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जो ऋजु होता है, वही शुद्ध हो सकता है और जो शुद्ध होता है, उसी में धर्म टिक सकता है ।
- उत्तराध्ययन ( ३/१३ )
पावइ
भद्दाणि
भद्दओ ।
भद्दपणेव सविसो हम
सप्पो,
भेरुडो तत्थ मुच्चइ ||
भद्र को ही कल्याण प्राप्त होता है ।
मनुष्य को भद्र होना चाहिये । विषधर सर्प कुटिल एवं भयङ्कर होने से ही मारा जाता है, निर्विष नहीं । - उत्तराध्ययन-निर्युक्ति ( ३२६ )
जो चिंतेइ ण वंकं, ण कुणदि वंकं ण जंपदे वंकं । णय गोवदि णियदोसं, अज्जव-धम्मो हवे तस्स ॥
जो व्यक्ति कुटिल विचार नहीं करता, कुटिल कार्य नहीं करता, कुटिल वचन नहीं बोलता और अपने दोषों को नहीं छिपाता, उसके आर्जव धर्म होता है ।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा ( ३६६ )
होअव्वं,
नवणीय तुल्लहियया साहू | साधुओं का हृदय मक्खन के समान कोमल होता है ।
साधु सागर के समान गंभीर होता है ।
साधु कल्पवृक्ष है |
साहुणा सायरो इव गंभीरेण होयव्वं ।
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साधु दर्पण के सदृश निर्मल होता है ।
- व्यवहारभाष्य ( ७ / १६५ )
साहवो कप्परुक्खा ।
- दशवेकालिक - चूर्णि ( १ )
अद्दागसमो साहू |
साधु
- नंदी सूत्र - चूर्णि ( २/१६ )
- बृहत्कल्पभाग्य ( ८१२ )
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