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सज्झाएवा निउत्तेण, सव्वदुक्खविमोक्खणे । नित्य स्वाध्याय करते रहने से सारे दुःखों से विमुक्ति मिलती है।
- उत्तराध्ययन (२६/१०) सज्झायं च तओ कुज्जा, सव्वभाव विभावणं । स्वाध्याय सब भावों का प्रकाशक है ।
--उत्तराध्ययन ( २६/३७)
स्वाभिमानी झीणविहवो वि सुयणो सेवइ रन्नं न पत्थए अन्नं । मरणे वि अइमहग्धं न विक्किणइ माणमाणिक्कं ।।
स्वाभिमानी सुजन धनहीन होने पर वन में चला जाता है किन्तु अन्य से याचना नहीं करता । वह मर जाने पर भी स्वाभिमान-रुपी अमूल्य माणिक्य को नहीं बेचता।
-वजालग्ग (६/४ ) ते धन्ना ताण नमो ते गरुया माणिणो थिरारंभा।
जे गरुयवसणपडिपेल्लिया वि अन्नं न पत्थंति ॥ जो दारुण दुःख से पीड़ित होने पर भी अन्य से याचना नहीं करते, वे उद्योग में स्थिर रहने वाले, गौरवशाली और स्वाभिमानी धन्य हैं, उन्हें प्रणाम है।
-वज्जालग्ग (६/११)
हृदय-संवरण सातम्मि हियय दुलहम्मि माणुसे अलियसंगमासाए । हरिण व मूढ मयतण्हियाइ दूरं हरिजिहिसि ।। अरे मूढ़ मन ! मानुष सुख दुर्लभ हो जाने पर तु उसी प्रकार मिथ्या संगमाशा के द्वारा दूर तक भरमाया जाऐगा, जैसे हरिण मृगमरीचिका के द्वारा दौड़ाया जाता है।
-वज्जालग्ग (४७/२)
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