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उद्घाव देखो उद्धा Iv
उद्धव न [उद्भावन] नीचे देखो (या १) । उद्भावणा श्री [उद्भावना] १ प्रत प्रवृत्ति । २ दूर-गमन, दूर क्षेत्र में जाना (धर्मं ३ ) । ३ कार्य गरे शीघ्र सिद्धि (वय १ उद्धि देखो बुद्धि (षड् ) IV उद्धि स्त्री [दे] गाड़ी का एक अवयव, गुजराती 'उंघ' (सुज १०, ८ टीठा ३, २ टी-पत्र १३३)
=
उद्विज देखो वद्धरिअ उद्धृत (था ४० श्रपः रायः वव १३ श्रपः पच २८) | उद्धमुह वि [ऊर्ध्वमुख ] मुँह ऊँचा किया हुधा (चंद ४) ।
धुंधलियन [] चलाया हुआ (सण) उयि देखो उद्धव (सण) उधुम सक [पृ] पूर्ण करना, पूरा करना । उद्धुमइ (हे ४, १५) IV उधुमास [उद्+मा] १ धावा करना २ जोर से धमनी को चलाना । उद्घुमाइ उडमाइ (षड् प्रामा) 1
।
उमावि [मापित ] ठंडा किया हुआ, निर्वाचित ( से १,८) IV उमावि [] १ परिपूर्ण; 'मायाइ उद्धमाया' (कुमा); 'पहित्यमुदुमायं श्राहिरेइयं च जाग आउरणे' (दि) । २ उन्मत्तः 'मरंदरसुद्धुमात्रमुहल महुअर' ( से ६, ११) । उद्घय वि [ उद्धूत] १ पवन से उड़ा हुआ ( से ७, १४) । २ प्रसूत, फैला हुआ 'गंधुदुयाभिरामे' ( औप ) । ३ प्रकम्पितः 'वाउयविजयवेजयंती' (जीव ३) । ४ उत्कट, ( सम १३७ ) । ५ व्यक्त, प्रकट (कप्प) उदर [र] ऊँचा, उच्च उ
प्रबल
उच्च' (पात्र) । २ प्रचण्ड, प्रबल (सुर ३,३६; १२, १०६.) । उदूधुन्वंत उदूधुव्वामाण उदूधुनिय वि [ उद्धुषित ] रोमाथ 'श्रन्नोन पिएहि हसिउद्धु सिएहि खिप्यमाणो
देखो उधू
(ब) २ वि. रोमा पुलकित दे १, ११५२, १०० उसियम सीलनले संगती (मुर २१०१) 'सिमकेसर' (महा
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पाइअसद्दमहणव
उद्धू सक [ उद् + धू] १ कँपाना, चलाना । २ चामर वगैरह बीजना, पंखा करना । कवकृ. उद्धवंत, उधुव्वमाण ( पउम २, ४० कप्प ) 1 उद्भूणिय देखो उद्ध्रुव (स) उदूभूद (शी) देखो उद्वार ३५ उद्दूल सक [ उद् + धूलय् ] १ व्याप्त करना । २ धूलि लगाना । उदूधुलेइ (हे Y, RE) IV
उद्भू [उद्धूत] पूति को मङ्ग
पर लगाना;
'जारमसारणसमुब्भवभूइसुहप्फंस सिजरंगीए । समप्प गवकावालिश्राइ उद्धृलणारंभो । (गा ४०८ ) । उनि उ]ि भूमि से लपेटा हुआ । २ व्याप्त; 'तिमिरोवलिनभवणं' (कुमा) 1
उणिवा श्री [उद्धृपनिका] भूप देना, 'कवि विरामपुरीसहि उवरियम्मि खिवित्ता उद्भूवरिणयं पयच्छति ।' (सुर १४, १०४) । उवि [भूषित] जिसको भूप किया गया हो वह (विक्र ११३) उद्घोस पुं [ उद्धर्ष] उल्लास, ऊँचा होना (सट्ठि ε५); 'जं जं इह सुहुमबुद्धीए चितिज तं सव्वं रोमुद्धोसं जणेइ मह अम्मी' (सुपा ६४) ।
नंद स [उद्+न] धभिनन्दन करता । कवकृ. उन्नंदिज्जमाणे' क. "हिममालासह सेहि उदिमाणे (कप्प) 1
उद्धाव - उप्प उन्नय देखो उण्णय (सुपा ४७६ सम ७१३ कप्प) उन्ना देखो उण्णा मय वि [मय ] ऊन का बना हुआ (सुपा ६४१) IV उन्नडियन [ उन्नाटित ] हर्षं द्योतक आवाज ( स ३७६)
उन्नाम पुं [उन्नाम] १ ऊँचाई । २ अभिमान, (सम ७१) ।
उन्नामि वि [ उन्नमित] ऊँचा किया हुआ (पामा महा स ३७७) । उन्नाव [दे] देखो उगाडि 'ज्यालिश्रं उन्नामिश्र (पान)
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उन्नाह ; [उन्नाह] ऊँचाई (पान) । उन्निअ देखो उण्णिअ = श्ररिंगक ( ओघ VOX)I
उभिक्ख सक [उन्नि + खन्] उखाड़ना, उन्मूलन करना। भवि उन्निक्खिस्सामि (सूत्र २, १, ६) । कृ. उन्निक्वेयन्त्र ( सू २, १,७) । उन्निक्खमण न [ उन्निष्क्रमण] दीक्षा छोड़ कर फिर गृहस्थ होना, साधुपन छोड़कर फिर गृहस्थ बनना (उप १३० टी; ३६६) उन्नी देखो उण्णी । कवकृ. उन्नइज्ज माण
उन्न न [ऊर्ण] ऊन, भेड़ या बकरी के रोम । "मय वि [मय ] ऊन का बना हुआ, 'गोवालियाण विदं नच्चाव फारमुत्तियाहारं । उपवासनियापहराभोगं ॥ उपरि } देखो उवरि (विसे १०२१; षड् ) । (सुपा ४३२) । (षड् ) । वि उन्न (अप) [विषण्ण] विषाय-प्राप्त उपरि देखो उधर खिन्न (षड् ) V उपवज्जमाण देखो उववाय = उप + वादय् । उन्नइ देखो उण्णइ (काल सुपा २५७ प्रासू उपसप्प देखो उवसप्प | उपसप्पइ ( षड् ) । २८; सार्धं ३४) । उन्नइजमाण देखो उनी
सं. उपसप्पिय (नाट) ।
उन्नइय वि [उन्नीत] ऊँचा लिया हुआ (पउम १०५, ५७ ) IV
उन्हाल (अप) पुं [ उष्णकाल ] ग्रीष्म ऋतु (भवि) 1
उपक्खर न [ उपस्कर ] घर का उपकरण (उत्त६६)
उपंत न [ उपान्त] १ पिता या पीछे का भाग । २ वि. समीपस्थ (गा ९६३) ।
उपाणदिय पुंखी [ उपानत् ] जूता, अन्नदि पापाहिए मुत्तमाखा (मुपा २२) तह पहिया वाहिस्स (सुपा २)
उप्प देखो ओप्प (पि १०४: = अर्पय् । उप्पेइ हे १,१६
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