________________
( २८ ) ब्राह्मणों की ही ओर से इस भाषा की तरफ अपनी स्वाभाविक घृणा' को व्यक्त करने के लिए इसका यह नाम दिया जाना
और अधिक प्रसिद्ध हो जाने के कारण पीछे से बौद्ध विद्वानों का भी मागधी की जगह इस शब्द का प्रयोग करना आश्चर्यजनक नहीं जान पड़ता।
उक्त प्राकृत भाषा-समूह में पालि भाषा के साथ वैदिक संस्कृत का अधिक सादृश्य देखा जाता है। इसी कारण से द्वितीय स्तर की प्राकृत भाषाओं में पालि भाषा सर्वापेक्षा प्राचीन मालूम पड़ती है।
पालि भाषा के उत्पत्ति-स्थान के बारे में विद्वानों का मत-भेद हैं। बौद्ध लोग इसी भाषा को मागधी कहते हैं और उनके मत से इस भाषा का उत्पत्ति-स्थान मगध देश है। परन्तु इस भाषा का मागधी प्राकृत के साथ कोई सादृश्य नहीं है। डॉ. कोनो ( Dr. Konw ) और सर ग्रियर्सन ने इस भाषा का पैशाची भाषा के साथ सादृश्य
देखकर पैशाची भाषा जिस देश में प्रचलित थी उसी देश को इसका उत्पत्ति-स्थान बताया है, उत्पत्ति-स्थान यद्यपि पैशाची भाषा के उत्पत्ति-स्थान के विषय में इन दोनों विद्वानों का मतैक्य नहीं है। डॉ. कोनो
के मत में पैशाची भाषा का उत्पत्ति-स्थान विन्ध्याचल का दक्षिण प्रदेश है और सर ग्रियर्सन का मत यह है कि इसका उत्पत्ति-स्थान भारतवर्ष का उत्तर-पश्चिम प्रान्त है। वहाँ उत्पन्न होने के बाद संभव है कि कोंकणप्रदेश-पर्यन्त इसका विस्तार हुआ हो और वहाँ इससे पाली भाषा की उत्पत्ति हुई हो।' परन्तु पालि भाषा अशोक के गुजरातप्रदेश-स्थित गिरनार के शिलालेख के अनरूप होने के कारण यह मगध में नहीं, किन्तु 'भारतवर्ष के पश्चिम प्रान्त में उत्पन्न हुई है और वहाँ से सिंहल देश में ले जाई गई है। यही मत विशेष संगत प्रतीत होता है, क्योंकि निम्नोक्त उदाहरणों से पालिभाषा का गिरनार-शिलालेख के साथ सादृश्य और पूर्व-प्रान्त-स्थित धौलि (खंडगिरि) शिलालेख के साथ पार्थक्य देखा जाता हैसंस्कृत
पाली गिरनारशिला
धौलिशिला राज्ञः राजिनो, रज्जो
राणो कृतम्
कतं इस विषय में डॉ. सुनोतिकुमार चटर्जी का कहना है कि "बुद्धदेव के समस्त उपदेश मागधी भाषासे बाद के समय में मध्यदेश (Donb) की शौरसेनी प्राकत में अनुवादित हुए थे और वे ही खिस्त-पूर्व प्रायः दो सौ वर्षे से पालि-भाषा के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं।" किन्तु सच तो यह है कि पालि भाषा का शौरसेनी और मागधी की अपेक्षा पैशाची के साथ ही अधिक सादृश्य है जो निम्नोक्त उदाहरणों से स्पष्ट जाना जाता है। संस्कृत पालि
पैचाची शौरसेनी
मागधी *क (लोक) क (लोक) क (लोक) .(लो) •(लोन) ग (नग) ग ( नग) ग ( नग)
.(एम) ०(एम) *च (शची) च (सची) च (सची)
०(सई)
०(शई) •ज (रजत) ज ( रजत) ज ( रजत)
० (रपद)
(लप्रद) *त (कृत ) त (कत) त (कत) द (कद)
ड (कड) र (कर) र (कर) र (कर) र (कर)
ल (कल)
लजिने
१. "लोकायतं कुतकं च प्राकृतं म्लेच्छभाषितम् ।
न श्रोतव्यं द्विजेनैतदधो नयति तद् द्विजम्' (गरुडपुराण, पूर्वखण्ड ९८, १७)। २. The Origin and Development of the Bengalee Language, VoL. I, page 57. ३. इन उदाहरणों में प्रथम वह अक्षर दिया गया है जिसका उस उस भाषा के नीचे दिए गए प्रक्षरों में परिवर्तन होता है और अक्षर
के बाद ब्राकेट में उसी अक्षरवाला शब्द स्पष्टता के लिए दिया गया है। * स्वर वणों के मध्यवर्ती प्रसंयुक्त वर्ण ।
Jain Education International
-For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org