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सेलग-सेहंब
पाइअसहमण्णवो
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(रंभा) त्थंभ पु[स्तम्भ] पाषाण का सेल्लि स्त्री [दे] रज्जु, रस्सी (उत्त २७, ७) सेविय वि[सेवित] जिसकी सेवा की गई खंभा (कम्म १, १८) पाल, वाल पु सेव सक [ सेव] १ आराधन करना। २ हो वह (काल)। [पाल] १ धरण तथा भूतानन्द नामक आश्रय करना। ३ उपभोग करना। मेवइ, सेव्या देखो सेवा (हे २, ६६ प्राप्र)। इन्द्रों का एक एक लोकपाल (ठा ४,१- सेवए (पाचा उवः महा)। भूका. सेवित्था, सेस पुं [शेष] १ शेष-नाग, सर्प-राज (से पत्र १६७ इक)। २ एक जैनेतर धर्मावलम्बी सेविसु (प्राग)। वकृ. सेवभाग (सम ३९; २, २८)। २ छन्द का एक भेद (पिंग)। पुरुष (भग ७, १०-पत्र ३२३) सन भग)। कवकृ. सेविज्जत, सेविजमाण ३ वि. अवशिष्ट वाकी का (ठा ३, १ टी-- [स] वज्र (से ३, २७), "सिहर न (सुर १२, १३६; कप्प)। संकृ. सेविअ, पत्र ११४: दसनि १, १३४ हे १, १८२; [शिखर पर्वत का शिखर (कप्प-सुआ सेवित्ता (नाट-मृच्छ २४५, प्राचा)। ग उड) मई,ई स्त्री [वती] १ सातवें स्त्री [सुता] पार्वती (पास)
कृ. सेवेयव्य (सुपा ५५७; कुमा), सेवणिय वसुदेव की माता (सम १५२)। २ दक्षिण सेलग। [शैलक] १ एक राजर्षि (णाया (सुपा १९७)
रुचक पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी सेलय १, ५--पत्र १०४; १११)। २ सेवग देखो सेवय (पंचा ११, ४१)। (ठा -पत्र ४३६, इक)। ३ वल्लो-विशेष एक यक्ष (पि १५६; णाया १.६-पत्र सेवड देखो से = श्वेत।
(पएण -पत्र ३३)। ४ भगवान महावीर १६४), 'पुर न [पुर] एक नगर (गाया
की दौहित्री--पुत्री की पुत्री (प्राचा २, १५, सेवण न [सेवन] १ सीना, सिलाई करना ।
१६) वन [वत् ] अनुमान का एक (उप पृ १२३) । २ सेवा (उत्त ३५, ३) । सेलयय न [शैलकज] एक गोत्र (ठा -
भेद (प्रणु २१२) राअ ( [राज] सेवणया। स्त्री [सेवना] सेवा (उत्त २६, पत्र ३६०; राज)
छन्द विशेष (पिंग) सेवणा ) १; उप ८०१)। सेला नी [शला] तीसरी नरक-पृथिवी (ठा सेवय वि सेवका १ सेवा-कर्ता (कुप्र
सेसव न [शैशव बाल्यावस्था (दे ७,७६)७-पत्र ३८८; इक) ___४०२)। २ पृ. नौकर, भृत्य (पामा कुप्र
सेसा स्री शेषा] निर्माल्य (उप ७२८ टो। सेलाइच्च पु[शैलादित्य] वलभीपुर का ४०२ सुपा ५३२) ।
सिरि ५५५)। एक प्रसिद्ध राजा (ती १५) ।
सेवल न [शैवल सेवार, सेवाल, एक प्रकार सेसिअ वि [शेपित] १ बाकी बचाया हुआ सेलु पु[शैल ] श्लेष्म-नाशक वृक्ष-विशेष की घास जो नदियों में लगती है (पाम)।
(गा ६६१)। २ अल्प किया हुआ, खतम (पएण १-पत्र ३१)। सेवा स्त्री [ सेवा] १ भजन, पर्युपासना, !
किया हुआ (विसे ३०२६)सेलूस पुं[दे] कितद, जुपाड़ी (दे ८, २१)M भक्ति । २ उपभोग । ३ आश्रय । ४ पाराधन
। सेसिअ वि [इलेपित] संबद्ध किया हुआ, सेलेय वि [शैलेय] पर्वत में उत्पन्न, पर्वतीय (हे २, ६६; कुमा) ।
। चिपकाया हुआ (विसे ३०३६) । (धर्मवि १४०) । सेवाड न [शैवाल] १ सेवार, सेवाल,
सेह प्रक [ नश् ] पलायन करना, भागना । सेलेस पु[शैलेश] मेरु पर्वत (विसे ३०६५) सेवाल ) घास विशेष (उप पृ १३६; पात्र;
सेहइ (हे ४, १७८; कुमा)
सेह सक [शिक्षय ] १ सिखाना, सीख
जी ६)। २ पुं. एक तापस, जिसको गौतम सेलेसी स्त्री [शैलेशी] मेरु की तरह निश्चल साम्यावस्था, योगी की सर्वोत्कृष्ट अवस्था स्वामी ने प्रतिबोध किया था (कुप्र २६३)
देना । २ सजा करना । सेहंति (सूप', २. (विसे ३०६५, ३०६७; सुपा ६५५) ।
दाइ [दायिन] भगवान महावीर १, १६) । कवकृ. साहज्जत (सुपा ३४५) । सेलोदाइ पु [शैलोदायिन] एक जेनेतर
के समय का एक अजैन पुरुष (भग ७, सेह पुं[दे. सेह] भुजपरिसर्प की एक जाति, १०-पत्र ३२३)।
साही, जिसके शरीर में काँटे होते हैं (पएह धर्मावलम्बी गृहस्थ (भग ७, १०-पत्र
सेवाल पुंदे] पङ्क, कादा, काँदो (दे ८,४३, १,१-पत्र : परण १-पत्र ५३) सेल्ल देखो सेल = शैल; 'न हु झिज्जइ ताण
| सेह पुशैक्ष] १ नव-दीक्षित साधु (सूत्र सेवालि [शैवालिन्] एक तापस, जिसको मणं सेल्लं मिव सलिलपूरेणं' (वजा ११२)
१, ३, १, ३, सम ५८, मोघ १६५; गौतम स्वामी ने प्रतिबोध किया था (उप ३७८ उवः कस)। २ जिसको दीक्षा दी सेल्ल पुं [दे] १ मृग-शिशु । २ शर, बारण १४२ टो)।
जानेवाली हो वह (पव १०७)। ३ शिष्य, (दे ८, ५७)। ३ कुन्त, बी (कुमा; हे
सेवालिय वि [शैवालिक, त] सेवालवाला, चेला (सुख १, १३)। ४, ३८७)। सेल्ल पु[शैल्य] एक राजा (णाया १,
शैवाल-युक्त; 'सेवालियभूमितले फिल्लुसमाणा | सेह पु [सेध] सिद्धि (उवा) १६-पत्र २०८)। य थामथामम्मि' (सुर २, १०५) ।
सेहंब वि [सेधाम्ल] खाद्य-विशेष, वह खाद्य सेल्लग शैल्यक] भूजपरिस को एक सेवि वि [सेविन सेवा-कर्ता (उवा) जिसमें पकने पर खटाई का संस्कार किया जाति, जन्तु-विशेष (पण्ह १, १-पत्र ८) सेवित्त वि [सेवित] ऊपर देखो (सम १५) जाय (उवा; पण्ह २, ५--पत्र १५०)।
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