________________
दीणे णामं एगेणो दीणमणे ।
दीणे णांमं एगेणे दीण संकप्पे । कुछ मनुष्य देह व धन आदि से दीन होते हैं ; किन्तु उनका मन और संकल्प बड़ा उदार होता है ।
-स्थानांग ( ४/२) अट्ठकरे णामं एगे णो माण करे । माण करे णामं एगे णो अट्ठ करे । एगे अट्ट करे कि माण करे वि।
एगे णो अट्ट करे, णो माण करे। कुछ पुरुष सेवा आदि महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं ; किन्तु उसका गर्व नहीं करते ! कुछ गर्व करते हैं ; किन्तु कार्य नहीं करते। कुछ कार्य भी करते हैं, गर्व भी करते हैं । कुछ न कार्य करते हैं, न गर्व ही करते हैं ।
__ -स्थानांग (४/३) अप्पणो णामं एगे पत्तियं करेइ, णो परस्स । परस्स णामं एगे पत्तियं करेइ, णो अपणो। एगे अप्पणो पत्तियं करेइ, परस्स वि।
एगे णो अपणो पत्तियं करेइ णो परस्स। कुछ पुरुष ऐसे होते है जो केवल अपना भला चाहते हैं ; दूसरों का नहीं । कुछ उदार पुरुष अपना भला चाहे बिना भी दूसरों का भला करते हैं। कुछ अपना भला करते हैं और दूसरों का भी। कुछ न अपना भला करते हैं और न दूसरों का।
-स्थानांग (४/३) हिययमपावम कलुसं, जीहाविय मधुर भासिणी णिच्वं । जंमि पुरिसम्मि विजति, से मधु कुंभे मधु पिहाणे ।
जिसका हृदय निष्पाप और निर्मल है, साथ ही वाणी भी मधुर है, वह पुरुष मधु के घड़े पर मधु के ढक्कन के समान है ।
-स्थानांग (४/४) २१० ]
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org