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चच्च-चडुलग
पाइअसद्दमण्णवो चच्च सक [चर्च ] चन्दन आदि का विलेपन | चञ्चिय वि[चर्चित विलिप्त (चेइय ८४५)। चडचडचड अक [चडचडाय ] 'चडकरना । चच्चेई (धर्मवि १५)।
चच्चुप्प सक [अर्पय् ] अर्पण करना, चड' आवाज करना। चडचडचडंति (विपा चञ्च पुं[चर्च] हेमाचार्य के पिता का नाम |
देना । चच्चुप्पइ (हे ४, ३६)। (कुप्र २०)। चच्छ सक [तक्ष ] छिलना, काटना। चडड पुं[चटट] ध्वनि-विशेष, बिजली के
गिरने की आवाज (सुर २, ११०)। चश्च पुं[चर्च] समालम्भन, चन्दन वगैरह
चच्छइ (हे ४, १९४)। का शरीर में उपलेप (दे ६, ७६)।
चच्छिअ वि [तष्ट] छिला हुमा (कुमा)। चडण न [आरोहण] चढ़ना, ऊपर बैठना चच्चर न [चत्वर] चौहट्टा, चौरास्ता, चौराहा,
चज सक [दृश ] देखना, अवलोकन (था १४ प्रासू १०१, उप ७२८ टी; पोष
करना । चज्जइ (दे ३, ४ षड्)। ३०; सट्ठि १४२; वज्जा ५४)।। चौक (णाया १,१; पएह १,३; सुर १,६२,
चज्जा स्त्री [चयों] १ आचरण, वर्तन । २ चडपड अक [दे] चटपटाना, छटपटाना, (हे २, १२ कुमा)।
चलन, गमन । ३ परिभाषा, संकेत (विसे क्लेश पाना। वकृ. चडपडंत (मुद्रा ७२)। चच्चरिअ पुंदे. चञ्चरीक] भ्रमर, भौंरा | २०४४)।
चडय पुंस्त्री [चटक पक्षि-विशेष, गौरैया (षड्)। चन्जिय वि [दृष्ट] अवलोकित, देखा हुआ |
पक्षी (द २,१०७) । स्त्री. या (दे ८, ३६)। चच्चरिया श्री [चर्चरिका] १ नृत्य-विशेष (महा)।
चडवेला स्त्री देखो चवेडा (पण्ह १, ३(रंभा)। २ देखो चञ्चरी (स ३०७)। चटुअ देखो चटुअ (गा १६२)।
पत्र ५३)। चच्चरी स्त्री [चर्चरी] १ गीत-विशेष, एक चट सक[दे चाटना, अवलेह करना; 'न चडावण न [आरोहण] चढ़ना (उप १५२)।. प्रकार का गाना 'वित्थरियचचरीरवमुहरियउ- य अलोणियं सिलं कोइ चट्टेई (महा)। चडाविय वि [आरोहित] चढ़ाया हुआ, जाणभूभागे' (सुर ३,५४); 'पारंभियचच्चरी- चट्ट पुन [दे] १ भूख, बुभुक्षा; 'जीवंति ऊपर स्थापितः 'रणखंभउरजिगहरे चडाविया गोया' (सुपा ५५)। २ गानेवाली टोली, उदहिपडिया, चट् टुच्छिन्ना न जीवंति' (सूक्त करण्यमयकलसा' (मुरिण १०६०१ सुर १३, गानेवालों का यूथः ‘पवत्तें मयणमहूसवे
७०)। २ पुं. चट्टा, विद्यार्थी । साला स्त्री ३६: महा)। निग्गयासु विचित्तवेसासु नयरचच्चरीसु', 'कहं
[शाला] चटशाला, चटसार, छोटे बालकों चडाविय वि [दे] प्रेषित, भेजा हुआ; नीयचच्चरी अम्हाण चच्चरीए समासन्न की पाठशाला (बृह १)।
'चाउद्दिसिपि तेणं चडावियं साहणं तत्रा परिव्वयई' (स ४२)। ३ छन्द-विशेष
चट्ट वि [चट्टिन] चाटनेवाला (कप्पू)। सोवि' (सुपा ३६५)। (पिंग)। ४ हाथ की ताली की आवाज (प्राव १)
चट्ठ पु[दे] दारु-हस्त, राठ की चडिअ वि [आरूढ] चढ़ा हुआ, पारूढ़ चटटुअ कलछी, परोसने का पात्र-विशेष
(सुपा १३७; १५३, १५६; हे ४, ४४५)। चञ्चसा स्त्री [दे] वाद्य-विशेष, ‘पटुसयं चच्च
चडिआर पुं [दे] पाटोप, आडम्बर (दे सारणं, अट्ठसयं चच्चसावायगाणं' (राय)।
चटुल - (दे ३, १, गा १६२ अ)। चच्चा स्त्री [दे] १ शरीर पर सुगन्धि पदार्थ चड सक [आ + रुह ] चढ़ना, ऊपर
चडु पुं [चटु] १ प्रिय वचन, प्रिय वाक्य । का लगाना, विलेपन (द ३, १६ पायः जं बैठना, आरूढ़ होना । चडइ (हे ४, २०६)।
२ व्रती का एक प्रासन । ३ उदर, पेट । ४ १; रणाया १, १, राय)। २ तल-प्रहार, संकृ. चडिउं, चडिऊण (सुपा ११४कुमा)।
पून. प्रिय संभाषण, खुशामद (हे १, ६७ हाथ की ताली ( दे ३, १६ षड् )।चड पु[दे] शिखा, चोटी (दे ३, १)।
प्राप्र) आर वि [ कार] खुशामद करनेचञ्चार सक [उपा + लभ ] उपालम्भ देना,
चडक्क पून [दे] १ चटत्कार, चटका (हे वाला, खुशामदी (पएह १, ३)। आरअ उलाहना देना । चच्चारइ (षड्)।
४, ४०६, भवि)। २ शस्त्र-विशेष (पउम वि [ कारक खुशामदी (गा ६०५)। चञ्चिक्क वि [दे] १ मण्डित, विभूषितः
चडुकारि वि [चटुकारिन्] खुशामदी (पिंड 'चंदुज्जयचच्चिक्का दिसाउ' (दे ३, ४); चडकारि वि [चटत्कारिन] 'चटत्' शब्द
४१४)। 'तणुप्पहापडलचच्चिक्को (धम्म ६ टी); करनेवाला (पवन प्रादि) (गउड)।
चडुत्तरिया स्त्री [दे] १ उतरचढ़। २ 'साहू गुणरयणचच्चिक्का' (चउ ३६)।२ चडग देखो चडय (पएण १)।
वाद-विवाद (मोह ७)। पुन. विलेपन; चन्दनादि सुगन्धि वस्तु का चडगर पुं[दे] १ समूह, यूथ, जत्था (पउम चडुयारि देखो चड़ कारि (पिंड ४८९)। शरीर पर मसलना (हे २, ७४); 'चचिक्को' ६०,१५; रणाया १, १-पत्र ४६)। २
चडुल वि [टुल] १ चंचल, चपल (से २, (षड् ); 'कुकुंमचच्चिकछुरियगो' (पउम आडम्बर, आटोप; 'महया चडगरत्तणेणं
। ४५; पउम ४२, १६) । २ कंपवाला, हिलता २८, २८ टी); 'पेच्छइ सुवन्नकलसं सुरचंदण- प्रत्यकहा हणई' (दसनि ३)।
हमा (से १, ५२)। पंकचचिक्क' (उप ७६८ टी); 'घणलेहिद- चडचड पु[चडचड] 'चडचिड' आवाज चडलग वि [दे. चटुलक] खण्ड-खण्ड किया पंकचच्चिको (मृच्छ ११०)। (विपा १, ६)।
हुआ, 'विदुलगचडुलगछिन्ने (सूनि ७१)।
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