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पाइअसहमहण्णवो
उग्गाल ! [उद्गार ] विनिर्गम, बाहर निक- उग्गिरण न [ उद्गरण] १ वान्ति, वमन, लना (वव १) । कय । २ उक्ति, कथनः 'मासिणोवि श्रवमारणवचरगा ते परस्स न करेंति । हदुक्थे, साहू
उगाहक [ उद् + ग्रह] ग्रहण करना 'भायरणवत्थाई पमइ, पमजइत्ता भायरगाई उग्गा' (उमा)। संकृ. उग्गाईन्सान समणं भगवं महावीरे लेणेव उनागन्छ' (उवा) IV
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उग्गाह सक [ अव + गा ] प्रवगाहन करना, 'उग्गाहेंति नागाविहाओ चिच्छिासंहियाओं ( स १७) ।
महिष्य गंभीरा' (उब उग्गल स [उद् + गृ] कहना बोलना २ डकार करना। ३ उलटी करना, वमन करना । ४ उठाना। वह गलुग जय (गाया २ ८) संकृ. उग्गिलिता (कल), उग्गलेता (निर्फ ०)। उग्गिलिअ देखो उग्गिण्ण ( पाच ) 1 उग्गीय वि[उद्गीत] १ उच्च स्वर से गाया हुआ (दे १,१६३) । २ न. संगीत गीत, गान ( से १,६५)
उग्गाह तक [ उद् + मह] १ तगादा करना । २ ऊँचे से चलना । उग्गाहइ (प्राकृ ७२ ) ।
उग्गाह पुं. देखो उग्गाहा (पिंग) उग्गहण न [ उद्ग्राहण] तगादा, दी हुई बीज की मांग (सुपा ५००) उग्गाहणि स्त्री [ उद्ग्राहणिका ] ऊपर देखो, 'उपालयापासम्म गयो तथा सोवि । उग्गाहणियाहेउँ' (सुपा ६३२) । उग्गाहणी स्त्री [ उद्ग्राहणी ] ऊपर देखो (इ) IV
स्त्री [उद्गाथा ] छन्द- विशेष (पिंग)। उग्गाहिअ वि [दे. उद्ग्राहित] १ गृहीत, लिया हुआ । २ उत्क्षिप्त, फेंका हुआ । ३ प्रवर्तित (दे १, १३७) । ४ उच्चालित, ऊँचे से चलाया हुआ (पास २१३) उग्गाहिम वि [ अवगाहिम ] तली हुई वस्तु । (HTER, x)~
[गीर्ण] उत् कथित उग्गिन्न ) (भवि ) । २ वान्त, उद्गीरगं (खाया ११)। ३ उठाया हुआ, ऊपर किया हुआ 'उग्गिन्नखर गमबलं श्रवलोइय
नरवईवि विम्हइम्रो । चितेड़ अहो धट्ठा, मज्झ वहट्ठा
इह पट्ठिा' (सुर १६, १४७); 'निद्दय ! नियंबिणीवह
कलंकमलिरगोव्व रे तुमं जाओ । उपसरं तिसा
मलय (सुपा ५३८) उग्गर देखो उगल उग्रे (मुद्रा १२९)। वह गिरंत (काल) 1
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उग्गीयमाण देखो उग्गा ।
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उग्गीर देखो उग्गिर । वकृ. 'खरगं उग्गीरंतो इत्यिवहृत्थं, हयासलोया' (सुपा १५८ ) । उग्गीरिअ देखो उग्गिण्णः 'उग्गीरिनो ममोवरि, जमजीहावीत्तरल करवाल (सुपा १५८) उग्गीव [उमीव] उति प्राशुक (कुमा) । वि[कृत ] उत्कण्ठित किया हुआ (उप १०३१ टी ) । उग्गुलुंछिआ स्त्री [दे] हृदय-रस का उछलना, भावोद्र ेक (दे १, ११८ ) M उग्गोव सक [उद् + गोपय् ] १ खोजना । २ प्रकट करना । ३ विमुग्ध करना। वकृ. 'इत्यी वा पुरिने वा मुक्ति एवं महं किएहसुत्तर्ग वा जाव सुकिल्लमुत्तगं वा पारमाणे पासति उग्गोमा गोद (भग १६, ६) ।
उग्गोषणा स्त्री [ उद्गोपना ] १ खोज, गवेषणा;
'एसरण गयेसरगा लग्गरगा
य उग्गोवरणा य बोद्धव्वा । एए उ एसरगाए नामा
एया होंति' (पिड ७३ ) । २ देखो उग्गमः उग्गम उग्गोवरण मग्गा य एगठ्ठियारि एयारिण' (पिंड ८५) उग्गोविय वि [ उद्गोपित ] विमोहित, भ्रान्तः 'उग्गोवियमिति बप्पा मन्नति (भग (64) 10
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उग्गाल - उग्घाइय
उग्ध देखो उंब । उधर (षड्) ।
पट्टि श्री [] स शिरोभूषण दे उरघट्टी । १, ९० ) ।
उग्धड सक [ उद् + घाटय् ] खोलना (प्रामा) 1
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उग्घड प्रक [ उद्घ] तुलना । उघडइ (सिरि ५०४ ) । उग्धर्हति ( धर्मं वि७६)।
उपडिअनि [उद्घाटित] खुला हुआ (धर्म वि ७७) ।
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उघडिअ वि उद्घाटित] खुला हुआ । २ जिन्न नष्ट किया हुआ (११,१२० उधर वि [उद्गृह] गृहस्थानी जिसने घरवार छोड़ कर संन्यास लिया हो वह, साधु
'चंदोग्य कालपक्खे परिहाई पए पए पमायपरो । तह उग्घरविग्धनिरं गणो विनय इच्छियं लह' ( गाया १, १० टी) उग्घवै देखो अग्धव । उग्धवइ (हे ४, १६९ टिः राज ) । उम्पसियन [अवधर्षित ] प ( राय ६७) । उग्धाअ पुं [दे] १ समूह, संघात ( दे १, १२६ स ७७६ ४३६० गउड से ५, ३४) । २ स्थपुट, विषमोन्नत प्रदेश (दे १,१२६) । उघा [उद्घात] १ प्रारम्भ, प्रारम्भः 'उम्दामी धारंभी' (पास) २ प्रतियात ठोकर लगना । ३ लघुकरण, भाग-पात (ठा ३) । ४ उपोद्घात, भूमिका ( विसे १३४८ ) । ५ हास (ठा ५,२) । ६ न. प्रायश्चित - विशेष । ७. निशीथ सूत्र का एक अंश, जिसमें उक्त प्रायश्चित्त का वर्णन है; 'उग्वायमग्वायं धारोव तिविमो निसीहं तु (मान ३) उग्घाअ सक [ उद् + घातय् ] विनाश करना । उरघाएइ (उत्त २६, ६) धामवि [उद्यातिम] १ लघु, छोटा । २ न. लघु प्रायश्चित्त (ठा ३) । उघाइयवि [उद्धातित ] १ विनाशित (ठा १०) २. प्रायश्वित्त (ठा) ।
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उघाइयवि [ उद्घातित ] लघु प्रायश्चित्त वाला (वव १) ।
उचाइयन [उद्घातिक] लघु प्रायश्चित
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