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१७८ पाइअसद्दमहण्णवो
उवयारय-उवलधु उवयारय वि [उपकारक उपकार करने. ल्ल वि [तन] ऊपर का, ऊर्ध्व-स्थित (सम उवलंभिज्जइ (पि ५४१)। वकृ. उवलंभेमाण वाला (धम्म ८ टी)
४३; सुपा ३५; भगः हे २, १६३; सम २२ (णाया १, १८) ।। उवयारि वि [उपकारिन् ] उपकारक (स ८६)। हुत्त वि [ अभिमुख] ऊपर की उवलंभ पुं [उपलम्भ] १ लाभ, प्राप्ति (सुपा २०८ विक २३, विवे ७६) तरफ (सुपा २६६)।
६) । २ ज्ञान (स ६५१) । ३ उलाहना; एवं उवयारिअ वि [औपचारिक] उपचार से उवरिं ऊपर देखो (कुमा)।
बहूवलंभ (उप ६४८ टी)V संबन्ध रखनेवाला (उवर ३४) ।
उवरितण देवो उपरि-म (धर्मवि १५१) Vउवलंभ देखो उवालंभ = उपालम्भः 'उवलंउवयालि पुं[उपजालि] १ एक अन्तकृद् मुनि,
भम्मि मिगावई नाहियवाई वि वत्तव्वे' उवरुध सक [उप + रुध् ] १ अटकाव जो वसुदेव का पुत्र था और जिसने भगवान्
(दसनि १, ७५) IV करना। २ अड़चन डालना। ३ प्रतिबन्ध श्रीनेमिनाथजी के पास दीक्षा लेकर शत्रुञ्जय
उवलंभण न [उपलम्भन] प्राप्ति (णंदि
करना, रोकना। कर्म.उवरुज्झइ, उवधिज्जइ, पर मुक्ति पाई थी (अंत १४)। २ राजा (हे ४, २४८) iv
२१०)। श्रेणिक का इस नाम का एक पुत्र, जिसने
उवलंभणा स्त्री [उपलम्भना] उलाहना उवरुद्द पुं[उपरुद्र] नरक के जीवों को दुःख भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर
'धएणं सत्यवाहं बहहि खेज्जणाहि य रुटणाहि देनेवाले परमाधामिक देवों की एक जातिः विमान में देव-गति प्राप्त की थी (अनु १)।
य उवलंभणाहि य खेजमारणा य रुंटमारणा य 'रुद्दोवरुद्द काले अ, महाकाले त्ति यावरे'
उवलंभेमारणा य धरणस्स एयमठे गिवेदेति' उवरइ स्त्री [उपरति] विराम, निवृत्ति (विसे (सम २८); 'भंजंति अंगमंगा रिग, ऊरुबाहुसि- |
(गाया १,१८) २१७७, २६४०; सम ४४)। राणि करचरणा। कप्पेंति कप्पणीहिं, उवरुद्दा
उवलक्ख सक [उप + लक्षय ] जानना, उवरंज सक [ उप + रञ्ज] ग्रस्त करना। पावकम्मरया'
पहिचानना । उवलक्लेइ (महा) । संकृ. कर्म. उवरज्जदि (शौ) (मुद्रा ५८) ।
(सूम १, ५)
उवलक्खेऊण (महा)। कृ. उवलक्खिज्ज उवरग देखो ओअरय; 'उवरगपविट्ठाए करणग- | उवरुद्ध वि [उपरुद्ध] १ रक्षित । २ प्रतिरुद्ध,
(उप पृ.७) दारदेसट्ठिएण दि8 तं | अवरुद्ध; 'पासत्थपमुहचारीविरुद्धधरणभव्वसत्थाणे उवलक्ख पुं[उपलक्ष] ज्ञान, खबर, मालूम पुव्ववरिणयचेट्ठिय' (महा)। (साधं ९८ उप पृ ३८५)
'खित्ताई अणुवलक्खं रयणाई रुक्खगहणम्मि' उवरत्त वि [उपरक्त] १ अनुरक्त, राग-युक्त;
उवरोह सक [उप+रोधय । अड़चन (कुप्र ३२६) V 'कुमरगुणेसूवरत्ता' (सूपा २५६)। २ राह से डालना। कृ. उवराहणाय (सुख १,४०) उपलक्ख ण न [उपलक्षण] १ पहिचान ग्रसित (पास)। ३ म्लान (स ४७३) उवरोह पुं [उपरोध] १ अड़चन, बाधा (सुपा ६१) । २ अन्यार्थ-बोधक संकेत उवरम अक [ उप + रम् ] निवृत्त होना, (विसे १४१३; स ३१६); 'भूत्रोवरोहरहिए' (श्रा ३०) विरत होना; 'भो उवरमसु एयानो असुभज्झ
(आव ४)। २ पटकाव, प्रतिबन्ध (बृह १; | उवलक्खिअ वि[उपलक्षित] १ पहिचाना वसारणायो' (महा)। स १५) । ३ घेरा, नगर आदि का सैन्य द्वारा
हुप्रा, परिचित (श्रा १२)TV उवरम पुं [उपरम] १ निवृत्ति, विराम, वेष्टन; 'उवरोहभया कीरइ सप्परिखो पुरवरस्स
उवलग्ग वि [उपलग्न] लगा हुआ, लग्न (उप पृ ६३) । २ नाश (विसे ६२) पागारो' (बृह ३) । ४ निर्बन्ध, प्राग्रह
'पउमिणिपत्तोवलग्गजलबिदुनिचयचित्तं (कप्प; उवरय वि [उपरत] १ विरत, निवृत्त (आचा; (स ४५७)
भवि) सुपा ५०८)। २ मृत (स १०४)1V उवरोहिअ वि [उपरोधित] जिसको उपरोध
उवलद्ध वि [उपलब्ध] १ प्राप्त। २ विज्ञात;
-निर्बन्ध किया गया हो वह (कुप्र १३५ उवरय देखो उवरगः 'उवरयगया दारं पिहिऊण
'जइ सव्वं उवलद्ध, जइ अप्पा भाविनो ४०६)। किपि मुणमुरांती चिट्ठई (महा)।
उसमेण' (उवः णाया १, १३, १४) । ३ उवरल (अप) देखो उव्वरिय [दे (पिंग) उवरोहि वि [उपरोधिन्] उपरोध करने
उपालब्ध, जिसको उलाहना दिया गया हो वह उवराग! पुं[उपराग] सूर्य या चन्द्र का वाला (आव ४)
(उप ७२८ टी)। उवराय । ग्रहण, राहु-ग्रहण (पएह, १, २, |
उवल पुं [उपल] १ पाषण, पत्थर (प्रासू उवलद्धि स्त्री [उपलब्धि] १ प्राप्ति, लाभ । से ३, ३६; गउड)।
१७५) । २ टाँकी वगैरह को संस्कृत करने- २ ज्ञान (विसे २०६)V उवराय पुं[उपरात्र दिन, 'रामोवरायं अप
वाला पाषाण-विशेष (पएण १)TV
उवलद्धिय देखो उवलद्धः 'सत्तरत्तछुहियस्स मे डिन्ने अनगिलायं एगया भुंजे' (प्राचा)। उवलम्बण पुं[उपलम्बन] सांकल (सिकड) भक्खमुवलद्धियं, ता तुमं भक्खिस्स' (कुप्र उवरि भ[उपरि] ऊपर, ऊध्वं (उव)। भासा वाला एक प्रकार का दीपक (अनु)।। ५६) स्त्री [भाषा] गुरु के बोलने के अनन्तर ही उवलंभ सक [उप + लभ्] १ प्राप्त करना। उवलधु वि [उपलब्धृ] ग्रहण करनेवाला, विशेष बोलना (पडि)। म, मग, मय, २ जानना । २ उलाहना देना । कर्म, जाननेवाला (विसे ६२) ।
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