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________________ उवसामं पुवणीता, गुणमहत्ता जिणचरित्तसरिसं पि । पडिवातेति कसाया, किं पुण सेसे सरागत्थे ॥ महागुणी मुनि के द्वारा उपशान्त किये हुए कषाय जिनेश्वरदेव के समान चरित्रवाले उस उपशमक वीतराग को भी गिरा देते हैं, तब सराग मुनियों का तो कहना ही क्या ? - विशेषावश्यक - भाष्य ( १३०३ ) कामा दुरतिकम्मा | कामनाओं का पार पाना बहुत कठिन है । कामे कमाही कमीयं खु दुक्खं । इच्छाओं का परित्याग ही कष्टों को दूर करना है । - आचाराङ्ग ( १/२/५ ) कामना तिविहा य होइ कंखा, इह परलोए तथा कुधम्मे य । कामना तीन प्रकार की होती है— इहलोक - विषयक, परलोक-विषयक एवं स्वधर्म को छोड़कर कुधर्म या परधर्म - ग्रहण-विषयक | -- मूलाचार ( २४६ ) छंद निरोहेण उas मोक्खं आसे जहा सिक्खिय- वम्मधारी । Jain Education International 2010_03 - दशवेकालिक ( २/५) शिक्षित और वर्म ( कवच ) धारी अश्व जैसे युद्ध से पार हो जाता है वैसे ही इच्छा या स्वच्छन्दता का निरोध करनेवाला साधक संसार से पार हो जाता है । - उत्तराध्ययन ( ४/८) For Private & Personal Use Only [ ८७ www.jainelibrary.org
SR No.016070
Book TitlePrakrit Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJayshree Prakashan Culcutta
Publication Year1985
Total Pages318
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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