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अत्थेगइयाणं जीवाणं बलियत्तं साहू ।
अत्थेगइयाणं जीवाणं दुव्वलियतं साहू ॥ धर्मनिष्ठ आत्माओं का बलवान होना उत्तम है और धर्महीन आत्माओं का दुर्बल रहना।
-भगवती सूत्र ( १२/२) अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू,
अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरिवत्तं साहू । अधार्मिक आत्माओं का सोते रहना अच्छा है तो धार्मिक आत्माओं का नित्य जागते रहना।
–भगवती सूत्र (१२/१) अत्तकडे दुक्खे नो परकडे । आत्मा का दुःख उसका अपना किया हुआ है, किसी अन्य का किया हुआ नहीं है।
-भगवती सूत्र ( १७/५) अप्पा अप्पम्मि रओ, सम्माइट्ठी हवेइ फुडु जीवो। जो आत्मा, आत्मा में लीन है, वही सम्यग्दृष्टि है ।
-भावपाहुड़ ( ३१) अप्पो वि य परमप्पो, कम्मविमुक्को य होइ फुडं । वह आत्मा, परमात्मा बन जाता है, जब वह कर्मों से छुटकारा पा जाता है ।
-भावपाहुड़ (१५१) सुहपरिणामो पुण्णं, असुहो पावंति हवदि जीवस्स। आत्मा का शुभ-परिणाम पुण्य है तथा अशुभ परिणाम पाप है।
-पञ्चास्तिकाय (१३२) विणए अविज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो।
आत्मा का हित चाहनेवाला मनुष्य स्वयं को विनय-सदाचार में स्थापित करे।
- उत्तराध्ययन (१/६)
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