________________
१७६ पाइअसहमहण्णवो
उवणय-उवद्दविय उवणय पुं [उपनय ] यज्ञोपवीत संस्कार, | उवणी सक [उप + नी] १ समीप में लाना, | उवदंस सक [उप + दर्शय् ] दिखलाना, उपहार, भेंट (राय १२७) ।।
उपस्थित करना । २ अर्पण करना । ३ इकट्ठा | बतलाना । उवदंसइ (कप्पा महा) । उवदंसेमि उवणयण न [उपनयन] १ उपसंहार (वव
करना। उवणेति (उवा); उत्रणेमो। भवि. (विपा १, १) । भवि. उवदंसिस्सामि १)। २ उपस्थापन (पिंड ४४१)।
उवणेहिइ (पि ४५५, ४७४, ५२१)। (महा)। वकु. उवदंसेमाण (उवा)। कवकृ.
कवकृ. उवणिज्जत (से ११, ५३)। संकृ. उवदंसिजमाण (गाया १, १३)। संकु. उवणयण न [उपनयन] उपवीत-संस्कार,
'से भिक्खुणो उवणेत्ता प्रणेगे' (सूत्र २, उवदंसिय (प्राचा २)। यज्ञ-सूत्र धारण संस्कार (पएह १, २) उवणिअ देखो उवणीय (मे ४, ५५)।
उवदंस पुं[उपदंश] १ रोग-विशेष, गर्मी, उपणिक्खित्त वि [उपनिक्षिप्त व्यवस्थापित | उवगीअ न [उपनीत] उपनयन (अणु
सुजाक । २ अवलेह, चाटना (चारु ६) (प्राचा २)। | २१७)। वयण न [वचन] प्रशंसा-वचन
उवदसण न [उपदर्शन] दिखलाना (सण)। उणिक्खेव पुं [उपनिक्षेप] धरोहर, रक्षा | (पाचा २, ४, १, १)।
कूड पुं[कूट] नीलवंत नामक पर्वत का पास रखा धन (वव उवणीय वि [उपनीत] १ समीप में लाया
एक शिखर (ठा २, ३)।। उणिग्गम पुं[उपनिर्गम] १ द्वार, दरवाजा हुआ (पानः महा)। २ अर्पित, उपढीकित
उवदंसिय वि [उपदशित] दिखलाया हुआ (से १२, ६८) । २ उपवन, बगीचा (गउड) (औप) । ३ उपनययुक्त, उपसहृत (विसे REET
(सुपा ३११) । उणिग्गय वि [उपनिर्गत समीप में निकला
टी; अरण) । ४ प्रशस्त, श्लाषित (आचा
उवदंसिर वि [ उपदर्शिन् ] दिखलानेवाला २)। चरय पुं [°चरक] अभिग्रह विशेष हुआ (प्रौप)। को धारण करनेवाला साधु (प्रौप)
(सरण) । उवणिज्जत देखो उवणी।
उवदंसेत्तु वि [उपदर्शयितु] दिखलानेवाला उवणिमंत सक [ उपनि + मन्त्रय ] निमउवण्णत्थ वि [उपन्यस्त ] उपन्यस्त, उप
(पि ३६०)। न्त्रण देना । भवि. उवरिणमंतेहिति (प्रौप)। ढौकितः 'गुन्विपीए उवएणत्थं विविहं पाण
उवदव पुं [उपद्रव ऊधम, बखेड़ा (महा)। संक. उवणिमंतिऊण (स २०)। भोअणं । भुंजमाणं विवजिजा' (दस ५,
उवदा स्त्री [उपदा] भेंट, उपहार (रंभा)। उपणिमंतण न [उपनिमन्त्रण] निमन्त्रण ३६)
उवदाई स्त्री [उदकदायिका पानी देनेवाली (भग ८, ६)।
उवण्णास पुं [उपन्यास] १ वाक्योपक्रम, 'पाउवदाई च रहाणेवदाई च बाहिरपेसणउणिवाय पुं [उपनिपात] सम्बन्ध (धर्मसं
प्रस्तावना (ठा ४)। २ दृष्टान्त-विशेष (दस | कारिं ठवेति' (णाया १, ७)। ४५८)। १)। ३ रचना (अभि६८)। ४ छल प्रयोग
उवदाण न [उपदान] भेंट, नजराना (भवि) उवणिविट्र वि [उपनिविष्ट] समीप-स्थित (प्रयौ २२)।
उवदिस सक [ उप + दिश ] उपदेश देना । (राय)। उवतल न [उपतल] हस्त-तल की चारों ओर
उवदिसइ (कप्प)।उवणिसआ स्त्री [उपनिपत् ] वेदान्त-शास्त्र,
का पार्श्वभाग (निचू १)।
उवताव पुं [उपताप] सन्ताप, पीड़ा (सूत्र | वेदान्त-रहस्य, ब्रह्म-विद्या (अच्नु ८) ।
उबदीव न [दे] द्वीपान्तर, अन्य द्वीप (दे १, उपणिहा स्त्री [उपनिधा] मार्गण, मार्गरणा
१, ३)।
उवदेसग वि [उपदेशक] व्याख्याता (प्रौप)।। (पंचसं)।
उवताविय वि [उपतापित] १ पीड़ित । २ | तप्त किया हुआ, गरम किया हुआ (सुर २, |
उवदेसणया देखो उवएसणया (विसे २६, उवणिहि पुंस्त्री [उपनिधि ] १ समीप में
२२६; सण)। पानीत, धरोहर (ठा ५)। २ विरचना, निर्माण
उवत्त वि [उपात्त] गृहीत (पउम २६, ४६; उवदेसि वि [उपदेशिन] उपदेशक (चारु (अणु)।
सुर १४, १६०)। उपणिहि पुंस्त्री [उपनिघि उपस्थापन, अमा
उवदेही स्त्री [उपदेहिका] क्षुद्र जन्तु-विशेष, | उवत्थड वि [उपस्तृत] ऊपर-ऊपर आच्छानत (अणु ५२)
दीमक (दे १,६३)। दित (भग)। उपणिहिअ वि [औपनिधिक] १ उपनिधिउवत्थाण देखो उवट्ठाण (दसनि ४, ५५)।
उवदव सक [उप+द्र.] उपद्रव करना, सम्बन्धी। "आ स्त्री [°की] क्रम-विशेष
ऊधम मचाना । भवि. उवद्दविस्सइ (महा)। (अण ५२) उवत्थाणा देखो उवढाणा (पि ३४१)।
उवद्दव देखो उवदव (ठा ५)। उवाणहिय वि [उपनिहित] १ समीप में उवस्थिय देखो उवट्ठिय (सम १७) ।
उबद्दवण न [उपद्रवण] उपद्रव करना, उपस्थापित । २ आसन्न-स्थित (सूत्र २, २)। उवत्थु सक [उप + स्तु] स्तुति करना, श्लाघा सर्ग करना (धर्म ३)।
य पुं[क] नियम-विशेष को धारण करने- करना । उवत्थुणति (पि ४६४) । उवत्थुवंदि उवद्दविय वि [उपद्र त] पीड़ित, भय-भीत वाला भिक्षु (सूत्र २, २)। (शौ) (उत्तर २२)।
किया हुआ (प्राव ४: विवे ७६) 11.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org