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शब्दरत्नमहोदधिः।
[आप्रच्छन्न-आभयजात्य
शुभा.
आप्रच्छन्न त्रि. (आ+प्र+छद्+क्त) १. अत्यंत गुप्त, | आबद्ध न. (सम्यक् आबद्धम् बन्ध् + भावे क्त) २. थोडं गुप्त, 3. थोडं छान.
१.भ.४५त. धन, - आबद्धमण्डला तापसपरिषदआप्रदीन त्रि. (आप्रपदं पादाग्रान्तं व्याप्नोति आप्रपद+ख) | का० ४९ . २. प्रेम. स्नेहअ. -मार.
પગના અગ્ર ભાગ સુધી પહોંચે એવું વસ્ત્ર વગેરે. ४. तर, ५. (त्रि.) cipj, - आबद्धभीमभृकुटीआप्रपद अव्य. (प्रपदं-पदाग्रं तत्पर्य्यन्तम्) ५ना A करालम् -भट्टि० , . प्राप्त थये.यु, ७. यु.. ભાગ સુધી.
आबन्ध पु. (आ+बन्ध्+घञ्) प्रेम, ४ धन, - गते आप्रवण त्रि. (ईषत् प्रवणः) थोर्ड न.
प्रेमाबन्धे प्रणयबहुमाने विगलिते -अमरुशतकम्, होत, आप्री स्री. (आप्रीणाति अनया आ+प्री+ड+ङीप्) भूष.. प्रया याच्या
आबन्धन न. (आ+बन्ध+ल्युट) 6५२नो अर्थ हुमो. आप्रीत त्रि. (आ+प्री+क्त) सारी रात. प्रसन्न थयेट, -प्रेमाबन्धविवर्धित०-रत्न० ३।१८. થોડું પ્રસન્ન થયેલ.
आबह पु. (आ+बर्ह हिंसायां घञ्) 6403, 650 आप्रीत न. (आ+प्री+क्त) सा. शत. प्रसन्न थj. नमg, tी नाम, थी. saj, डिंसा ४२वी, आप्रीतप पु. (आप्रीतं पाति पा+क) वि.
ઠાર મારવું. आनुवण त्रि. (आ++ल्युट) थोडं पाणj. आबर्हण न. (आ+बर्ह हिंसायां ल्युट्) 6५२नो अर्थ आप्लव पु. (आ+प्लु पक्षे घञ्) आप्लवन २६ मो.
आबर्हिन् त्रि. (आबर्होऽस्त्यस्य इनि) 611340 43 आप्लवन पु. (आ+प्लु+अप् ल्युट वा) स्नान, ruj,
युत. ચારે તરફ જળનું ઊછળવું.
आबाध पु. (आबाध्+घञ्) पी.31, हुम.. आप्लववृतिन् पु. (आप्लवः समावर्तनस्नानमेव आबाधा स्त्री. (आ+बा+भावे अ) पी.30a90 प्रारना
व्रतमस्त्यस्य इनि) स्नात स्थ. आप्लुतवतिन् તાપરૂપ ક્લેશ, પૃથ્વીનો ખંડ–ત્રણ ખૂણાવાળા ક્ષેત્રની શબ્દ જુઓ.
વચ્ચે દોરડું નાખીએ ને જે બે ભાગ પડે તે. आप्लावित त्रि. (आ+प्लु+णिच्+क्त) नास, ४५ | आबाल्य न. (बाल्याद् आ-आबाल्यं पर्यन्तार्थेऽव्ययीभावः) વગેરેના પ્રવાહથી વ્યાપ્ત.
माल्या . न. - आबाल्यादसती सती सुरपुरी आप्लाव्य त्रि. (आ+प्लु कर्तरि ण्यत्) स्नान. १२॥२, | ___ कुन्ती समारोहयत्-घ०वि० જળ વગેરેથી વ્યાપ્ત થવા યોગ્ય.
आबिलकन्द पु. (आबिल: भूमेराभेदको कन्दो यस्य) आप्लाव्य न. (आ+प्लु+भावे ण्यत्) उत्तव्य स्नान. | में तनो ६, भ3६. आप्लुत न. (आ+प्लु+भावे क्त) नाड, स्नान. आबुत्त पु. (आप्+उत्+तम्+ड) (11230. DAHI) आप्लुत त्रि. (आ+प्लु+कर्मणि क्त) स्नान. ४२८, बनवा. नास, मीन थये.
आब्द त्रि. (अब्दे-मेघे भवः अण्) भेघ संधी, मेघम आप्लुत पु. (आ+प्लु+कर्मणि क्त) स्नात गृहस्थ. | थनार. आप्लुतवतिन् पु. (आप्लुतस्य स्नातस्य व्रतमस्त्यस्य | आब्दिक त्रि. (अब्दे भवः ठक्) प्रत्ये. वर्षे थनार इनि) स्नात स्थ.
श्राद्ध को पितृ त्य, वार्षि:- आब्दिकः कर:आप्लुत्य अव्य. (आ+प्लु+ल्यप्) स्नान शन, दूहीन, मनु० ७१२९. जान.
आभग पु. (सम्यग् भगं माहात्म्यं यस्य) उत्तम आपलुष्ट त्रि. (आ+प्लुष्+क्त) थोडु बाणेद, सारी. માહાત્મવાળો દેવ, રીતે બાળેલ.
आभण्डन न. (आभण्ड्+ल्युट) नि.३५७.. आप्वन् पु. (आप्+वन्) पवन, वायु.
आभयजात्य पू. (अभयजातस्य अपत्यं गई० यज) आफूक न. (ईषत्फूत्कार इव फेनोऽत्र) सी. | समयातनो पुत्र..
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