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८. देशी शब्दोना अंगे 'देशीय' अगर 'देशी' एवं कौंसमां लखायुं छे. अर्थात् टीकाकारे आपलं कायम राख्युं छे. जेमके - उत्तइउ ( देशी० ) - ग (पृ. १८७, १ ).
९. चूर्णिकार महाराज चूर्णिनी अंदर प्राकृत अने संस्कृत अम बन्ने भावाना प्रयोगो करे छे, तेथी चूर्णिना शब्दाना अर्थोमां प्राकृतना अने संस्कृतना बन्नेना प्रयोगो छे. परंतु बहुधा तो प्राकृत ज होय छे.
१०. आ 'अ. सै. श. मां पवा पण शब्दों छे के जे अभिधानराजेन्द्र के पाइयसहमहण्णवोमां न होय.
असं. श. नुं संपादन कार्य शरू थतां सुरतमां हता त्यां सुधी एक वखतनुं प्रुफ जोई आपवा प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीना एकत्र पट्टधर, श्रुतवारिधि, शास्त्रतत्त्वदर्शी, गच्छनायक, आचार्य श्रीमाणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजे कृपा करी हती.
ते संपादन कार्य चालतुं हतुं, तेमां प्रथम भागनुं पंदर आनी काम थई गया पछी सुरतथी दक्षिण तरफ विहार थवाना कारणे अने प्रेस आदिना प्रतिकूल संयोगोमां अमारी अनिच्छा पण नहि जेवा कार्यमां वर्षोनां वर्षो वीती गया बाद आजे आ श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक - शब्दकोषनो 'प्रथम भाग' विद्वानोना करकमळमां उपस्थित करी शक्या छीए.
आ प्रथम भागमां 'संपूर्ण स्वरो' आपवामां आवेला छे. स्वरोमां तेमज बीजा रही गयेला 'शब्दो' तथा देशीनाममालाना शब्दो श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष पूर्ण थतां 'परिशिष्ट ' तरीके आपवा विचार छे.
प. पू. आगमवाचनादाता, देवसूरतपोगच्छसामाचारीसंरक्षणकटिबद्ध, अनेक ग्रन्थोना प्रणेता, वादीमानमर्दक, चरमशासनपति महावीर परमात्माना शासनमां आगममंदिरोना संस्थापक, जैनआनन्दपुस्तकालयादि संस्थाना संस्थापक, शैलाना नरेशप्रतिबोधक, युगप्रधान सदृश, वर्तमान श्रुतना ज्ञाता, स्वआराधनर्थे आराधनामार्ग करनारा, मौनपणे रही अर्धपद्मासने खर्गे संचरनार, प. पू. आगमोद्धारक *आचार्यवर्यश्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजनी पुनित सेवाना प्रतापे जे कई बोध-शक्ति मेळवेल छे, ते आधारे अमे अमारी बुद्धि केळवीने काळजीपूर्वक आ श्रीअल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष संपादन कर्तुं छे.
मुनिराज श्री अभयसागजी महाराजे संजोग मळतां आमां मार्ग बताव्यो छे. तेओश्रीने तेमज प्रो. हिरालाल र. कापडीयाने पण हमे अत्रे भूलता नथी.
मां जे अशुचिओ जणायी छे तेनुं शुद्धिकरण पण आप्युं छे, छतां विद्वज्जनो प्रति अमारी प्रार्थना छे के क्षति देखाय तो जणाववा उदारता दाखवे.
वीरसं. २८८०, वि. सं. २०१०
ज्येष्ठ पुर्णिभा
गनघाट
( मध्यप्रदेश )
आगमोद्धारकउपसंपदाप्राप्त शिष्याणु
कंचनविजय
तथा
Jain Education International 2010_05
आगमोद्धारक शिष्यलव क्षेकरसागर
* जेमना स्मरणार्थे सुरतमां ' आगमोद्धारक गुरुमंदिर' झलहळी रह्युं छे.
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