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काट दी जाती है, वैसे ही अपराध रहित भद्र पुरुष भी दुष्ट संग के कारण कष्ट को प्राप्त होता है ।
- वज्जालग्ग (८४५ )
साहीण- सज्जणा वि हु णीअ-पसंगे रमन्ते काउरिसा | काअ-धारणं सुलह रअणाण ॥
सा इर लीला जं आश्चर्य ! दुष्ट पुरुष नीच संगति में ही प्रसन्न होते हैं यद्यपि सज्जन उनके निकट होते हैं, यह निश्चय ही दुर्जनों की स्वेच्छाचारिता है कि रत्नों के सुलभ होने पर भी उनके द्वारा कांच ग्रहण किया जाता है।
- गउडवही (६१७ )
उदगस्स फासेणसिया य सिज्झिसु पाणा बहवे
यदि जलस्पर्श से ही सिद्धि प्राप्त होती हो, अनेक जलचर जीव कभी के मोक्ष प्राप्त कर लेते ।
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सिद्धी,
दगंसि ।
क्रान्त-वचन
तो जल में निवास करनेवाले
- सूत्रकृताङ्ग ( १७/१४)
अप्पाणमबोहता परं विबोवहति केइ ते वि जडा । भण परियणम्मि छुहिए, सत्तागारेण किं कज्जं ॥
जो लोग स्वयं को बोध कराये बिना दूसरों को बोध देने जाते हैं, वे वस्तुतः मूर्ख हैं । भला जब स्वयं का परिवार भूखा है, तब भी उन्हें दानशाला लगाने का क्या प्रयोजन ?
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- आत्मावबोधकुलक ( ३८ )
धम्मु ण पढ़ियइँ होइ धम्मु ण पोत्थापिच्छियइँ । धम्मु ण मढिय-परसि धम्मु ण मत्था लुँखियइँ || राय-दोस वे परिहरिवि जो अप्पाणि
वसेइ ।
सो धम्मु वि जिण उत्तिमउ जो पंचम - गइ णेइ ।
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