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आराधना कथाकोश
समय चातुर्मासका था । यज्ञदत्ताको दोहद उत्पन्न हुआ । उसे आम खानेकी प्रबल उत्कण्ठा हुई । स्त्रियोंको स्वभावसे गर्भावस्था दोहद उत्पन्न हुआ ही करते हैं । सो आमका समय न होनेपर भी सोमदत्त वनमें आम ढूंढ़नेको चला । बुद्धिमान् पुरुष असमय में भी अप्राप्त वस्तु के लिये साहस करते हो हैं । सोमदत्त वन में पहुंचा, तो भाग्यसे उसे सारे बगीचे में केवल एक आमका वृक्ष फला हुआ मिला। उसके नीचे एक परम महात्मा योगिराज बैठे हुए थे । उनसे वह वृक्ष ऐसा जान पड़ता था, मानो मूर्तिमान् धर्म है । सारे वनमें एक ही वृक्षको फला हुआ देखकर उसने समझ लिया कि यह मुनिराजका प्रभाव है । नहीं तो असमय में आम कहाँ ? वह बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने उसपरसे बहुत से फल तोड़कर अपनी प्रियाके पास पहुँचा दिये और आप मुनिराजको नमस्कार कर भक्ति से उनके पाँवोंके पास बैठ गया । उसने हाथ जोड़कर मुनिसे पूछा - प्रभो, संसारमें सार क्या है ? इस बातको आपके श्रीमुख से सुननेकी मेरी बहुत उत्कण्ठा है। कृपाकर कहिये ।
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मुनिराज बोले- वत्स, संसारमें सार - आत्माको कुगतियोंसे बचाकर सुख देनेवाला, एक धर्म है । उसके दो भेद हैं, १ - मुनिधर्म, २ - श्रावक धर्मं । मुनियोंका धर्म - अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रहका त्याग ऐसे पाँच महाव्रत तथा उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप आदि दशलक्षण धर्म और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् - चारित्र ऐसे तीन रत्नत्रय, पाँच समिति, तोन गुप्ति, खड़े होकर आहार करना, स्नान न करना, सहनशक्ति बढ़ानेके लिये सिरके बालोंका हाथोंसे ही लौंच करना, वस्त्रका न रखना आदि है । और श्रावक धर्म - बारह व्रतोंका पालन करना, भगवान् की पूजा करना, पात्रोंको दान देना और जितना अपनेसे बन सके दूसरोंका उपकार करना, किसीकी निन्दा बुराई न करना, शान्तिके साथ अपना जीवन बिताना आदि है । मुनिधर्मका पालन सर्वदेश किया जाता है और श्रावक धर्मका एकदेश । जैसे अहिंसाव्रतका पालन मुनि तो सर्वदेश करेंगे । अर्थात् स्थावर जीवों को भी हिंसा a नहीं करेंगे और श्रावक इसी व्रतका पालन एकदेश अर्थात् स्थूल रूपसे करेगा । वह त्रस जीवोंकी संकल्पी हिंसाका त्याग करेगा और स्थावर जोव - वनस्पति आदिको अपने काम लायक उपयोग में लाकर शेषकी रक्षा करेगा ।
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श्रावकधर्म परम्परा मोक्षका कारण है और मुनिधर्म द्वारा उसी पर्यायसे भी मोक्ष जा सकता है। श्रावकको मुनिधर्म धारण करना ही
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