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१८८ पाइअसहमहण्णवो
उस्सूण-ऊरु कर वि [कर] उत्कण्ठा-जनक (णाया | उस्सेह [उत्सेध] १ ऊँचाई (विपा १,१)। उहर न [उपगृह] छोटा घर, प्राश्रय-विशेष १,१)।
२ शिखर, टोंच (जीव ३)। ३ उन्नति, अभ्यु- (पराह १, १)। उस्सूण वि [उच्छून] सूजा हुआ, फूला हुआ दयः 'पडणंता उस्सेहा' (स ३६६)। । उहस सक[ उप + हस् ] उपहास करना । (उप ५६४ गउड; स २०३) ।।
उहसइ (प्राकृ ३४)। उस्सेहंगुल न [उत्सेधागुल] एक प्रकार उस्सूर न [उत्सूर] सन्ध्या, शाम; 'बच्चामो
उहार पुं [उहार] मत्स्य विशेष (राज)।।
का परिमाण (विसे ३४० टी)। नियनयरे उस्सूरं वट्टए जेण' (सूर ७, ६३;
उहिंजल पुं [दे] चतुरिन्द्रिय जन्तु विशेष उह स [उभ] दोनों, युग्म, युगल (षड् ) ।। उप पृ २२०)।
(सुख ३६, १४६) उस्सेअ पुं[उत्सेक] १ सिंचन । २ उन्नति ।
उहट्ट अक [अप + घट्ट.] नष्ट होना। उहिंजलिआ स्त्री [दे] ऊपर देखो (उत्त ३६, ३ गर्व (चारु ४५) उहट्टइ (सम्मत्त १६२)
१४६)। उस्सेइम वि [उत्स्वेदिम] आटा से मिश्रित उहद् टु देखो उबट्ट = उद् + वृत् ।। उहु (अप) देखो अहो = ग्रहो (सरण)। पानी, पाटा-धोया जल (कप्प; ठा ३, ३)। । उहय स [उभय] दोनों, युग्म (कुमाः भवि)। उहुर वि [दे] थवाङ, मुख, अधोमुख (गउड)।
।। इसिरिपाइअसद्दमण्णवे उपाराइसद्दसंकलणो
णाम पंचमो तरंगो समत्तो
ऊ
ऊ पुं[ऊ] प्राकृत वर्णमाला का षष्ठ स्वर- ऊढा स्त्री [ऊढा] विवाहिता स्त्री (पान) । अमिगण न दे] पोखरणक, चुमना (धर्म २)। वणं (हे १, १ प्रामा)।
ऊढिअय वि [दे] १ प्रावृत, आच्छादित । ऊमिणिय वि [दे] प्रोञ्छित, जिसने स्नान ऊ प्रदे] निम्नलिखित अर्थों का सूचक | २ न. पाच्छादन, प्रावरण (पान) । के बाद शरीर पोंछा हो वह (स ७५) । अव्यय-१ गर्दा, निन्दा; 'ऊ पिल्लज'। ऊण वि [ऊन न्यून, हीन (पउम ११८, ऊमित्तिअ न [दे] दोनों पाश्वों में प्राघात २ आक्षेप, प्रस्तुत वाक्य के विपरीत अर्थ की ११६)। वीसइम वि[विंशतितम उन्नी
करना (दे १, १४२) । आशंका से उसे उलटाना; 'ऊ कि मए सवाँ (पउम १६, ८०)
ऊर पुं[दे] १ ग्राम, गाँव । २ संघ, समूह भरिण। ३ विस्मय, आश्चर्यः 'ऊ कह
ऊण न [ऋण] ऋण, करजा (नाट) ।। | मुरिणा प्रहयं । ४ सूचना; 'ऊ केरण ग
(दे १, १४३)। ऊणंदिअ वि [दे] आनन्दित, हषित (दे १, ऊर देखो तर से ८,६५) विएणायं' (हे २, १६६ षड्)।
१४१ षड् ) ऊअट्ट वि [अववृष्ट] वृष्टि से नष्ट (पान)V
°ऊर देखो पूर (से ८, ६५; गा ४५; २३१)। अणिमा स्त्री [पूर्णिमा] पूर्णिमा', तो तोए ऊरण ऊरण मेष, भेड़ (रायः विसे) । ऊआ स्त्री [दे] यूका, (दे १, १३६)
चेव ऊरिणमाए भरिऊरण भंडस्स वहणाई ऊरणी स्त्री [दे] मेष, भेड़ (दे १, १४०)। आस पुं [उपवास] भोजनाभाव (हे १, पस्थिनो पारसउलं' (महा)।
ऊरणीअ वि [औरणिक भेड़ी चरानेवाला १७३)। ऊगिय वि [दे] अलंकृत (षड् )। ऊणिय वि [ऊनित] कम किया हुआ (जं (अणु १४४) । ऊज्माअ देखो उवज्झाय (हे १, १७३२)।
ऊरय वि [पूरक] पूर्ति करनेवाला (भवि)। प्रामा)।
ऊणिय पुं[ऊणिक] सेवक-विशेष (प्रश्नव्या० ऊरस वि [औरस] पुत्र-विशेष, स्व-पुत्र ऊड देखो कूड (से १२, ७८ गा ५८३)। पत्र १३)।
| (ठा १०)। ऊढ वि [ऊद] वहन किया हुआ, धारण । ऊणोयरिआ स्त्री [ऊनोदरिता] कम पाहार | ऊरिसंकिअ वि [दे] रुद्ध, रोका हुमा (षड्)। किया हुआ; 'ऊढकलं वज्जुणपरिमलेसु सुरम- करना, तप-विशेष (भग २५, ७; नव २८) Mऊरी प्र[ऊरी] १ अंगीकार । २ विस्तार । दिरतेसु' (गउड)।
ऊतालीस। स्त्री न [एकोनचत्वारिंशत कय वि [कृत] अंगीकृत, स्वीकृत (उप ऊढ वि [ऊद] परिणीत, विवाहित (धर्मसं ऊयाल । उनचालीस, ३६ (सुज २, ३, ७२८ टी)।१३९०)
पत्र ५२, देवेन्द्र.२६४)।'
। ऊरु पुं[ऊरु] जङ्घा, जाँघ (गाया १, १८
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