________________
आत्म-परिणामों में विशुद्धि आने से लेश्या अर्थात् मनोभाव की विशुद्धिः होती है और कषायों की मन्दता से परिणाम विशुद्ध होते हैं ।
- भगवती - आराधना ( १६११ )
किण्हा नीला य काऊ, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाई तु जहक्कमं ॥ लेश्याएँ ' छः हैं— कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल । - उत्तराध्यय ( ३४ / ३ )
जिस
किण्हा नीला काऊ, तिणि वि एयाओ अहम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई ॥ कृष्ण, नील और कपोत- ये तीन अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं । जीव के चित्त में तर-तम भाव से जितने अंशों में इन तीनों लेश्याओं के. अनुसार विचार-धारा चलती है, वे जीव उतने ही अंशों में प्रत्यक्ष, इस जन्म में तो दुर्गति, दुर्दशा, दुःखमय स्थिति प्राप्त करते ही हैं, भवांतर में भी दुर्गति ही पाते हैं ।
- उत्तराध्ययन ( ३४ / ५६ )
तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि. एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि बि जीवो, सुग्गई उववज्जई ॥
तेज, पद्म और शुक्ल - ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं । जिस जीव के मनोभाव में तरतमभाव से जितने अंशों में इन धर्म लेश्याओं के अनुसार विचार धारा होती हैं, वह जीव उतने ही अंशों में वर्तमान में तो निश्चय ही सद्गति, सद्दशा पाता हैं I जन्मान्तर में भी उसे सद्गति ही प्राप्त होती हैं । - उत्तराध्ययन ( ३४ / ५७ )
जोगपउत्ती लेस्सा, कसाय उदयाणुरंजिया होई ।
कषाय के उदय से अनुरंजित मन-वाणी-देह की योग प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं ।
- गोम्मटसार - जीवकाण्ड ( ४६० )
१ - लेश्या : मनोभाव, चित्त की वृत्ति, आत्मा का परिणाम, अध्यवसाय |
4
[ २०३
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org