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जिनपूजन-प्रभाव-कथा
४४९ सोढ़ियोंकी श्रेणी है और समस्त सुखोंकी देनेवाली है। यह आप भव्यजनोंकी पाप कर्मोसे सदा रक्षा करे।
जिनके जन्मोत्सवके समय स्वर्गके इन्द्रोंने जिन्हें स्नान कराया, जिनके स्नानका स्थान सुमेरु पर्वत नियत किया गया, क्षीर समुद्र जिनके स्नानजलके लिये बावड़ी नियत की गई, देवता लोगोंने बड़े अदबके साथ जिनकी सेवा बजाई, देवांगनाएँ जिनके इस मंगलमय समयमें नाचीं और गन्धर्व देवोंने जिनके गुणोंको गाया, जिनका यश बखान किया, ऐसे जिन भगवान् आप भव्य-जनोंको और मुझे परम शान्ति प्रदान करें।
वह भगवान् की पवित्र वाणी जय लाभ करे, संसारमें चिर समय तक रह कर प्राणियोंको ज्ञानके पवित्र मार्ग पर लगाये, जो अपने सुन्दर वाहन मोर पर बैठी हई अपूर्व शोभाको धारण किये है, मिथ्यात्वरूपो गाढे अंधेरेको नष्ट करनेके लिये जो सूरजके समान तेजस्विनी है, भव्यजनरूपी कमलोंके वनको विकसित कर आनन्दको बढ़ानेवाली है, जो सच्चे मार्गको दिखानेवाली है और स्वर्गके देव, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि सभी महापुरुष जिसे बहत मान देते हैं।
मूलसंघके सबसे प्रधान सारस्वत नामके निर्दोष गच्छमें कुन्दकुन्दाचार्यकी परम्परामें प्रभाचन्द्र एक प्रसिद्ध आचार्य हुए हैं। वे जैनागमरूपी समद्रके बढ़ानेके लिये चन्द्रमाको शोभाको धारण किए थे। बडे-बडे विद्वान् उनका आदर सत्कार करते थे। वे गुणोंके मानों जैसे खजाने थे, बड़े गुणी थे।
इसी गच्छमें कुछ समय बाद मल्लिभूषण भट्टारक हुए। वे मेरे गुरु थे। वे जिनभगवान्के चरण-कमलोंके मानों जैसे भौंरे थे-सदा भगवान्की पवित्र भक्तिमें लगे रहते थे। मूल संघमें इनके समयमें यही प्रधान आचार्य गिने जाते थे। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रयके ये धारक थे। विद्यानन्दी गुरुके पट्टरूपी कमलको प्रफुल्लित करनेको ये जैसे सूर्य थे। इनसे उनके पट्टको बड़ी शोभा थी। ये आप सत्पुरुषोंको सुखी करें।
वे सिंहनन्दी गुरु भी आपको सुखी करें, जो जिन भगवान्की निर्दोष भक्तिमें सदा लगे रहते थे । अपने पवित्र उपदेशसे भव्यजनोंको सदा हित. मार्ग दिखाते रहते थे.। जो कामरूपो निर्दयी हाथीका दुर्मद नष्ट करनेको सिंह सरीखे थे, कामको जिन्होंने वश कर लिया था। वे बड़े ज्ञानी ध्यानी थे, रत्नत्रयके धारक थे और उनकी बड़ी प्रसिद्धि थी।
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