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सत्यवान्
विस्मणिजो माया व, होइ पुज्जो गुरुत्व लोअस्स । सयणुव्व सच्चवाई, पुरिलो सव्वस्स होइ पिओ ॥ सत्यपरक व्यक्ति माता की तरह विश्वसनीय, गुरु की तरह पूज्य और - स्वजन की तरह सबको प्रिय होता है ।
- भक्त - परिज्ञा (६६)
ण डहदि अग्गी सच्चेणं णरं जलं च तं ण बुड्डेइ । सत्यवादी को अग्नि जलाती नहीं, पानी उसको डूबाने में असमर्थ
होता है ।
- भगवती आराधना (८३८)
एगागिस्स हि चिताई, उप्पज्जंति वियंते य,
एकाकी रहने वाले साधक के मन में प्रतिक्षण नाना उत्पन्न एवँ विलीन होते रहते हैं
।
श्रेष्ठ है ।
विचिताई खणे खणे । वसेव सज्जणे
जणे ॥
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जहदिय निययं दोसंपि दुज्जणो जह मेरू मल्लियंतो काओ
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सत्संग
प्रकार के विकल्प
अतः सज्जनों की संगति में रहना ही
जो जारिसीय भेत्ती केरइ सो होइ तारिसो चेव । वासिज्ज इच्छुरिया सा रिया वि कणयादि संगेण ॥
जैसे छुरी सुवर्णादिक की जिल्हई देने से वह स्वर्णादि स्वरूप की दीखती है, वैसे मनुष्य भी जिसकी मित्रता करेगा वैसा ही अर्थात् दुष्ट के सहवास से दुष्ट और सज्जन के सहवास से सज्जन होगा |
- वृहत्कल्प भाष्य ( ५७ / १६ )
-भगवती-अ -अराधना ( ३४३ )
सुयणवइयर गुणेण । णिययच्छविं जहदि ॥
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