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________________ १२६ पाइअसद्दमहण्णवो आसायण-आसुरीय आसायण न [आस्वादन] स्वाद लेना, चखना | आसासण पुं[आश्वासन] १ एक महाग्रह | आसिल पुं [आसिल] एक महर्षि (सूत्र १, (पउम २२, २७ रणाया १,६सुपा १०७)। (सुज २०)। २ वि. आश्वासन-दाता (कुप्र ३, ४,३) V आसायण न [आशातन] १ नीचे देखो | आसिलिट्ठ वि [आश्लिष्ट] प्रालिंगित (नाट)।। (विवे ६६)। २ अनन्तानुबन्धि कषाय का | आसासिअ वि [आश्वासित] जिसको आश्वा आसिलिस सक [आ+श्लिष् ] प्रालिंगन वेदन (विसे)।V सन दिया गया हो वह (से ११, १३६; सुर करना । हेकृ. आलेठुअं, आले? (हे आसायणा स्त्री [आशातना] विपरीत वर्तन, ४, २८)।। २, १६४)IV अपमान, तिरस्कार (पड़ि) IV | आसि सक [आ + श्रि] आश्रय करना। आसिसा देखो आसी = आशिष् (महा अभि आसार सक [आ+ सारय् ] तंदुरस्त करना, | ___ संकृ. आसिज्ज (आरा ६६)IV १३३)।। वीणा को ठीक करना । संकृ. आसारेऊरण आसि देखो अस = अस् । आसी देखो अस् = अस्। (सिरि ७६४)V आसि वि [आशिन] खानेवाला, भोजक आसार पुं[आसार] समीकरण, वीणा को (सट्ठि १३)।। आसी स्त्री [आशी] दाढ़ा (विसे)। "विस ठीक करना (कुप्र १३६)IV आसिअ वि [आश्विक] अश्व का शिक्षक, | [विष] १ जहरिला सांप, 'प्रासी दाढा तग्गयविसासीविसा मुणेयवा' (जीव १ टी आसार पुं [आसार] वेग से पानी का बरसना, 'दुवि य जो आसे दमेइ तं आसियं बिति (वव ४)। प्रासू १२०) । २ पर्वत-विशेष का एक शिखर (से १, २०; सुपा ६०६)IV आसिअ वि [आशित खिलाया हुआ, भोजित (ठा २, ३) । ३ निग्रह और अनुग्रह करने में आसारिय वि [आसारित ठीक किया हुआ, (से ८, ६३)।V समर्थ, लब्धि विशेष को प्राप्त (भग ८, १) 'प्रासारिया कुमारेण वीणा' (कुप्र १३६) आसिअ वि [आश्रित] आश्रय-प्राप्त (कप्प; | आसी स्त्री [आशिष् ] आशीर्वाद (सुर १, आसालिय पुंस्त्री [आशालिक] १ सर्प की | सुर ३, १७; से ६, ६५; विसे ७५६)V १३८)। वयण न [°वचन] आशीर्वाद एक जाति (पएह १, १)। २ स्त्री. विद्याआसिअ वि [आसित] १ उपविष्ट, बैठा हुआ (सुपा ४६०)। °वाय पुं[वाद] आशीर्वाद विशेष (पउम १२, ६४; ५२, ६)। (से ८, ६३)। २ रहा हुआ, स्थित (पउम | (सुर १२, ४३, सुपा १७४)।। आसावल्ली स्त्री [आशापल्ली] एक नगरी (ती | ३२,६६) V आसीण वि [आसीन] बैठा हुआ, 'नमिऊण १५) आसिअ देखो आसित्त (णाया १, १ कप्पः | आसीणा तो (वसु) IV आसावि वि [आस्राविन ] झरनेवाला, औप) ।। आसीवअ पुं[दे] दरजी, कपड़ा सीनेवाला सच्छिद्र (सूअ, १,११)V आसिअअ वि [दे] लोहे का, लोह-निर्मित (३१, ६६)। आसास सक [आ + शास् ] आशा करना, | (दे १,६७; सूत्र कृ० चूर्णी सू० गा २८५)। आसीसा देखो आसी = आशिष् ( षड् )। उम्मीद रखना । प्रासादि (वेणी ३०)IV आसिआ स्त्री [आसिका] बैठना, उपवेशन आसु पुंन [अश्रु] आँसू (संक्षि १७) ।। आसास अक [आ + श्वासय् ] आश्वासन (से ८, ६३)। आसु ) अ [आशु] शीघ्र, तुरंत, जल्दी (सार्ध देना, सान्त्वना करना । पासासइ (वजा १६)। आसिआ देखो आसी - आशिष् ( षड्)। आसुं । १८ महा; काल)। कार पुं[°कार] वकृ. आसासंत, आसासिंत (से ११, ८७ आसिंच सक [आ+ सिन् ] सींचना । श्रा १२)।V १ हिंसा, मारना । २ मरने का कारण, विसू चिका वगैरह (आव)। ३ शीघ्र उपस्थितः आसास [आश्वास] १ आश्वासन, सान्त्वना कर्म. प्रासित (चेइय १५१)IV 'प्रासुकारे मरणे, अच्छिन्नाए य जीवियासाए' (मोघ ७३; सुपा ८३ उप ६६२)। २ विश्राम | आसिण वि [आशिन्] खानेवाला, भोक्ता (आउ ६)। पण्ण वि [प्रज्ञ] १ शीघ्र(ठा ४, ३)। ३ द्वीप-विशेष (आचा) _ 'मसासिणस्स' (पउम २६, ३७)।V बुद्धि । २ दिव्य-ज्ञानी, केवल-ज्ञानी (सून १, आसास पुं [आश्वासक] विश्राम-स्थान, | आसिण पु[आश्विन आश्विन मास (पान)। ६; १४)।V ग्रन्थ का अंश, सर्ग, परिच्छेद, अध्याय (से २, आसित्त वि [आसिक्त] १ थोड़ा सिक्त (भग | आसुर वि [आसुर] असुर-संबन्धी (ठा ४, ४६)। २ वि. आश्वासन देनेवाला: 'नारणं ६, ३३) । २ सिक्त, सींचा हुआ (प्रावम)। ४ पाउ ३६)।V प्रासासयं सुमित्तुव्व' (पुप्फ ३८)।V ३ पुं. नपुंसक का एक भेद (पूप्फ १२८)। आसुरत्त न [आसुरत्व] क्रोधिपन, गुस्सा (दस आसासग[आशासक] बीजक-नामक वृक्ष आसित्तिया स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, 'विसा- ८, २५)।V (औप)।V । हाहि पासित्तियानो भोचा कजं साधेति' (सुज आसुरिय पुं[आसुरिक] १ असुर, असुर रूप आसासण न [आश्वासन] १ सान्त्वना, १०, १७)। से उत्पन्न (राज)। २ वि. असुर-संबन्धी (सूम दिलासा (सुर ६, ११०, १२, १५; उप पू | आसियावाय देखो आसीवाय (सूत्र १, १४, २, २, २७)।। ५७)। २ ग्रहों के देव-विशेष (ठा २, ३) १६) आसुरीय वि [असुरीय] असुर-संबन्धी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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