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साहित्य न हतुं. प्रत्यक्ष रजूआत अने समूहभोग्यतानी दृष्टिथी ए रचातुं हतुं अने एनो एना स्वरूपनिर्माणनां महत्त्वनो फाळो हतो. लोकोनी मध्यकालीन साहित्यना सर्जनमा परोक्ष सामेलगीरी हती. लोकोनी विविध जरूरियातो संतोषवा निर्मायेखें, सर्व प्रकारनां काव्यचातुर्योनो आश्रय लेतुं अने गानादि कळाने पण पोतानी सहायमां लेतुं मध्यकालीन साहित्य शुद्ध साहित्य नहोतुं पण, कहो के, संपूर्ण साहित्य हतुं. हा, जेम संपूर्ण रंगभूमि (टोटल थिएटर) जेवी कोई वस्तु छे, तेम संपूर्ण साहित्य (टोटल लिटरेचर) जेवी कोई वस्तु पण होई शके. मध्यकालीन साहित्यने संपूर्ण साहित्यनां धोरणोथी माणवू-नाणवू जोईए. __मध्यकाळथी आपणे आजे ठीकठीक दूर पडी गया छीए. आजे आपणे जुदी हवामां श्वसीए छीए. मध्यकाळना साहित्यनो रस माणवामां, तेथी, आपणने अवश्य केटलांक विघ्नो नडे - भाषाप्रयोगोथी मांडीने सांस्कृतिक परिवेश सुधीनां, तेम छतां आ विघ्नोनुं आपणे निवारण न करी शकीए एवं नथी, केमके ए आपणी ज पूर्व परांपरा छे. संस्कारभूमिकानी केटलीक समानता एनी साथे आपणे शोधी शकीए, एनी साथे आत्मीयता साधी शकीए तेमज एनो रस माणी शकीए. जरूर छे मात्र एना प्रत्ये
भिमुख थवानी. अंग्रेजी साहित्यथी प्रभावित कवि कान्तने एक वखते प्रेमानंद मात्र पद्यजोडु लागेला, परंतु न्हानालाले एमनी पासे प्रेमानंदनां आख्यानो वांच्या पछी एमनो अभिप्राय बदलायेलो. आधुनिक बोधना गुजराती आदिकवि निरंजन भगत हमणां मध्यकालीन कविओ विशे नियमित रीते व्याख्यानो आपी एमने पोतीकी रीते प्रकाशित करा रह्या छे अने आपणा आधुनिक कवि लाभशंकर ठाकर पण प्रेमानंदना आख्यानना पठनना जाहेर कार्यक्रमो करी लोकोने एनो रसास्वाद करावो रह्या छे ने ए रीते मध्यकालीन साहित्यवारसानी मूल्यवत्ता स्थापित करी रह्या छे. सर्जको माटे तो मध्यकालीन साहित्य खरेखर एक अखूट खजानो छे. आजे आपणा सर्जको लोकभाषा, लोकजीवन अने तळपदी साहित्यप्रणालिओनो कार्यसाधक विनियोग करी पोतानां सर्जनोमां ताजगी अने नूतनता नथी आणी रहेला देखाता ? तो ए रीते मध्यकालीन साहित्यपरंपरानो पण नूतन सर्जनात्मक विनियोग जरूर थई शके. एनां शब्दराशि, रूढिप्रयोगो ने वाक्छटाओमांथी तो घणुं पुनर्जीवित करवा जेवू मळी रहे. में अखाभगतना छप्पाओना अर्थविचारना लेखो लखेला एमां आधुनिक साहित्यना सर्जक कोईकोई कविमित्रोए रस लीधार्नु में जाण्युं त्यारे पहेला तो मने आश्चर्य थयेलुं पण पछी ए स्वाभाविक लागेलं (जोके ए लेखोर्नु, १९८९ना वर्षना विवेचनविषयक सन्धान क्रिटिक्स एवॉर्डने पात्र बनेलं पुस्तक घणुं ओर्छ वेचाय छे ने एy कशे अवलोकन थयुं नथी ए पण एक वास्तविकता छे). आ संदर्भमां भृगुराय अंजारियाए युवाकवि हरीन्द्र दवेने आपेली शीख
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