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संपादकीय भूमिका
आ कोश एक संकलित कोश छे. एमां मध्यकालीन कृतिओना अनेक संपादित ग्रंथोना शब्दकोशनी सामग्री भेगी करवामां आवी छे. पण ए सामग्री जेम मळी छे तेम मूकी देवामां नथी आवी. एमां हानोपादाननो विवेक करवामां आव्यो छे, सामग्रीने संशोधित करवामां आवी छे अने एमां पूर्ति पण करवामां आवी छे. देखीती रीते ज, आ माटे केटलीक नीतिरीतिओ पहेलेथी नक्की करवी पड़े अने सामग्रीनी रजूआतनी पण चोक्कस पद्धति निपजाववी पडे. एवं अहीं करवामां आव्युं छे पण, काम घणो लांबो समय चाल्युं अने संपादकनी मांदगीनो पण मोटो विक्षेप पाम्युं तेथी, एमां सो टका एकरूपता रही शकी नथी, जोके ए माटे शक्य सघळो प्रयास करवामां आव्यो
आ कोशनी सामग्रीनी पसंदगी, शुद्धिवृद्धि वगेरेनी नीतिरीति अने रजूआतनी पद्धति एवी विशिष्ट छे के एनी वीगते अने सदृष्टांत समजूती आपवी आवश्यक छे. कोशना चार विभागो - शब्दसामग्री, आधारग्रंथो, शब्दार्थ अने शब्दमूळ -- ने अनुलक्षीने ए समजूती आपीशुं.
शब्दसामग्री अहीं आरंभे घाटां बीबांमां जे शब्द छे ते आधारग्रंथना शब्दकोशमांथी प्राप्त थयेलो मध्यकालीन शब्द छे.
एक नियम तरीके अहीं एवा शब्दकोशो समाध्या छे, जे वर्णानुक्रमिक होय, जेमां शब्द कृतिमां क्यां वपरायो छे एनो निर्देश होय अने शब्दनो अर्थ पण साथे ज नोंधवामां आप्यो होय. एवा संपादित ग्रंथो पण मळे छे के जेमां शब्दकोश वर्णानुक्रमिक न होय, जेमके के. का. शास्त्री अने चैतन्यबाळा ज. दिवेटिया संपादित 'प्रेमानंदनां त्रण आख्यान', शिवलाल जेसलपुरा संपादित 'प्राचीन मध्यकालीन बारमासा संग्रह' वगेरे (आमां शब्दो एमना प्रयोगना स्थानना क्रममा छे), अथवा शब्दकोश वर्णानुक्रमिक होय परंतु शब्दना प्रयोगस्थाननो निर्देश न होय, नेमके ह. चू. भायाणी, र. म. शाह अने गीताबहेन संपादित मेरुसुंदरगणिविरचित 'शालोपदेशमाला बालावबोध' वगेरे, अथवा शब्दकोश वर्णानुक्रमिक होय, स्थाननिर्देश पण होय परंतु अर्थ दर्शाववामां आव्यो न होय, एने माटे टिप्पणनो हवालो आपवामां आव्यो होय, जेमके के. ह. ध्रुव संपादित भालणकृत 'कादंबरी : उत्तर भाग', मंजुलाल मजमुदार संपादित प्रेमानंदकृत 'रणयज्ञ' वगेरे. आवा शब्दकोशो आ संकलित कोशमां समाव्या नथी अने पंक्तिक्रमे अपायेला टिप्पणोमा रहेला शब्दार्थोनो समावेश तो स्वाभाविक रीते ज न होय. आमां
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