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________________ करवामां आवेल छे. तेमज दशाश्रुतस्कन्ध, दशप्रकीर्णक, पउमचरिय, उपदेशमाला, अने तस्वार्थ: सूत्रना केटलाक शब्दो पण लेवामां आवेल छे. संज्ञा पत्रक-अ. से. श. मां जे शब्दोनो संग्रह करवामां आव्यो छे अने तेमां आगमो-शास्त्रो वगेरेनी जे संज्ञाओ आपवामां आवेली छे, ते संज्ञाओना स्पष्टीकरण माटे तेमज लीधेली प्रस-टीका वगेरे शेनी छे ते जणाववा अने तेना संपादक तथा प्रकाशक जणाववा एक संज्ञापत्रक नामथी प्रकरण राख्यु छे. तेमज बीजी बीजी प्रतोनी साथे पण शब्दो मेळववानुं शक्य बने ते उद्देशथी पत्राङ्कसूचा नामथी एक प्रकरण आप्यु छे. वर्णक्रम-अ. सै. श. मां अनुस्वारने पहेलुं स्थान आपवामां आव्यु छे. कारण के शरूआतमा प. ता. आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीए आ रीते शरू करवानुं जणाव्यु हतुं. आथी ए पद्धति कायम राखी छे. पण आनो हेतु हमे जाणी शक्या नथी, तेथी अत्रे हेतु. आप्यो नथी. विद्वज्जनो प्रत्ये-सुज्ञ विद्वज्जनो! अमो गूर्जर भाषाना संपादनना कार्यमा अनुभव मेळवतां संपादनमा आगळ घध्या छीए. ते रीते संस्कृत अने प्राकृतना संपादनमा प्रवेश करता थया एवा समयमां प. ता. गुरुदेवश्रीनी सेवाना प्रतापे अमने 'अ. सै. श.' - संपादन ल्यु. आथी अमे ते कार्यमां रस लीधो ने संपादन कार्य शरु कयु. आथी पंडितोनी अपेक्षाए के विद्वानोनी अपेक्षाए अमारा आ संपादनना अंगे जे सूचनाओ करवी उचित छे ते अमे विद्वज्जनोनी समक्ष रजू करीए छीए.१ मूळ शब्दो विभक्तिवाला तेम विभक्ति वगरना अम बन्ने प्रकारना छे. तेथी ते जे लिंगनो जे शब्द होय ते शब्द तेवी तेवी विभक्तिथी ते ते लिंगमां समजी लेवो. जेमके-अंकुर (पृ. १, २), अंकूसयं (पृ. १, २) इत्यादि (कोईक शब्दकोशमां विभक्ति सहित शब्दो नथी तेवु पण प्राये अमारा जाणवामां छे. २. जो के शब्दो बधा अक जातना विभक्ति विगर अगर अक विभक्तिथी मेगा लेवा जोई, परंतु आमां भिन्न भिन्न लेवाया छे. जेमके-अंकावइ (प्र. १, २), अंकावइओ (प्र. १,१) इत्यादि. ३. वैकल्पिक शब्दोना विकल्पने साचववा माटे अर्थात् तेवा प्रयोगोने साचवी राखवा माटे आमां भिन्न लेवाया छे. जेमके-अंकवडेंसर (पृ. १,१), अंकावडिसए (पृ. १, १) इत्यादि.. ४. टीकाकार महाराजे जे शब्दोना प्रयोगो टीकामां कर्या छ ने ते शब्दो मूळमां नथी तेवा शब्दोनुं प्राकृत जे कौंसमां अपायं छे ते प. पू. आगमोद्धारक गुरुदेवश्रीने पूछीने मुनिश्रीसौभाग्यसागरजीओ आपेलुं छे. वळी तेवा शब्दो कोई वखत शरुआतमां अपाया छे. अने कोइ वखत संस्कृतशब्दनी पछी पण अशया छे. तेनी बन्ने बाजुओ बनतांसुधी कौस आप्यो छे. जेमके (अंकील्ल नर्तकः । पृ. १, १), अंगारः (इंगाल). (पृ. २२) इत्यादि. ५. शरूआतमां तो शब्दोना अर्थों अने शब्दोना संग्रहनी शैलि नियमित रही नथी, पण जेम जेम अनुभव थतो गयो अने तेना अभ्यासमां वधारो थतो गयो तेम तेम पद्धतिमा सुधारो थतो गयो छे. छतां अटलं कहेवानी जरूर छे के पहेला भाग करतां बीजा भागमां पद्धति इत्यादिनो सुधारो मळेला अनुभव प्रमाणे करी शकीशं ओवी आशा छे. ६. (१) अध्पयन, (२) विशेषनाम, (३) वनस्पतिना नामना अंगे तेनी साथे अर्थना रूपमा संस्कृतमां अपायुं छे. जेमके (१) अंडे-विपाकश्रताद्यश्चत० (पृ. २, २), (२) अंगारवई अंगारवती संवेगोदाहरणे० (पृ. २, २), (३) अंकोल वृक्षविशेषः (पृ २, १) इत्यादि. ७. टीकाकारोए शब्दोना जे जगो पर अर्थ नथी कर्या तेवा शब्दो पण अत्रे अर्थ वगर अपाया छे. जेमके ओली (पृ. २२३, २), उबट्टगा (पृ. २०७, २) इत्यादि. वळी आ शब्दोना अर्थो जो कदाच मेळवी शकी| तो परिशिष्मां आपवा विचार छे, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016074
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1954
Total Pages296
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size21 MB
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