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सम्यचो. (यशोविजयजीविरचित) सम्यक्त्व षट्रस्थान चउपइ (स्वोपज्ञ बालावबोध
सहित), संपा. प्रद्युम्नविजयजी गणि, प्रका. अंधेरी गुजराती जैन संघ, मुंबई, सं.२०४६.
__कृति तथा बालावबोध बन्ने मुजरातीमां छे. बालावबोध १६८५ (सं.१७४१)मां रचायो होय एम समजाय छे. यशोविजयजीनी अन्य कृतिओ १६५५थी १६८३नां रचनावर्षों बतावे छे.
शब्दकोश नानकडो - ३३ शब्दोनो ज - छे, जेमा स्वाभाविक रीते ज घणा मध्यकालीन शब्दो बाकात रह्या छे. अहीं लाभ ए छ के मूळ गाथाना शब्दनो स्वोपज्ञ वृत्तिमां ज अर्थ करेलो छे. तेथी तत्कालीन
शब्दार्थनी सीधी माहिती मळे छे.. सिंहा(म). (मलयचन्द्रकृत) सिंहासनबत्रीसी, संपा. रणजित मो. पटेल ('अनामी')
प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७०.
कृति १४६३ (सं.१५१९)मां रचायेली छे.
शब्दकोशमा १२० जेटला शब्दो छे. घणा शब्दोनी व्युत्पत्ति आपी छे, एकथी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे अने अर्थविषयक नोंधो पण छे. क्रियापदो धातु रूपे आपी पछी कृतिमांगें एनुं व्याकरणी रूप पण आप्यु छे. क्वचित् उच्चारभेदवाळो शब्द पेटामां मुकायो छे, जेमके 'अखत्र'ना
पेटामां 'अखंत्र'. सिंहा(शा). (शामळ भट्टकृत) सिंहासनबत्रीशी, संपा. हरिवल्लभ भायाणी, प्रका. भारतीय
विद्याभवन, मुंबई, १९६०.
आमां संघरायेली सिंहासन-बत्रीशीनी वार्ताओ १७२९थी १७४५ना गाळामां रचायेली छे.
शब्दकोशमा २५० जेटला शब्दों छे. स्थाननिर्देश बधा कर्या होय
एवं जणाय छे. केटलाक शब्दोनी व्युत्पत्ति दर्शावी छे. स्थूलिफा. (हलराजकृत) स्थूलिभद्र फागु - एक परिचय, संपा. कनुभाई व्र. शेठ,
स्वाध्याय पु.८ अं.३, एप्रिल १९७१.
कृति १३५३ (सं.१४०९)मां रचायेली छे.
शब्दकोशमां आशरे ७० शब्दो छे. क्वचित् वर्णक्रमभंग थयो छे. हम्मीप्र. (अमृतकलशकृत) हम्मीरप्रबंध, संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, सोमाभाई
धू. पारेख, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९७३.
कृति १५१८(सं.१५७५)मां रचायेली छे.
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