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प्रकाशन-प्रस्तुति
महोपाध्याय मुनि श्री चन्द्रप्रभसागरजी सम्पादित 'प्राकृत-सूक्तिकोश' नामक मानक ग्रन्थ प्रकाशित करते हुए हमें अतीव प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
वस्तुतः मुनि श्री चन्द्रप्रभसागरजी न केवल एक सन्त हैं, अपितु वे एक प्रतिष्ठित कवि, विचारक, साहित्यकार, लेखक और व्याख्याता भी हैं। आयु से वे युवा हैं, परन्तु कार्य में प्रौढ़। उनका साहित्य उनकी गहन श्रुत-साधना तथा तपःसाधना का मधुर फल है। भाव, विचार, भाषा-शैली एवं अभिव्यंजना सब कुछ श्रेष्ठ है उनका ।
प्रस्तुत ग्रन्थ भी मुनिश्री के व्यक्तित्व पर अच्छा प्रकाश डालता है। उनका यह ग्रन्थ उनकी कठोर श्रुत-साधना का यथार्थ परिचय है। मुनिश्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ अथक् श्रम एवं आत्मनिष्ठा के साथ संकलित/ सम्पादित किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन छोटी-छोटी प्राकृत-सूक्तियों का संकलन किया गया है, जिनमें भारतीय तत्त्व-चिन्तन एवं नैतिक जीवन-दर्शन की अनन्त ज्ञान-ज्योति समाहित है। यह ठीक वैसे ही है जैसे नन्हें-नन्हें गुलाब-पुष्पों में उद्यान-कानन का सौरभमय वैभव निहित रहता है।
प्राकृत-भाषा की सूक्तियों के संकलन का क्षेत्र कुछ प्रारम्भिक सामान्य प्रयासों को छोड़कर अभी तक अछूता ही रहा। प्रस्तुत ग्रन्थ उस अभाव की महत्त्वपूर्ण पूर्ति है। यह उच्च-स्तरीय प्रयास है-अपने आप में सर्वप्रथम और आशातीत ।
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