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आराधना कथाकोश
तेरपुर के पास इनका पड़ाव पड़ा। इसो समय कुछ भीलोंने आकर नम्र मस्तक से इनसे प्रार्थना की- राजाधिराज, हमारे तेरपुरसे दो- कोस दूरी पर एक पर्वत है । उस पर एक छोटासा धाराशिव नामका गाँव बसा हुआ है । इस गाँव में एक बहुत बड़ा ही सुन्दर और भव्य जिनमन्दिर बना हुआ है । उसमें विशेषता यह है कि उसमें कोई एक हजार खम्भे हैं। वह बड़ा सुन्दर है । उसे आप देखनेको चलें । इसके सिवा पर्वत पर एक यह आश्चर्य की बात है कि वहाँ एक बाँवी है। एक हाथी रोज-रोज अपनी
में थोड़ासा पानी और एक कमलका फूल लिये वहाँ आता है और उस बाँवोकी परिक्रमा देकर वह पानो और फूल उस पर चढ़ा देता है । इसके बाद वह उसे अपना मस्तक नवाकर चला जाता है । उसका यह प्रतिदिनका नियम है। महाराज, नहीं जान पड़ता कि इसका क्या कारण है । करकण्डु भीलों द्वारा यह शुभ समाचार सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ । इस समाचारको लानेवाले भीलोंको उचित इनाम देकर वह स्वयं सबको साथ लिये उस कौतुकमय स्थानको देखने गया । पहले उसने जिन मन्दिर जाकर भक्ति पूर्वक भगवान् की पूजा की, स्तुति की। सच है, धर्मात्मा पुरुष धर्मके कामोंमें कभी प्रमाद- - आलस नहीं करते | बाद वह उस aarat जगह गया | उसने वहाँ भी लोंके कहे माफिक हाथीको उस बाँवीको पूजा करते पाया । देखकर उसे बड़ा अचम्भा हुआ । उसने सोचा कि इसका कुछ न कुछ कारण होना चाहिए। नहीं तो इस पशुमें ऐसा भक्तिभाव नहीं देखा जाता । यह विचार कर उसने उस बाँवीको खुदवाया । उसमें से एक सन्दूक निकली। उसने उसे खोलकर देखा । सन्दूक में एक रत्नमयी पार्श्वनाथ भगवान्की पवित्र प्रतिमा थी । उसे देखकर धर्मप्रेमी करकण्डुको अतिशय प्रसन्नता हुई । उसने तब वहाँ 'अग्गलदेव' नामका एक विशाल जिन मन्दिर बनवाकर उसमें बड़े उत्सवके साथ उस प्रतिमाको विराजमान किया। प्रतिमा पर एक गाँठ देखकर करकण्डुने शिल्पकारसे कहा- देखो, तो प्रतिमा पर यह गाँठ कैसी है ? प्रतिमाकी सब सुन्दरता इससे मारी गई । इसे सावधानी के साथ तोड़ दो । यह अच्छी नहीं देख पड़ती । शिल्पकारने कहा - महाराज, यह गाँठ ऐसो वैसी नहीं हैं जो तोड़ दी जाय ऐसी रत्नमयी दिव्य प्रतिमा पर गाँठ होने का कुछ न कुछ कारण जान पड़ता है । इसका बनानेवाला इतना कम बुद्धि न होगा को प्रतिमा की सुन्दरता नष्ट होनेका खयाल न कर इस गाँठ को रहने देता। मुझे जहाँतक जान पड़ता है, इस गाँठका सम्बन्ध किसी भारी जल प्रवाहसे होना चाहिए। और यह असंभव भी नहीं ।
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