________________
जिस तरह सभी नदियाँ अनुक्रम से समुद्र में आकर मिलती हैं, उसी तरह महाभगवती अहिंसा में सभी धर्मों का समावेश होता है ।
- संबोधसत्तरी ( ६ )
अत्था हणंति, धम्मा हणंति कामा हणंति, अत्था धम्माकामा हणंति ।
कई व्यक्ति अर्थ के निमित्त से जीवों को मारते हैं, कई धर्म के नाम पर मारते हैं, कई कामभोग के लिए मारते हैं तो कई अर्थ, धर्म और काम तीनों के निमित्त से मारते हैं ।
प्रश्नव्याकरणसूत्र ( १/१/३ ) इहलोइओ परलोइओ
पाणवहस्स
फलविवागो
अप्पसुहो बहुदुक्खो न य अवेदयित्ता अस्थि हु मोक्खो । प्राणीवध - हिंसा का फल इस लोकसम्बन्धी और परलोकसम्बन्धी अल्पसुख एवं बहुत दुःख देनेवाला है । हिंसा के कड़वे फल को भोगे या क्षय किये बिना मुक्ति नहीं है ।
भगवती अहिंसा, भीयाणं विव सरणं ।
जिस प्रकार भयाक्रान्त के लिए शरण की प्राप्ति हितकर है, जीवों के लिए उसी प्रकार, अपितु इससे भी बढ़कर भगवती अहिंसा हितकर है।
हिंसा का प्रतिपक्ष 'अहिंसा' है ।
- प्रश्नव्याकरणसूत्र ( १/१ )
अहिंसा तस थावर - सव्वभूय खेमंकरी ।
अहिंसा गतिशील और स्थित - सभी प्राणियों का कुशलक्षेम करनेवाली है । - प्रश्नव्याकरणसूत्र ( २ / १ )
हिंसाए पडिवक्खो होइ अहिंसा ।
४२ ]
-
- प्रश्नव्याकरणसूत्र ( २ / १ )
Jain Education International 2010_03
रागादीण मणुप्पाओ,
राग आदि की अनुत्पत्ति अहिंसा है और उत्पत्ति हिंसा है ।
- दशवेकालिक नियुक्ति ( ४५ ) अहिंसकत्तं ।
- जयधवला ( १/४२ / ६४ )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org