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सामाइयं उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा ।
एएण कारणेण, बहुसो सामाइयं कुज्जा || सामायिक के समय श्रावक श्रमण के तुल्य हो जाता है। इसलिए श्रावक को सामायिक दिन में अनेक बार करनी चाहिये।
-विशेषावश्यक भाष्य ( २६६० ) दाणं पूया मुक्खं सावयधम्मे । श्रावकधर्म में दान और पूजा मुख्य है ।
-रयणसार (११) पंचेव अणुव्वयाई गुणव्वयाई च हुंति तिन्नेव । सिक्खावयाई चउरो, सावगधम्मो दुवालसहा ।। श्रावक धर्म पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाबत यों बारह प्रकार है।
-श्रावक-धर्म प्रज्ञप्ति (६) धम्मरयणस्स जोगो, अक्खुद्दो रुववं पगइसोम्मो। लोयप्पियो अक्कूरो, भीरु असठो सुदक्खिन्नो। लजालुओ दयालु, मज्झत्थो सोम्मदिट्ठी गुणरागी। सक्कह सपक्खजुत्तो, सुदीहदंसी विसेसन्नु । बुड्ढाणुरागो विणीओ, कयन्नुओ परहिजत्थकारी य ।
तह चेव लद्धलक्खो, एगवीसगुणो हवई सड्ढो॥ धर्म को धारण करने योग्य श्रावक में २१ गुण होने चाहिये । यथा :-१. अक्षुद्र, २. रूपवान, ३. प्रकृति सौम्य, ४. लोकप्रिय, ५. अक्रूर, ६. पापभीरू, ७. अशठ (छल नहीं करने वाला ), ८. सदाक्षिण्य (धर्मकार्य में दूसरों की सहायता करने वाला ), ६. लज्जावान, १०: दयालु, ११. रागद्वेष रहित (मध्यस्थभाव में रहने वाला), १२. सौम्यदृष्टि वाला, १३. गुणरागी १४. सत्य कथन में रुचि रखने वाला-धार्मिक परिवारयुक्त, १५. सुदीर्घदर्शी, १६. विशेषज्ञ १७. बृद्ध महापुरुषों के पीछे चलने वाला, १८. विनीत, १६ कृतज्ञ ( किए उपकार को समझने वाला, २०. परहित करनेवाला, २१. लब्ध लक्ष्य ( जिसे लक्ष्य की प्राप्ति प्रायः हो गई हो।
-प्रवचनसारोद्धार (१३५६-१३५८) २५८ ]
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