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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
संपादके 'अणगाल'नो अर्थ 'पुष्कळ' आप्यो छे अने सं. 'अनर्गल'मांथी एनी व्युत्पत्ति बतावी छे. 'अनर्गल'मांथी 'अणगाल' न आवी शके एटले 'अणगाल'ना 'पुष्कळ' एवा अर्थने माटे आधार रहेतो नथी. प्राकृत कोश 'अणगाल' शब्द 'दुर्भिक्ष, अकाल'ना अर्थमां नोंधे छे ते ज अहीं होवानो संभव छे. अलबत्त, अहीं 'अकाल' एटले 'खराब समय, माठी दशा' एवो कंईक अर्थ करवो पडे : "जेना घरे खराब समये बधु नष्ट कयुं छे, तेनो स्वामी विना सूनो संसार छे. "
मध्यकाळमां 'अगाल' शब्द अकाल, अयोग्य समय, कवखत एवा अर्थोमां वपरायेलो मळे ज छे. जेमके प्राचीफा. अंतर्गत 'विरह देसाउरी फागु'मां
फागुणि घरि प्रीय मेल्हए, यौवन पहलिइ अगालि. (फागणमां प्रियतमे मने घरमा एकली छोडी दीधी, कवखते, ताजी युवावस्थामां.) 'अगाल'मां 'अ+काल' छे, 'अणगाल'मां 'अन्+काल' छे.
१७. अणाथ, अणाथि, आथ, आथि, आथ्य ललिरा.मां नीचे मुजब पंक्ति आवे छे :
जु हुइ अणायि घरि, तु जईई परदेसि. संपादकोए 'अणाथि'नो अर्थ 'अनाथ' आप्यो छे, जे खोटो छे. 'अनाथ' परथी तो 'अणाह' आवे, 'थ' पण टके नहीं. मध्यकाळमां 'अणाह' शब्द वपरायेलो मळे ज छे. 'अणाथि' शब्द तो 'अन्+अस्ति' परथी आव्यो छे, अर्थ छे 'कई न होवू ते, दारित्र्य, गरीबी'. उपर्युक्त पंक्तिमा ए अर्थ स्पष्ट छ : जो घरमां दारिद्र्य होय तो परदेशे जईए.
'अणाथ', 'अणाथि' ए शब्दो 'दारिद्र्य, गरीबी के दरिद्र, गरीब' एवा अर्थमां अने 'आथ', 'आथि', 'आथ्य' ए शब्दो 'पूंजी, समृद्धि, धनसंपत्ति' एवा अर्थमां मध्यकाळमां व्यापक रीते प्रयोजायेल मळे छे. जेमके, दशस्कं-१.मां -
घरमां अणाव व्यापी सर्वत्र. (घरमां बधे दारिद्र्य व्यापेखें हतुं.) नंदब.मां -
अणाथने शी आथ्य (दरिद्रने शी संपत्ति ?)
गुण माटइ आय सहू लहइ. (गुणने कारणे सहु समृद्धि पामे छे.)
आ छेल्ला ग्रंथमां 'आय'नो 'अर्थ, समृद्धि' एम अर्थ आप्यो छे तेमां 'आथ' शब्द 'अर्थ' परथी आव्यो होवानुं मनायुं लागे छे, जे साचुं नथी.
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