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कप्पणा-कमल पाइअसद्दमण्णवो
२२३ कप्पणा स्त्री [कल्पना] १ रचना, निर्माण । कप्पोववत्तिआ स्त्री [कल्पोपपत्तिका] देव- घटना । २ अधिक रहना । कमइ (पिंड २३१ २ प्ररूपण, निरूपण (निचू १)। ३ कल्पना, लोक विशेष में उत्पत्ति (भग)।
पब ६१)। विकल्प (विसे १६३२)।
कप्फल न [कट्फल] इस नाम की एक कम [क्रम् ] १ पाद, पग, पाव (सुर १, कप्पणी स्त्री [कल्पनी] कतरनी, कैची (पराह वनस्पति, कायफल (हे २, ७७)।
८)। २ परम्परा, 'नियकुलकमागयामो पिउगा १,१: विपा १, ४, स ३७१)।
कप्फाड देखो कवाड = कपाट (गउड)। विज्जापो मज्झ दिन्नाओ' (सुर ३, २८) । कप्पर पुं[कर्पर खप्पर, कपाल, सिर की |
कप्पाड [दे] देखो कफाड (पास) । ३ अनुक्रम, परिपाटी (गउड)। ४ मर्यादा, खोपड़ी (बृह ४; नाट)। देखो कुप्पर = कफ पुं[कफ] कफ, शरीर स्थित धातु विशेष सीमा (ठा ४)। ५ न्याय, फैसलाः ‘अविकपर। (राज)।
प्रारिम कम ण करिस्सदि' (स्वप्न २१) । कप्परिअ वि [दे] दारित, चीरा हुआ (दे २, कफाड पुं[दे] गुफा, गुहा (दे २, ७)। ६ नियम (बृह १)। २० वजा ३४; भवि)।
कबंध (शौ) देखो कमंध (प्राकृ८५)। कम पुं [क्लम] श्रम, थकावट, क्लान्ति (हे कप्पास पुं[कार्पास] १ कपास, रुई । २ कब्बट्ठी स्त्री [दे] छोटी लड़की (पिंड २८५) ।
२, १०६; कुमा)। ऊन (निचू ३)।
कब्बड पूंन किबेट]१ खराब नगर, कप्पासत्थि पुं [कार्पासास्थि] त्रीन्दिय जीव- कब्बडग पुत्सित शहर (भगः परह १,
कमंडलु पुन [कमण्डलु] संन्यासियों का विशेष, क्षुद्र जन्तु-विशेष (जीव १)। २)। २ पुं. ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-बिशेष
एक मिट्टी या काष्ठ का पात्र (निर ३, १; कप्पासिअ वि [कासिक] १ कपास
पराह १, ४. उप ६४८ टी)। (ठा २, ३--पत्र ७८)। ३ वि कुनगर का बेचनेवाला (अणु १४६)। २ न. जैनेतर निवासी (उत्त ३०)।
कमंध न [कबन्ध] रुंड, मस्तकहीन शरीर शास्त्र-विशेष (अणु ३६, णंदि)। कब्बर देखो कब्बुर (प्राकृ ७)।
(हे १, २३६ प्रापः कुमा)। कप्पासिय वि [कार्पासिक] कपास का बना | कब्बाडभयय पुं[दे] ठीका पर जमीन खोदने | कमढ पुं[दे] १ दही की कलशी। २ हुआ, सूती वगैरह (अणु)।
का काम करनेवाला मजदूर ठा ४.१-पत्र | पिठर, स्थाली। ३ बलदेव । ४ मुख, मुंह कप्पासी स्त्री [कासी रुई का गाछ (राज)। २०३)।
(दें २,५५)। कप्पिआकप्पिअ न [कल्पाकल्प] एक जैन | कब्बुर । वि [कर्बुर] १ कबरा, चितक. कमढ । पूं. [कमठ, क] १ तापस-विशेष, शास्त्र (रणंदि २०२)।
कब्बुरय । बरा, चितला (गउड, अच्चु कमढग जिसको भगवान् पाश्वनाथ ने बाद में ६)। २ . ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव
कमढय जीता था और जो मरकर दैत्य हुपा कप्पिय वि [कल्पित] १ रचित, निर्मित (प्रौप) । २ स्थापित, समीप में रखा हुआः विशेष (ठा २, ३; राज)।
था (णमि २२)। २ कूर्म, कच्छप (पान) ।
३ वंश, बाँस । ४ शल्लकी वृक्ष (हे १, कब्बुरिअ वि [कर्बुरित] अनेक वर्णवाला, ‘से अभए कुमारे तं अल्लं मंसं रुहिर अप्प
१६६)। ५ न. मैल, मल (निचू ३)। ६ चितकबरा किया हुआः 'देहकतिकब्बुरियकप्पियं करेई' (निर १,१)। ३ कल्पना निर्मित, विकल्पित (दसनि १)। ४ व्यवस्थित (प्राचा:
साध्वियों का एक पात्र (निचू १; मोघ ३६ जम्मगिह' (सुपा ५४); 'मणिमयतोरणधोरसूत्र १, २) । ५ छिन्न, काटा हुआ (विपा
भा)। ७ साध्वियों को पहनने का एक वस्त्र णितरुणपहाकिरणकब्बुरिग्रं( कुम्मा ६; पउम ८२, ११)।
(मोघ ६७५; बृह ३)। कप्पिय वि [कल्पिक] १ अनुमत, अनिषिद्ध कभ (अप) देखो कफ (षड् )।
कमण न [क्रमण] १ गति, चाल । २ प्रवृत्ति (उवर १३०) । २ योग्य, उचित (गच्छ १; कभल्ल न [दे] कपाल, खप्पर (अनु ५, उवा)।
(प्राचू ४)।
कमणिया स्त्री [क्रमणिका] उपानत्, जूता बब ८) । ३ पुं. गीतार्थ, ज्ञानी साधुः ‘कि वा कम सक [क्रम् ] १ चलना, पाँव उठाना।
(बृह ३)। अकप्पिएणं' (वव १)।
२ उल्लंघन करना। ३ अक. फैलना, कमणिल्ल वि [क्रमणीवत् ] जूतावाला, जूता कप्पिया स्त्री [कल्पिका] जैन ग्रन्थ-विशेष, पसरना। ४ होनाः 'मणसोवि बिसयनियमो
पहना हुआ (बृह ३)। एक उपाङ्ग-ग्रन्थ (जं १; निर)।
न क्कमइ जो स सव्वत्थ' (विसे २४६); कमणी स्त्री [क्रमण] जूता, नत् (बृह ३)। कप्पूर पुं [कर कपूर, सुगन्धि द्रव्य-विशेष 'न एत्थ उवायंतरं कमई' (स २०६)। वकृ. कमणी स्त्री [दे] निःश्रेणि, सीढ़ी (दे २,८)। (पएह २, ५; सुर २, ६; सुपा २६३)। कमंत (से २, ६)। कृ. कमणिज (प्रौप)। कमणीय वि [कमनीय] सुन्दर, मनोहर कप्पोवग पुं [कल्पोपक] १ कल्प-युक्त । २ | कम सक [ कम् ] चाहना, वाञ्छना । कवकृ. (सुपा ३४; २६२)। देव-विशेष, बारह देव लोक-वासी देव (परण कम्ममाण (दे २, ८५)। कृ. कमणीय कमल पं [दे] १ पिठर, स्थाली। २ पटह, २१)।
(सुपा ३४; २६२); क.म्म (गाया १, १४ ढोल (दे २, ५४)। ३ मुख, मुँह (दे २, कप्पोववण्ण पुं [कल्पोपपन] ऊपर देखो टी-पत्र १८८)।
५४ षड्)। ४ हरिण, मृग; 'तत्थ य एगो (सुपा ८८)।
कम अक [ क्रम् ] १ संगत होना, युक्त होना, कमलो सगब्भहरिणीए संगनो वसई' (सुर
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