १) । वरिंद पुं°वरेन्द्र] नचवैया (वव ६)।
णट्टिया स्त्री [नर्तिका] नटी, नर्तकी, नाचनेमेरु-पर्वत (पउम ३, ७६)।
णचण न [नर्तन नाच, नृत्य (कप्पू)। वाली स्त्री (महा)। णगर न [नकर, नगर] शहर, पुर (बृह १
णचणी स्त्री [नर्तनी] नाचनेवाली स्त्री (कुमा, णट टुमत्त पुन मत्त स्वनाम-ख्यात एक कप्प; सुर ३, २०) गुत्तिय, गोत्तिय पुं
विद्याधर (महा)। [गुप्तिक नगर रक्षक, कोटपाल, कोतवाल,
ण? [नष्ट] एक नरक स्थान (देवेन्द्र २८) । | णवाणखाणा शा। दरोगा (गाया १,१८ औप; पएह १, २;
२ न. पलायन (कुप्र ३७) । णचाविअ वि [नर्तित नचाया हुमा (प्रोष णाया १, २)। घाय [घात शहर में
णट्र वि [नष्ट] १ नष्ट, अपगत, नाश-प्राप्त २६५; ठा ६)। लूट-पाट (णाया १, १८)। "णिद्धमण न
(सूम १, ३, ३; प्रासू ८६) । २ पुंन. अहो[निर्धमन] नगर का पानी जाने का रास्ता, णचासन्न न [नात्यासन्न] अति समीप में
रात्र का सतरहवाँ मुहूर्त (राज)। सुइअ वि मोरी, खाल (णाया १, २)। रक्खिय पुं नहीं (पाया १,१)।
[ श्रुतिक१ जो बधिर-बहरा हुआ हो [रक्षिक] देखो 'गुत्तिय (निच ४) णञ्चिर वि [नर्तित] नचवैया, नाचनेवाला,
(णाया १,१-पत्र ६३)। २ शास्त्र के वास पुं [वास] राजधानी, पाटनगर | नर्तन-शील (गा ४२०; सुपा ५४, कुमा)। वास्तविक ज्ञान से रहित (राज)। (जं १-पत्र ७४)।
णच्चिर वि [दे] रमण-शील (दे ४, १८)। णव वि [नष्टवत् ] १ नाश-प्राप्त । २ न. णगरी देखो णयरी (राज)।
णच्चुण्ह वि [नात्युष्ण जो अति गरम न | अहोरात्र का एक मुहूर्त (राज)।" णगाणिआ स्त्री [नगाणिका] छन्द-विशेष |
हो (ठा ५, ३)।
णड अक [गुप्] १ व्याकुल होना। २ (पिंग)।
णज सक [ज्ञा] जानना । गज्जइ (प्राप्र)। सक. खिन्न करना। एडइ, गडति (हे ४, णगिंद पुं [नगेन्द्र] १ श्रेष्ठ पर्वत (पउम णज वि [न्याय्य न्याय-संगत (प्राकृ. १६)
१५०; कुमा)। कर्म. एडिजइ (गा ७७)। ६७, २७)। २ मेरु पर्वत (सूम १, ६)।
कवकृ. णडिज्जत (मुपा ३३८) । णगिण वि [नन] नंगा, वस्त्र-रहित (प्राचा णजमाग
णड देखो णट्ट = नट् । गडइ (प्राकृ ६६). उप पृ ३६३)।
णजर वि [दे] मलिन, मैला (दे ४, १९) णड देखो णल = नड (हे २, १०२)। णग देखो णग (तंदु ४५)।
णभर वि [दे] विमल, निर्मल (दे४, १९)। णड पुं[नट] १ नर्तकों की एक जाति, नट णग्ग वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (प्रातः दे
(हे १, १६५, प्राप्र)। ४, २८)। "इ णट्ट अक [नट 1१ नाचना । २ सक. हिंसा
खाइया स्त्री [ जित् ] गधार देश करना । गट्टइ (हे ४, २३०)।
[खादिता] दीक्षा-विशेष, नट की तरह का एक स्वनाम-ख्यात राजा (प्रौपः महा)। णग्गठ विदे] निर्गत, बाहर निकला हुना
णट्ट पुं[नट] नर्तकों की एक जाति; 'रणच्चंति कृत्रिम साधुपन (ठा ४, ४)।
गट्टा पभरणंति विप्पा' (रंभा: सणः कप्प)। डालनालला भाल, कपाल (ह १,४७, (षड्-पृष्ठ १८१)। णट्ट न [नाट्य] नृत्य, गीत और वाद्य,
२५७; गउड)। गग्गोह पुं [न्यग्रोध] वृक्ष-विशेष, बड़ का
नट-कर्म (णाया १, ३, सम ८३)। पाल णडालिआ स्त्री [ललाटिका] ललाट-शोभा, पेड़ (पाप; सुर १, २०५)५ परिमंडल न पुं [पाल] नाट्व-स्वामी, सूत्रधार (प्राचू
कपाल में चन्दन आदि का विलेपन (कुमा)। [परिमण्डल] संस्थान-विशेष, शरीर का
१)1°मालय [मालका देव-विशेष, णडाविअ वि [गोपित] १ व्याकूल किया प्राकार-विशेष (ठा ६)।
खण्डप्रपात गुहा का अधिष्ठायक देव (ठा २. हुमा । खिन्न किया हुआ (सुपा ३२५) ।। णघुस पुं[नघुष] स्वनाम-ख्यात एक राजा
३) अरिअ पुं [चायें] सूत्रधार णडि वि गुपित] व्याकुल (से १०, ७०; (पउम २२, ५५)। (मा ४)।
सण) । णचिरा देखो अइरा= अचिरात् (पि ३६५)।-ण नृत्या नाच, नृत्य (से १,८, कप्पू) डिअ विदे] १ वञ्चित, विप्रतारित (दे णञ्च प्रक [नृत् ] नाचना, नृत्य करना। णट्टअ न [नाट्यक] देखो णट्ट = नाय ४१६)। २ खेदित, खिन्न किया हुमा (दे णच्चइ (षड् ) वकृ. णचंत, णञ्चमाण (सुर । (मा ४)।
४,१६, पानः गाया १,६)
णजंत
देखो णा = ज्ञा ।
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