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उदीर-उद्दाइत्ता
पाइअसद्दमण्णवो
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उदीर सक [ उद् + ईरय ] १प्रेरणा करना। उदहल देखो उऊहल (प्राचा; पि ६६)। भवि. उद्दवेहिइ (भग १५)। कवकृ. उद्द
२ कहना, प्रतिपादन करना। ३ जो कर्म उहनादे१जल-मानष । २ ककद, बैल के विज्जमाण (सूम २,१)। कृ. उद्दवेयव्व उदय-प्राप्त न हो उसको प्रयत्न-विशेष से कंधे का कूबड़ (दे १, १२३)। ३ मत्स्य
(सूम २, ३) फलोन्मुख करना । उदीरइ, उदीरेंति (भगः
विशेष । ४ उसके चर्म का बना हया वस्त्र उद्दव उद्रव, उपद्रव] १ उपद्रव । पंनि ७८)। भूका, उदी रिसं, उदीरेंसु (प्राचा)।
२ विनाश, हिंसा; 'प्रारंभो उद्दवो' (श्रा ७)। (भग)। भवि. उदीरिस्संति (भग)। वकृ. उह वि आई गोला, पाद ( षड़)। उद्दवइत्तु वि [उद्घोत, उपद्रोत्] १ उपद्रव उदरेत (ठा ७); 'कुसलबइमुदीरंतो (उप उद्दअ वि [उद्यत] उद्यम-युक्त (प्राकृ २१)।
कग्नेवाला। २ हिंसक, विनाशक; 'से हता ६०४)। कवकृ. उदीरिजमाण (पएण उदंड । वि [उद्दण्ड] १ प्रचण्ड, उद्धत
छेत्ता भेत्ता लुपित्ता उद्दवइत्ता विलुपित्ता २३)। हेकृ. उदारेत्तए (कस) उदंडग (कुमा; गउड)। २ पुं. हाथ में
अकडं करिस्सामि त्ति मन्नमाणे (आचा)। उदीरग देखो उदीरय (पंच ५, ५)IV
दण्ड को ऊँचा रखकर चलनेवाले तापसों
उद्दव ग न [उद्रवग, उपद्रवग] १ उपद्रव, उदीरय न [उदीरण] १ कथन, प्रतिपादन । की एक जाति (प्रौपः निचू १)
हरकत; 'उद्दवरणं पुरण जारणसु अइवायविवजियं' २ प्रेरणा। ३ काल-प्राप्त न होने पर भी उदंतुर वि [उद्दन्तुर] १ जिसका दंत बाहर
(पिंड; औप)। २ विनाश, हिंसा (सं ८४; प्रयत्न-विशेष से किया जाता कर्म-फल का । प्राया हो वह । २ ऊँचा (गउड)
आचा)। अनुभव (कम्म २, १३)।
उदंभ पुं[उद्दम्भ छन्द का एक भेद (पिग)। उद्दवण न [अपद्रावण] मृत्यु को छोड़कर सब उदीरणया) श्री [उदीरणा] ऊपर देखो उदंस पुं [उदंश मधुमक्षिका, मत्कुरण
। प्रकार का दुःख, 'उद्दवणं पुरण जाणसु उदीरणा (कम्म २,१३,१); 'जं करणे
आदि छोटा कीट (कप्प)।
अइवायविवजियं पोर्ड' (पिंडभा २५; पिंड गोकड्डिय उदए दिजइ उदीरणा एसा' (कम्मप उद्दड्ढ पुं [उद्दग्ध] रत्नप्रभा नरक-पृथिवी
१७)। १४३, १६६)
का एक नरकावास (ठा ६)। मज्झिम पुं
। उद्दवणया) स्त्री [उद्भवणा, उपद्रवणा] उदीरय वि [उदीरक] १ कथक, प्रतिपादक ।
उद्दवणा ) ऊपर देखो (भगः परह १,१)। [ मध्यम] रत्नप्रभा पृथिवी का एक नरकावास ! २ प्रेरक,प्रवर्तक; 'एकमेक्कं विसयविसउदीरएसु'
उद्दवाइअ देखो उड् डुवाइय; 'समणस्स एं (ठा ६)। वित्त पुं[वित्त] देखो पूर्वोक्त (पराह १,४)। ३ उदीरणा करनेवाला, काल
भगवग्री महावीरस्स एव गरणा हुत्था, तं०अर्थ (ठा ६)। विसिट [वशिष्ट] देखो प्राप्त न होने पर भी प्रयत्न-विशेष से कर्म
गोदासे गणे उत्तरबलिस्सहगणे उद्देहगणे पूर्वोक्त अर्थ (ठा ६)। फल का अनुभव करनेवाला (कम्मप १५६)।
चारणगणे उद्दवातित-(इन)-गणे विस्सवातिउहहर न दे. ऊर्ध्वदर] सुभिक्ष, सुकाल उदीरिद देखो उदीरिय (राय ७४) IN
(इअ)-गणे कामड्ढ्ति -(अ)-गणे माणवगणे (बृह १)
कोडितगणे (ठा ) उदीरिय वि [उदीरित] १ प्रेरित, 'चालियाणं उद्दम पुन. देखो उजम = उद्यम (प्राकृ २१)। घट्टियाणं खोमियाणं उदीरियाणं केरिसे सहो उद्दरिअ वि [दे] १ उत्खात, उखाड़ा हुआ
उद्दविअ वि [उद्रुत, उपद्रुत] १ पीड़िता भवति' (रायः जीव ३)। २ कथित, प्रति- (दे १,१००)। २ स्फुटित, विकसित; 'फुडिनं ।
_ 'संघाइया संघट्टिया परियाविश्रा किलामिया पादित; 'धोरे धम्मे उदीरिए' (प्राचा)। फलिनं च दलिनं उद्दरि' (पाप)।
उद्दविया ठाणाप्रो ठाणं संकामिया' (पडि)। ३ जनित, कृत, 'ससद्दफासा फरुसा उदीरिया' उद्दरिअ वि [उद् + दृप्त] गर्वित, उद्धत, ।
२ विनाशितः 'नाऊण विभंगेणं नियजिट्ठसुयस्स (आचा)। ४ समय-प्राप्त न होने पर भी । अभिमानी (गदि)।
विलसियं, तो सो सकुटुबो उद्दविप्रो (सुपा प्रयत्न-विशेष से खींच कर जिसके फल का उद्दलण न [उद्दलन] विदारण (गउड)। |
४०६)। अनुभव किया जाय वह (कर्म) (पएण २३; उद्दव सक [ उद्, उप + द्र] १ उपद्रव
उद्दवेत्त देखो उद्दवइत्तु (प्राचा) । भग) IV
करना, पीड़ा करना । २ मारना, विनाश
| उद्दा सक [उद् + दा] बनाना, निर्माण उदु देखो उउ (प्रापः अभि १८९; पि ५७)। करना, हिंसा करना; 'तए णं सा रेवई गाहा
करना । उद्दाइ (भग)। उदुंबर देखो उंबर (कस)।
वईणी अन्नया कयाइ तासि दुवालसण्हं उद्दा अक [अब + द्रा] मरना। उद्दाई, उदुरुह सक [ उद् +रुह. ] ऊपर चढ़ना। सवत्तीणं अंतरं जाणित्ता छ सवत्तीमो सत्थप्प- उद्दायाति (भग)। संकृ. उद्दाइत्ता (जीव दुरुहइ (पि ११८)।
प्रोगेणं उद्दवेइ, उद्दवेइत्ता छ सवत्तीयो ३.ठा १० भाग) उदृखल देखो उऊखल (पि ६६)। विसप्पनोगेणं उद्दवेइ, उद्दवेइत्ता तासि उद्दाइआ स्त्री [द्रोत्री, उपद्रोत्री] उपद्रव उदृग पुंन [दे] पृथिवी-शिला (पंचा ८, १० । दुवालसएहं सवत्तीणं कोलरियं एगमेगं करनेवाली स्त्री 'ताए वा उद्दाइपाए कोइ टी)।
हिरएणकोडि एगमेगं वयं सयमेव पडिवजेइ, संजो गहितो होज्जा' (प्रोध १८ भा टी)। उदलिय वि [दे] अवनत, नीना नमा हुआ २त्ता महासयएणं समणोवासएणं सद्धि उरा- उद्दाईन देखो उद्दाय% शुभ् । (षड् ) ।
लाइ भोगभोगाइ भुंजमाणी विहरई (उवा)। उद्दाइत्ता देखो उद्दा = अव + द्वा।
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