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जेमके, महीराजकृत 'नलदवदंती रास'मां आवतां बधां ज देशनामो आ कोशमा समावेश पाम्यां छे.
(७) हिंदी भाषाना 'इसउं' 'इसिउं' जेवा आजे परिचित शब्दो पण मध्यकालीन भाषाना अंगभूत गणी रहेवा दीधा छे.
(८) संपादित ग्रंथोमां एवी कृतिओ पण संग्रहाई छे जेनी भाषा प्राकृत के अपभ्रंश छे. एना शब्दो पण ते-ते ग्रंथना शब्दकोशमां आवेला छे. आ शब्दोने गुजराती भाषाना शब्दो केटले अंशे गणवा ए एक विचारणीय मुद्दो छे. आम छता, गुजराती भाषाने ए भाषास्वरूप साथे निकटनो संबंध छ, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशना अनुसंधानमा मध्यकालीन गुजराती विकसी छे, तेथी एवा शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान आपवानुं इष्ट गण्युं छे.
परंतु 'प्रेमानंदनी काव्यकृतिओ'मां संग्रहायेल 'शामळदासनो विवाह' जेवी कोई कृति अर्वाचीन होवानुं निश्चित थाय छे तेना शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान आप्यु नथी, केमके अर्वाचीन कृतिओना शब्दो लेवानुं आ कोशनी मूळभूत कल्पनाथी विरुद्ध गणाय.
(९) मूळ संपादित ग्रंथोमा जे शब्दोना अर्थ आपी शकाया न होय ने संकलित कोशना संपादक पण आपी शके तेम न होय तेवा शब्दो प्राथमिक तबके छोडी दीधा हता. पछी एम लाग्युं के आ शब्दो तो साचवी लेवा जोईए. एथी, छोडी दीधेला शब्दो पाछा दाखल करवानो श्रम कर्यो छे, पण ए काम पूरी चोकसाईथी थई शक्युं हशे के केम ते विशे शंका छे.
(१०) एवं तो बने ज के जुदाजुदा ग्रंथोमांथी रूपभेदे एक ज शब्द प्राप्त थाय (कोई संपादित ग्रंथमां तो एक ज शब्दना एवा रूपभेदो अलग नोंधायेला छे). आवा रूपभेदो साचववा जतां आ संकलित कोशमां मोटुं जंगल ज ऊभुं थाय. ए रूपभेदोनुं सरलीकरण करवं अनिवार्य हतुं. ए माटे एक सामान्य रूप ज स्वीकारवानुं धोरण अहीं अपनाव्युं छे. नामिक रूपो परत्वे सामान्य रीते विभक्तिप्रत्यय विनानुं रूप आपवानु राख्युं छे. पण कोई एक ज ग्रंथमांथी, कोई एक ज विभक्तिप्रत्ययवाळु रूप आव्युं होय तो ते एम ने एम रही गयानुं पण देखाशे. उपरांत, थोडी बदलाती अर्थछाया, बीजा कोई शब्द साथे संभ्रम थवानी स्थिति के एवा कोई कारणथी विभक्तिप्रत्ययं विनानुं ने विभक्त प्रत्ययवाळु एम बन्ने रूप साचव्यां छे. जेमके 'अकाज' अने 'अकाजि'.
क्रियापदोनां रूपोनो कोयडो जरा वधारे अटपटो बन्यो छे. विविध काळ-अर्थनां रूपो एमां प्राप्त थाय, जेमके 'भिलइ' 'भिलिउं' 'भिली' 'भिल्यउ'. केटलाक संपादकोए विध्यर्थकृदंतनां 'वु'वाळां रूपो (जेमके 'भिलवु') आप्यां छे, तो कोईए मूळ धातु ज
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