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आराधना कथाकोश
उसपर और अधिक श्रद्धा हुई। उन्होंने भक्ति के साः . . णाम किया और बाद वे उसे अपने महल लिवा लाये । सव बान :
अहो धृतस्य धूर्तत्वं लक्ष्यते केन भूतक। यस्य प्रपंचतो गाढं विद्वांसश्चापि वंचिताः ।।
अर्थात्-जिनकी धूर्ततासे अच्छे-अच्छे विद्वान् भी जब आते हैं, तब बेचारे साधारण पुरुषोंकी क्या मजाल जो वे उनकी पता , पा सकें।
क्षुल्लकजीने चैत्यालयमें पहँच कर जब उस मणिको व का हृदय आनन्दके मारे बाँसों उछलने लगा। वे बहुत सनट है: से सुनार अपने पास कोई रकम बनवानेके लिये लाये हुए थे. सका सोना देखकर प्रसन्न होता है। क्योंकि उसकी नियत सदा चोर और ही लगी रहती है।
जिनेन्द्रभक्तको उसके मायाचारका कुछ पता नहीं लगा। इसलिये उन्होंने उसे बड़ा धर्मात्मा समझ कर और मायाचारीसे क्षुल्ला के मना करनेपर भी जबरन अपने जिनालयको रक्षाके लिये उसे नियुक्त कर दिया
और आप उससे पूछकर समुद्रयात्रा करनेके लिये चल पड़े। __ जिनेन्द्रभक्तके घर बाहर होते ही क्षुल्लकजीको बन पड़े अधी रालके समय आप उस तेजस्वी रत्नको कपड़ोंमें छुपाकर घर : इर हो गये। पर पापियोंका पाप कभी नहीं छुपता। यही कारण था के रत्न है: र भागते हुए उसे सिपाहियोंने देख लिया। वे उसे पकड़नेर । दौड़े। ६ल्लकजी दुबले पतले तो पहले हीसे हो रहे थे, इसलिये के नापनेको भानेमें असक्त समझ लाचार होकर जिनेन्द्रभक्तकी ही शरणमें और "ओ, बचाइये ! बचाइये !! यह कहते हुए उनके पाँवोंमें गि. पड़े। जनेन्द्रभक्तने, "चोर भागा जाता है ! इसे पकड़ना" ऐसा :ला सुन करके जान लिया कि यह चोर है और क्षुल्लक वेषमें लोगोंको ठगता फिरता है। यह जानकर भी दर्शनकी निन्दाके भयसे जिनेन्द्रभक्तने क्षुल्लकके पकड़नेको आये हुए सिपाहियोंसे कहा-आप लोग बड़े कम समझ हैं ! आपने बहुत बुरा किया जो एक तपस्वीको चोर बतला दिया। रत्न तो ये मेरे कहनेसे लाये हैं। आप नहीं जानते कि ये बड़े सच्चरित्र साधु हैं ? अस्तु। आगेसे ध्यान रखिये। जिनेन्द्रभक्तके वचनोंको सुनते ही सब सिपाही लोग ठण्डे पड़ गये और उन्हें नमस्कार कर चलते बने ।
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