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न कम्मुणा कम्म खवेन्ति बाला ।
अज्ञानी कितना ही प्रयत्न करे, किन्तु पाप कर्मों से पाप कर्मों को कभी भी नष्ट नहीं किया जा सकता ।
- सूत्रकृताङ्ग ( १/१२/१५ )
वेण वाऽहं सहिउत्ति मत्ता । अण्णं जणं पसति बिंबभूयं ॥ जो भिक्षु यह गर्व करता है कि 'मैं ही अकेला तपस्वी हूँ, अन्य सभी लोग खेत में खड़ी घास के ढ़ाँचे मात्र हैं,' वह मूर्ख है, मूढ़ है 1 -सूत्रकृताङ्ग ( १ / १३ / ११ )
अगीअत्थस्स वयणेणं
अमयंपि न घुंटए ।
अगीतार्थ के कथन पर पीयूष का भी पान नहीं करना चाहिए ।
भुंजइ सूयरे ।
रमई मिए ॥
कण कुंडगं चाणं, विटठं एवं सीलं वइत्ताणं दुस्सीले जैसे चावलों का स्वादिष्ट आहार छोड़कर सूअर विष्ठा खाता है, वैसे ही पशुवत जीवन व्यतीत करनेवाला अज्ञानी शील को परित्यागकर दुःशील को पसन्द करता है ।
- गच्छाचार ( ४६ )
बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥
जड़मूढ़ शिष्यों को शिक्षा देता हुआ ज्ञानी गुरु उसी प्रकार खिन्न होता है, जिस प्रकार अड़ियल या मरियल घोड़े पर चढ़ा हुआ घुड़सवार ।
- उत्तराध्ययन ( १ / ३७ )
अनंतए ।
लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि मृढ़ प्राणी अनन्त संसार में अनन्त बार जन्म और मृत्यु का ग्रास बनते हैं ।
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-- उत्तराध्ययन ( १ / ५ )
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आसुरीयं दिसं बाला, गच्छंति अवसा तमं ।
अज्ञानी व्यक्ति विवश हुए अंधकाराच्छन्न आसुरी गति को प्राप्त होते हैं ।
- उत्तराध्ययन ( ७/१६ )
- उत्तराध्ययन ( ६ / १ )
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