SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माँ जिनवाणी स्तुति माँ जिनवाणी ममता न्यारी, प्यारी प्यारी गोद है थारी । आँचल में मुझको तू रख ले, तू तीर्थंकर राजदुलारी ।।टेक।। वीर प्रभो पर्वत निर्झरणी, गौतम के सुख कंठ झरी हो । अनेकान्त और स्याद्वाद की, अमृतमय माता तुम ही हो । भव्यजनों की कर्णपिपासा, तुझसे शमन हुई जिनवाणी ।।१।। माँ जिनवाणी........... सप्तभंग मय लहरों से माँ, तू ही सप्त तत्व प्रकटाये । द्रव्य गुणों अरू पर्यायों का, ज्ञान आतमा में करवाये । हेय ज्ञेय अरु उपादेय का, भान हुआ तुमसे जिनवाणी ।।२।। माँ जिनवाणी................. तुझको जानूँ तुझको समझू, तुझसे आतम बोध को पाऊँ । तेरे आँचल में छिप-छिपकर दुग्धपान अनुयोग को पाऊँ । माँ बालक की रक्षा करना, मिथ्यातम को हर जिनवाणी ।।३।। माँ जिनवाणी................. धीर बनूँ मैं वीर बनूँ माँ, कर्मबली को दल-दल जाऊँ । ध्यान करूँ स्वाध्याय करूँ बस, तेरे गुण को निशदिन गाऊँ । अष्ट करम की हान करे यह, अष्टम क्षिति को दे जिनवाणी ।।४।। माँ जिनवाणी............ ऋषि मुनि यति सब ध्यान धरे माँ, शरण प्राप्त कर कर्म हरें। सदा मात की गोद रहूँ मैं, ऐसा शिर आशीष फले । नमन करें "स्याद्वादमती' नित, आत्म सुधारस दे जिनवाणी ।।५।। माँ जिनवाणी....... -गणिनी आर्यिका स्याद्वादमती माताजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016063
Book TitleAradhana Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy