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ओत्थरिअ-ओमट्ट
पाइअसद्दमहण्णवो ओत्थरिअ वि [अवस्तृत] १ बिछाया हुआ। ओधूसरिअ वि [अवधूसरित] धूसर रंग- ओभासण न [अवभासन] १ प्रकाशन, २ व्याप्त (से ७,४७) ।
वाला, हलका पीला रंगवाला (से १०, उद्योतन (भग ८, ८)। २ आविर्भाव । ३ ओत्थरिअ वि [दे] १ आक्रान्त । २ जो २१)।
प्राप्ति (सूत्र १, १२)आक्रमण करता हो वह (दे १, १६६) ओनडिय वि [अवनटित अवगणित, तिर- ओभासण न [अवभापण] याचना, प्रार्थना ओत्थल्ल देखो उत्थल्ल = उत् + स्तु । प्रोत्थ- स्कृतः 'चं मोनडियमरुणपह' (सम्मत्त २१४) (वव ८) ल्लइ (प्राकृ ७५)।
ओनियट्ट वि [अवनिवृत्त] देखो ओणि- ओभासिय वि [अवभापित] १ याचित, ओत्थल्लपत्थल्ला देखो उत्थल्लपत्थल्ला (दे अत्त = अपनिवृत्त (कप्प)
प्रार्थित (बव ६)। २ न. वाचना, प्रार्थना १, १२२) ओपल्ल वि [दे] अपदीर्ण, कुण्ठित; 'तते
(बृह १)। ओत्थाडिय बि [अवस्तृत] बिछाया हुआ णं से तेतलिपुत्ते नीलुप्पल जाव असि खंधे
ओभुग्ग वि [अवभुन] वक्र, बांकाः (गाया (भवि)।
१,८-पत्र १३३)IV मोहरति, तत्थवि य से धारा प्रोपल्ला' (गाया ओत्थार सक [ अब + स्तारय् ] आच्छादित
ओडिय वि [ अवमुक्त] छुड़ाया हुआ, १, १४)। करना । कर्म. प्रोत्थारिज्जति (स ६६८)। ओप्प वि [दे] स्ट, ओप दिया हुआ (षड् )
रहित किया हुआः तेणवि कड्ढिऊरणलक्खं ओदइग देखो ओदइय (अज्झ १३६) ।
पित्र सूई-प्रोभोडियो नियकुकुडो' (महा) । ओप्प सक [अर्पय ] अर्पण करना । प्रोप्पेइ । ओदइय पुंन [औदयिक] १ उदय, कर्म
| ओम धि [अवम] असार, निस्सार (प्राचा
(हे १, ६३) विपाक (भग ७, १४; विसे २१७४) । २ वि.
२, ५, २, १)। ओप्पा स्त्री [दे] शाण प्रादि पर मरिण वगैरह उदय निष्पन्न (विसे २१७४; सूत्र १, १३) ।
ओम वि [ अवम] १ कम, न्यून, हीन ___ का घर्षरण करना (दे १,१४८) ३ पुं, कर्मोदय रूप भावः 'कम्मोदयसहावो
(प्राचा)। २ लघु, छोटा (मोघ २२३ भा)। ओप्पाइय वि [औत्पातिक] उत्पात-सम्बन्धी सब्बो असुहो सुहोय मोदइओं (विसे ३४६४)।
३ न. दुभिक्ष, अकाल (ोघ १३ भा)। (प्रौप)। ४ वि. उदय होने पर होनेवाला (विसे
'कोह वि [ कोष्ट] ऊनोदर, जिसने कम ओप्पिअ वि [अर्पित समर्पित (हे १, ६३)।२१७४) ।
खाया हो वह (ठा ४) । चेलग, चेलय ओप्पिअ वि [दे] शाण पर घिसा हुआ, ओदच न [औदात्य ] उदात्तता, श्रेष्ठता
वि [°चेलक] जीणं और मलिन वस्त्र धारण 'रिणवमउडोप्पिअपयशह' (दे १, १४८)। (प्रारू)।
करनेवाला (उत्त १२, प्राचा)। रत्त पुं ओदज न [औदार्य] उदारता (प्रारू)।
ओप्पील पुं[दे] समूह, जत्था (पान)। [ रात्र] १ दिन-क्षय, ज्योतिष की गिनती ओदण न [ओदन] भात, रोंधा हुआ चावल |
ओप्पुंसिअ । देखो उप्पुसिअ (गउड; पि | के अनुसार जिस तिथि का क्षय होता है वह
ओप्पुसिअ ४८६) । (पएह २, ५, प्रोध ७१४. चारु १)
(ठा ६)। २ अहोरात्र, रात-दिन (प्रोध ओबद्ध वि [अवबद्ध] १ बंधा हुआ। २ ओदरिय विऔदरिक पेट-भरा, पेट भरने
२८५) अवसन्न (वव १)
ओमइल्ल वि [अवमलिन] मलिन, मैला (से के लिए ही जो साधु हुआ हो वह (निचू १) ओबुझ सक [ अव + बुध् ] जानना। ओदहण न [अबदहन] तप्त किए हुए लोहे
२, २५) । वकृ. ओबुज्झमाग (प्राचा)।
ओमंथ [दे] देखो ओमत्थ (पास) के कोश वगैरह से दागना (राज) । ।
ओव्भालग देखो उन्भालण (दे १, १०३) । ओमंथिय वि [द] अधोमुख किया हुमा, ओदारिय न [औदार्य] उदारता (प्रारू)।
ओभग्ग वि [अवभग्न] भग्न, नष्ट (से ३, . नमाया हुआ (गाया १,१)। ओद्द वि [आहे] गोला (प्राकृ २०)।
६३, १०, २३)।
| ओमंथिय वि [अवमस्तिक] शीर्षासन से ओइंपिअ वि [द] १ आक्रान्त । २ नट ओभावणा स्त्री [अपभ्राजना] लोक-निन्दा, स्थित, नीचे मस्तक और ऊँचे पैर रखकर (दे १, १७१)IV
अपकीति (राज)।
| स्थित (णंदि १२८ टी)। ओद्धंस सक [अव + ध्वंस्] १ गिराना ।
ओभास अक [अब + भास् ] प्रकाशना, ओमंस वि [दे] अामृत, अपगत (षड् ) । २ हटाना। ३ हराना। कवकृ. 'परवाईहिं।
चमकना । वकु ओभासमाण (भग ११, ओमजण न [अवमजन स्नान-क्रिया (उप अरणोक्ता अरणउत्थिएहि अणोद्धंसिज्ज
६)। प्रयो. प्रोभासेइ (भग) प्रोभासंति, अोभा- ६४८ टी)। माणा विहरंति' (प्रौप)।
सेंति (सुज १६) कृ. ओभासमाण (सूत्र ओमज्जायण पुं[अवमज्जायन] ऋषिओधाव सक [ अव + धाव ] पीछे दोड़ना। १, १४)।
विशेष (जं ७, इक) ।। अोधावइ (महा)।
ओभास सक [अब + भाष् ] याचना करना, ओमजिअ वि [अबमार्जित] जिसको स्पर्श ओधुण देखो अन्धुण । कर्म. अोधुव्वंति (पि | मांगना । कवकृ. ओभासिजमाण (निचू २)M कराया गया हो रह, स्पशित (स ५६७) ।। ५३६) । संकृ. ओधुणिअ (पि ५६१)। ओभास पुं[अवभास] १ प्रकाश (प्रौप)। आम? वि [अवमृर] स्था, छुपा हुमा (से ओधूअ वि [अवधूत] कम्पित (नाट)। २ महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)।
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