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सूक्तियों का विषय-वर्ण क्रमानुसार प्रस्तुतिकरण हुआ है। इसमें मूल प्राकृत, हिन्दी-अनुवाद, मूल ग्रन्थ का नाम एवं ग्रन्थ की गाथा-संख्या देते हुए क्रमबद्ध संग्रह-कोश तैयार किया गया है। अतः प्रस्तुत ग्रन्थ न केवल सूक्ति-कोश है, अपितु सन्दर्भ-कोश भी बन गया है। सूक्तिकोश के रूप में यह ग्रन्थ जनसाधारण के लिए लाभदायक है और सन्दर्भ-कोश के रूप में शोधकर्ताओं, लेखकों आदि के लिए। संक्षेप में, यह कोश जो मैं आज जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ, सबकी चिर-प्रतीक्षित आवश्यकता को पूरा करेगा, ऐसा विश्वास है। अन्त में
यत्र सौष्ठवं किञ्चित्तद्गुर्वोरेव मे न हि ।
यदत्रासौष्ठवं किञ्चित्तन्ममैव तयोर्न हि ।। -इन शब्दों के साथ यह कोश सुधी पाठकों के हाथों में समर्पित है।
१ दिसम्बर' १९८५ ६ सी, एस्प्लानेड रो (ईस्ट) कलकत्ता-६६
-चन्द्रप्रभसागर
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