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जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्या महापहं । विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भग्गम्मिसोयई ॥ एवं धम्मं विउक्कम्म अहम्मं पडिवज्जिया । बाले मच्चुमुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई ॥
जिस प्रकार मूर्ख गाड़ीवान जान-बूझकर साफ-सुथरे राजमार्ग को छोड़ टेढ़े-मेढ़े, ऊबड़-खाबड़ जैसे विषम मार्ग पर चल पड़ता है और गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है, वैसे ही मूर्ख मनुष्य जान-बूझकर धर्म ( धर्ममार्ग ) को छोड़ कर अधर्म ( अधर्म मार्ग ) को पकड़ लेता है और अन्त में मृत्यु - मुख में पहुँचने पर जीवन की धुरी टूट जाने से शोक करता है ।
-- उत्तराध्ययन ( ५ / १४, १५ )
जहा य तिण्णि वणिया, मूलं घेत्तूण निग्गया । एगोऽत्थ लहई लाहं एगो मूलेण आगओ ॥ एगो मूलं पि हारिता, आगओ तत्थ वाणिओ । ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाह ॥
जैसे तीन वणिक मूल पूँजी को लेकर निकले। उनमें से एक लाभ उठाता है, एक मूल लेकर लौटता है और एक मूल को भी गँवाकर वापस आता है । यह व्यापार की उपमा है । इसी प्रकार धर्म के विषय में जानना चाहिए ।
-उत्तराध्ययन ( ७/१४-१५ )
धुराहिगारे ।
धणेण किं धम्म धर्म की धुरा को खींचने के लिए धन की क्या आवश्यकता
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जो रात और दिन एक बार अतीत की ओर वापस नहीं लौटते; जो मनुष्य धर्म करता है, जाते हैं ।
जा जा वच्चइ रयणी, न सा धम्मं व कुणमाणस्स, सफला
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है
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- उत्तराध्ययन ( १४ / १७ )
पडिनियत्तई । जन्ति राइओ ||
चले जाते हैं, वे फिर कभी उसके वे रात-दिन सफल हो
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- उत्तराध्ययन ( १४/२५ )
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