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मूकवानी तक पूरी पाडी छे. आवा ग्रंथ- छापकाम पण घणी सूझ, चीवट अने महेनत मागे. शारदा मुद्रणालय (लेसर विभाग)ना रोहित कोठारीए अंगतभावथी सघन, सुंदर टाइपसेटिंग ने ले-आउट करी आप्या ने भाग्ये ज भूल होय एवां प्रफ मारा सुधी पहोंचाइयां ए एक विरल अनुभव छे ने रोहित मारो पुत्र होवाथी हुँ एनो उल्लेख न करूं तो हुं नगुणो कहेवाउं. प्रेसने तो मारी मांदगीने कारणे, थयेनु कम्पोझ धणो समय साचवी राखवा, पण थयुं. ___आजुबाजु तैयार थयेला कार्डनां बॉक्स, जेमांथी शब्दो लेवामां आव्या होय ए पुस्तको अने शब्दकोशो तथा अन्य संदर्भग्रंथोनो पथारो करी घरमां कलाको सुधी बेसी रहेनार मने सहन करी लेनार स्वजनोना स्नेहने पण दाद आपवी ज जोईए ने ?
___आ कोशरचनाए, आम, अनेक रीतना समृद्ध अनुभवर्नु भाथु पूरुं पाड्युं छे. मारी विद्यायात्रामा - अने जीवनयात्रामा - पण ए हमेश प्रेरकपोषक बनी रहेशे - बनी रहो ! २० मार्च, १९९५
जयंत कोठारी
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