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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
नथी.
(३३) मदमो.मां पुरुषवेशे एक स्त्रीने परण्या पछी विदाय लेतां मोहना कहे छे -
जरूर जातरा माहारे जावू, इष्ट देवने ओशीकल था. (१०५०) (मारे अवश्य जात्राए जवानुं छे अने इष्टदेवना ऋणमांथी मुक्त थवानुं छे । इष्टदेवने बदलो वाळवानो छ । इष्टदेवनी मानता पूरी करवानी छे.)
____ अहीं ' ने ओशीकल थ' एवो प्रयोग छे तेथी 'बदलो वाळवा'नो अर्थ वधारे साहजिक रीते बेसे. संदर्भ तो जात्रानी मानता (वचन) मानेली होय अने एनुं पालन करवानुं छे एवो समजाय छे. तेथी 'पाळवू, पूर्ति करवी'नो अर्थ पण होवानो संभव रहे छे.
संपादके 'ऋणमुक्त' अर्थ आप्यो छे. अनंतराय रावळे पण एमना संपादननां ए ज अर्थ आप्यो छे. आभारी, ऋणी
'ल'कारवाळु रूप वपरायुं होय अने 'आभारी, ऋणी' एवो अर्थ - ने एवो ज अर्थ - थतो एवं एक विरल उदाहरण मळे छे ए खास नोंधपात्र छे. आमां बे शक्यता छे : (१) 'ओशिंगण' अने 'ओसिंकल' जुदा ज शब्दो होय अने अहीं 'ओशिंगण'ने स्थाने 'ओसिंकल' कोईक भूलथी आवी गयो होय; (२) 'ल'कारवाळा रूपनो ज अर्थविकास थयो होय - ऋणमुक्त करवू, 'ऋणमुक्त थवानी तक आपवी, ऋणमुक्त थवानी तक आपी आभारी करवू. ने पछी 'ल'कारवाळु रूप 'ण'कारवाळा रूपमा परिवर्तन पाम्युं होय.
प्राप्त उदाहरण कमलविजयकृत 'चंद्रलेखा रास' (जैन गूर्जर कविओ, बीजी आवृत्ति, भा.६, पृ.४७०)मा छ :
गुरुपदयुग युगतस्युं, वलि वंदु बहु वार,
ओसिकल बहु एहना, ग्यानदानदातार. (५) (गुरुना पदयुग्मने योग्य रीते अनेक वार वंदुं छु. गुरु ज्ञानदान आपनार छे ने अमे एमना खूब ऋणी छीए.) १९६४ जेटलो वहेलो आ प्रयोग मळे छे ते खास नोंधपात्र छे. व्युत्पत्ति ___ 'उसींकल' शब्दनी जुदीजुदी व्युत्पत्तिओ सूचववामां आवी छ :
(१) त्रंबकलाल एन. दवे (ए स्टडी ऑव् गुजराती लँग्विज, १९३५) सं. उत्संकलित, प्रा.उस्संकलिअ एवी व्युत्पत्ति सूचवे छे.
(२) हरिवल्लभ भायाणी (मदनमोहना, १९५५) सं.उत्+शृंखला, प्रा.ओ+सिंखला
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