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उवसाम-उवहिंड पाइअसहमहण्णवो
१८१ उबसाम पुं [उपशम] उपशान्ति (सिरि उवसोभिय वि [उपशोभित] सुशोभित, २ उपस्थित करना। ३ अर्पण करना । उव२३५)TV विराजित (प्रौप)।
हरइ हि ४, २५६)। भूका. उवहरिसु (ठा उवसाम देखो उवसम (विसे १३०६) । उवसोहा स्त्री [उपशोभा] शोभा, विभूषा| ६) उवसामग वि [उपशमक] १ क्रोधादि को (सुर ३, १०४)।
उवहस सक [उप+हस् ] उपहास करना, उपशान्त करनेवाला (विसे ५२९; प्राव ४)। उवसोहिय वि [उपशोधित निर्मल किया हँसी करना । कृ उवहसणिज्ज (स ३)।
Har रखनेवालाः 'जबसामग- | हुमा, शुद्ध किया हुमा (णाया १, १) उपहसिअ वि [उपहसित] १ जिसका उपसेढिगयस्स होइ उवसामगं तू सम्मत्तं' (पिसे | उवसोहिय देखो उवसोभिय (सुपा ५ भविः ।
हास किया गया हो वह (पि १५५)। २ न. २७३५) सार्ध ६६)।
उपहास (तंदु)। उवसामण न [उपशमन] उपशान्ति, उपशम | | उवस्सग्ग देखो उवसग्ग (कस) IV
उवहा स्त्री [उपधा] माया, कपट (धर्म ३)। (स ४६९) । उवस्सय पुं [उपाश्रय] जैन साधुओं के
उवहाण न [उपधान] १ तकिया, उमीसा स्वसामणया स्त्री [उपशमना] उपशम (ठा निवास करने का स्थान (सम १८८; प्रोष
(दे १, १४०; सुर १२, २५; सुपा ४)। २ ८)IV १७ भाः उप ६४८ टी) ।
तपश्चर्या (सूत्र १, ३, २, २१)। ३ उपाधि उवसामय देखो उवसामग (सम २६; विसे | उवस्सा स्त्री [उपाश्रा] द्वेष (वव १)।
उवस्सिय वि [उपाश्रित] १ द्वेषी (वव १)। १३०२)
'सच्छपि फलिहरयणं उवहारणवसा कलिजए | २ अङ्गीकृत। ३ समीप में स्थित । ४ न.
कालं' (उप ७२८ टी) उवसामिय वि [औपशमिक] १ उपशमसंबन्धी । २ पुं. भाव-विशेषः 'मोहोवसमस| द्वेष (राज)
उवहार पुं [उपहार] १ भेंट, उपहार (प्रति हावो, सव्वो उवसामिनो भावो' (विसे ३४- उबस्सुदि स्त्री [उपश्रुति] प्रश्न-फल को जानने ७४)। २ विस्तार, फैलावः ‘पहासमुदप्रोव१४)/न. सम्यक्त्व-विशेष बिसे ५PRON के लिए ज्योतिषी को कहा जाता प्रथम वाक्य
हारेहिं सव्वो चेव दीवयंत' (कप्प)IV उवसामिय वि [उपशमित] शान्त किया (हास्य १३०)।
उवहारणया देखो उवधारणया (राज) हुमा (वव १)।
उवह स [उभय दोनों, युगल (कुमाः है २, . उवहारिअ वि [उपधारित अवधारित, उवसाह सक [उप + कथ् ] कहना। उव१३८)
निश्चित (सूत्र २, ७)। साहद (सण)। उवह अ[दे] 'देखो' अर्थ को बतलानेवाला
उवहारिआ। स्त्री [दे] दोहनेवाली स्त्री (गा उवसाहण वि[उपसाधन] निष्पादक (सण)।
अव्यय ( षड्)।
उवहारी ७३१ दे १, १०८) IV उवसाहिय वि [उपसाधित] तैयार किया | उवहट्ट सक[समा +रभ् ] शुरू करना,
उवहारुल्ल वि [उपहारवत् ] उपहारवाला हुआ (पाउम ३४, ८; सण)। प्रारम्भ करना। उत्रहट्टइ ( षड्)।
(संक्षि २०)। उवसित्त वि [उपसिक्त सिक्त, छिड़का हुआ उवहड वि [उपहृत] १ उपढौकित, उपस्था
का हुआ | उवहड वि [उपहृत] १ उपढौकित, उपस्था- | उवहास पु [उपहास] हँसी, ठट्ठा, दिल्लगी (रंभा)।
पित (राज)। २ भोजन-स्थान में अर्पित भोजन (हे २, २०१) उबसिलोअ सक [उपश्लोकय ] वर्णन (ठा ३, ३)।
उवहास वि [उपहास्य हँसी के योग्य करना, प्रशंसा करना। कृ. उपसिलोअइदब उवहण सक [उप+ हन] १ विनाश करना ।
'सुसमत्थो वि हु जो, (शौ) (मुद्रा १६८) २ आघात पहुँचाना । उवहणइ (उव) । कर्म.
जणयअज्जियं संपयं निसेवेइ । उवसुत्त वि उपसुप्त] सोया हुआ (से १५, उवहम्मइ ( षड् ) । वकृ. उवणंत (राज) सो अम्मि ! ताव लोए, ममंव
उवहणण न [उपहनन] १ प्राघात। २ उवहासयं लहई' (सुर १, २३२)।। उवसुद्ध वि [उपशुद्ध] निर्दोष (सूत्र १, ६) विनाश (ठा १०)।
उवहासणिज वि [उपहसनीय] हास्यास्पद उवसूइय वि [उपसूचित] संसूचित (सरण)। उवहत्थ सक [ समा + रच्] १ रचना, (पउम १०६, २०)। उवसेर वि [दे] रति योग्य (दे १, १०४) बनाना । २ उत्तेजित करना । उबहत्वइ (हे | उबहि उदधि] समुद्र, सागर (से ५, ४०; उबसेवण न [उपसेवन सेवा, परिचय (पव | ४, ६५)
४२; भवि) उबहस्थिय वि [समारचित] १ बनाया| उवहि पुत्री [उपाधि] १ माया, कपट उबसेवय वि [उपसेवक] सेवा कग्नेवाला, हुआ। २ उत्तेजित (कुमा)।
(माचा)। २ कर्म (सूम १, २)। ३ उपभक्त (भवि) M उवहम्म देखो उवण।
करण, साधन; "तिविहा उवही पएणत्ता' उवसोभ अक [उप + शुभ ] शोभना, विरा-उवह्य वि [उपहत] १ विनाशित (प्रासू | (ठा ३; अोघ २)IV जना। वकृ. उवसोभमाण, बसोभेमाण १३५) । २ दूषित (बृह १)V
उवहिंड सक[उप + हिण्ड् ] पर्यटन करना, (भग; णाया १,१)V
| उवहर सक [ उप + हृ] १ पूजा करना। घूमनाः 'भिक्खत्थं उवहिडे (संबोध ४१) Iv
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